एक अंतर्मुखी, शर्मीले स्वभाव वाला लड़का, जिसे फोटोग्राफी करनी थी, जिसे इंजीनियरिंग करनी थी, जिसे पायलट बनना था, जिसे शास्त्रीय संगीत सुनना था, जिसे कलाओं का सौंदर्य लुभाता था, जिसे गाड़ी चलाने का शौक पूरा करना था और लॉन्ग ड्राइव पर जाना था। घर की चहारदीवारी से देश का शासन चलता था लेकिन उसे उस ताकत के प्रति कोई आकर्षण नहीं था। मां प्रधानमंत्री थीं लेकिन वह युवा उस सियासी दुनिया से दूर रहना चाहता था। लेकिन नियति ने उस युवा के लिए कुछ अलग कहानी लिखी थी। ऐसी अमर कहानी जो देश के विकास की दिशा तय करने से लेकर देश के लिए बलिदान पर जाकर खत्म होती है।
वे पढ़ाई करके लौटे तो भी राजनीति से दूर रहे। पॉयलट बनने की ट्रेनिंग ली और नौकरी करने लगे। कहते हैं कि होइहैं सोइ जो राम रचि राखा… वक्त बदला, हालात बदले, जिम्मेदारी बदली, अपेक्षाएं बदलीं और उनकी जिंदगी की दिशा बदल गई।
भाई के जाने के बाद उन्होंने नौकरी छोड़ दी और पार्टी संभालने लगे। एक अनहोनी ने उन्हें सियासत में खींच लिया था, दूसरी अनहोनी ने उन्हें इस तरह झटके में प्रधानमंत्री बना दिया कि कुछ सोचने का मौका तक नहीं मिला। पार्टी के दबाव और देश की उम्मीदों के साथ शायद मां की रुख्सती से उपजी जिम्मेदारी ने भी प्रेरित किया हो। वे प्रधानमंत्री बन गए। देश के सबसे युवा प्रधानमंत्री। युवा ऊर्जा और दूरदर्शी सोच ने एक साथ काम करना शुरू किया तो 21वीं सदी के भारत का भविष्य आकार लेने लगा।
कंप्यूटर क्रांति, दूरसंचार क्रांति, पंचायती राज, महिला आरक्षण, 661 नवोदय विद्यालय, पोलियो उन्मूलन कार्यक्रम, एससी-एसटी को कानूनी सुरक्षा, 18 साल तक के युवाओं को मताधिकार, असम-मिजोरम-पंजाब में शांति समझौते, नई शिक्षा नीति, प्रोद्योगिकी मिशन की स्थापना… महज एक कार्यकाल में इतने मील के पत्थर पार करने का करिश्मा राजीव गांधी जी जैसा कोई स्वप्नदृष्टा प्रधानमंत्री ही कर सकता था।
भारत में कंप्यूटर और दूरसंचार क्रांति के जनक, डिजिटल इंडिया के आर्किटेक्ट और भारत को नये युग में ले जाने का सपना देखने वाले बलिदानी को सादर श्रद्धांजलि।