अलीगढ़ःउत्तर प्रदेश में इलेक्शन का शेड्यूल जारी हो चुका है और चुनावी हंगामा अपने जोर-शोर पर है। इसी हंगामे के बीच जहां एक तरफ राजनैतिक पार्टियों और उनके नेताओं के बीच गठजोड़ और एक दूसरे का साथ छोड़ने और थामने का सिलसिला जारी है इसी बीच राज्य की सबसे बड़ी माइनॉरिटी कहे जाने वाले मुस्लिम समुदाय के बीच यह चर्चा भी आम है कि इलेक्शन में मुसलमानों के वोट लेने के लिए तो सभी पार्टियां उत्सुक हैं लेकिन मुसलमानों के मुद्दों को बहस में लाने को कोई भी पार्टी तैयार नजर नहीं आती। अभी तक किसी पार्टी का मेनिफेस्टो भी आवाम के सामने नहीं आया है सिर्फ कांग्रेस कमेटी ने महिलाओं के मुद्दों पर एक मेनिफेस्टो महिलाओं का अलग से पेश किया है।
इसी बीच अलीगढ़ में छात्रों शिक्षकों गैर शिक्षक कर्मचारियों और पूर्व छात्रों की एएमयू कोआर्डिनेशन कमेटी जो 15 दिसंबर 2019 के हंगामे के बाद वजूद में आई थी, ने इस मुद्दे को आगे बढ़ाते हुए मुसलमानों और पिछड़ों की आवाज बनने की कोशिश की है। इसी सिलसिले में कल दिनांक 15 जनवरी 2022 को अलीगढ़ के ओल्ड बॉयज लॉज मैं एएमयू कोऑर्डिनेशन कमिटी की उत्तर प्रदेश की एग्जीक्यूटिव मीटिंग करी गई। जिसमें सबसे ज्यादा इसी बात पर चर्चा हुई के उत्तर प्रदेश के चुनावी माहौल में मुसलमानों के मुद्दे कहीं भी सुनाई नहीं दे रहे हैं। इसी पर चर्चा करते हुए और दूसरे सभी मुद्दों पर चर्चा करते हुए सभी की सलाह मशवरे से एक प्रस्ताव पत्र पारित किया गया।
प्रस्ताव पत्र में मुख्य तौर पर मॉब लिंचिंग और मुसलमानों और दलितों के खिलाफ होने वाली हिंसा को लेकर सामाजिक सुरक्षा और सीए एनआरसी कानून को वापस लिए जाने की डिमांड मुख्य रही। इसके अलावा मॉबलिंचिंग में मारे जाने वालों के लिए मुआवजा, पुलिस और अर्धसैनिक बलों में अल्पसंख्यकों की भर्ती, मंडल आयोग और रंगनाथ मिश्रा आयोग की सिफारिशों के अनुसार सरकारी नौकरियों और शैक्षिक संस्थानों में मुसलमानों के लिए रिजर्वेशन, वक्फ संपत्तियों से अतिक्रमण हटाना, उत्तर प्रदेश में उर्दू को दूसरी अधिकारिक राजभाषा माना जाना, अल्पसंख्यक बहुल क्षेत्रों में सार्वजनिक सुविधाओं का विकास और इसके अलावा फिरोजाबाद बनारस कानपुर अलीगढ़ मेरठ आगरा सहारनपुर मुरादाबाद और अमरोहा में पारंपरिक उद्योगों को बढ़ावा देने के लिए जरूरी कदम उठाए जाने के मुद्दे अहम है।
इसी सिलसिले में आज दिनांक 16 जनवरी 2022 को एएमयू कोआर्डिनेशन कमेटी की प्रेस कॉन्फ्रेंस ओल्ड बायलॉज में शाम 3:00 बजे रखी गई जिसमें एएमयू कोआर्डिनेशन कमेटी की तरफ से कोऑर्डिनेटर मोहम्मद आमिर मिंटॊई, साबिर बैग और उत्तर प्रदेश सरकार में कार्यरत रहे डॉक्टर सुल्तान-उल-हक ने रेजोल्यूशन पढ़कर सुनाया और पत्रकारों से वार्ता करी।
उन्होंने बताया कि इस रेजोल्यूशन को सभी पार्टियों के राष्ट्रीय अध्यक्षों को पहुंचाया जाएगा और उनसे डिमांड करी जाएगी के मुसलमानों के मुद्दों पर अपना रवैया खुलकर सामने रखें और इलेक्शन के बाद सत्ता में आए तो काम करें और सत्ता में ना आए तो भी अपोजिशन की जिम्मेदारी निभाते हुए राज्य के सबसे बड़े अल्पसंख्यक समुदाय के मुद्दों की वकालत करें। क्योंकि यही संवैधानिक मूल्यों की मांग है की राजनीतिक पार्टियां बिना किसी भेदभाव के भारत में रहने वाले सभी नागरिकों के मुद्दों को आगे रखे और उनकी तरक्की के लिए काम करें।
साबिर बैग ने बताया कि उत्तर प्रदेश असेंबली से पहले भी उर्दू को राज्य की दूसरी सरकारी भाषा बनाया जाना तय हो चुका है और पिछले दिनों सुप्रीम कोर्ट ने भी इसकी हिमायत की थी लेकिन उसके बाद भी उर्दू से भेदभाव किया जाता रहा है जो कुबूल नहीं किया जा सकता। ज्ञात रहे कि उत्तर प्रदेश राज्य में ही लखनऊ भी है और अलीगढ़ भी जो उर्दू के 2 सबसे बड़े मरकज समझे जाते रहे हैं ऐसे राज्य में उर्दू के साथ भेदभाव अफसोस जनक है।
डॉक्टर सुल्तान उल हक ने बताया कि वह खुद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी से शिक्षा ग्रहण करने के बाद उत्तर प्रदेश सरकार की सेवा कर चुके हैं और इस बात को समझते हैं की जो सच्चर कमेटी की रिपोर्ट में भी कहा गया है कि सरकारी नौकरियों में खुद को सेकुलर कहीं जाने वाली पार्टियों की सरकारों में भी मुसलमानों के साथ हमेशा भेदभाव होता रहा है जिसके नतीजे में आज मुसलमान हाशिए पर आकर खड़े हो गए हैं। तो हम इलेक्शन के इस माहौल में मुसलमानों से यह निवेदन करते हैं कि वह जिसको भी वोट दें किसी पार्टी को जिताने या हराने के लिए नहीं बल्कि अपने मुद्दों पर बात और काम करवाने के लिए वोट दें।
आमिर मिंटोई ने बताया कि जो रेजोल्यूशन कल की मीटिंग में पारित किया गया है यह बिना किसी भेदभाव के हर पार्टी के नेशनल प्रेसिडेंट को दिया जाएगा और हम कोशिश करेंगे कि उत्तर प्रदेश के ज्यादातर जिलै॑ मैं पार्टियों के जिला अध्यक्षों के माध्यम से इस रेजोल्यूशन को पार्टी अध्यक्षों तक पहुंचाया जाएगा।