इफ्तिखार अली खान पटौदी: हॉकी और क्रिकेट के स्टार

दिल्ली में सत्तर साल पहले भी 5 जनवरी, 1952 को कड़ाके की सर्दी पड़ रही थी। दिल्ली सर्दी से बचने के लिए घरों में छिपी हुई थी। सड़कों पर कम ही लोग निकले थे कामकाज के लिए। लेकिन, इफ्तिखार अली खान पटौदी दिल्ली पोलो ग्राउंड में सुबह के वक्त पोलो खेलने निकल गए थे। उनके साथ उनके 11 साल के पुत्र मंसूर अली खान पटौदी भी थे। वे तब कोपरनिक्स मार्ग पर स्थित पटौदी हाउस में रहते थे। उस दिन पुत्र मंसूर अली खान पदौदी का 11 वां जन्म भी दिन था। घर में बेटे के जन्म दिन की तैयारियां चल रही थीं। इफ्तिखार अली खान पटौदी घर से जाते हुए कह गए थे कि  आज जल्दी वापस आ जाएंगे।

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घोड़े से गिरने से हुई मौत

पर,अफसोस कि उनके लिए वह दिन मनहूस साबित हुआ। वे मैदान में पोलो खेल रहे थे, मासूम बेटा उन्हें देख रहा था। तब ही वे घोड़े से गिरे, उन्हें गंभीर चोटे आईं। लाख कोशिशें करने के बाद भी इफ्तिखार अली खान पटौदी को बचाया नहीं जा सका। उनका पार्थिव शरीर उनके घर में लाया गया और वहां से अंतिम संस्कार के लिए पटौदी में ले जाय़ा गया। दिल्ली से सैकड़ों लोग पटौदी के अंतिम संस्कार में भाग लेने के लिए गए थे।

क्रिकेट-हॉकी के हीरो से सितार के स्टाऱ

इफ्तिखार अली खान पटौदी की शख्सियत कमाल की थी। वे शेरो-शायरी में भी दिलचस्पी लेते थे। वे शेर खुद कहते भी थे। उर्दू के नामवर शायर कुंवर महेन्द्र सिंह बेदी ने अपनी किताब यादों का जश्न में लिखा है कि नवाब साहब हारमोनियम भी बेहद शानदार तरीके से बजाते थे। जब उनकी पोलो खेलतेहुए मौत हुई उन दिनों वे उस्ताद विलायत अली खान से सितार सीख रहे थे।

इफ्तिखार अली खान पटौदी का जन्म दरियागंज के पटौदी हाउस में16 मार्च,1910 को हुआ था। इफ्तिखार अली खान पटौदी ने 1928 के एम्स्टर्डम ओलंपिक खेलों में भागलिया था। वे भारत की हॉकी टीम के सदस्य थे। उस भारतीय टीम में दादा ध्यानचंद भी थे। उस टीम ने गोल्ड मेडल जीता था। हालांकि उन्हें किसी भी मैच में खेलने का अवसर नहीं मिला था। पटौदी ने आगे चलकर इंग्लैंड और भारत की तरफ से क्रिकेट टेस्ट मैचों में नुमाइंदगी की। उन्होंने इंग्लैंड और भारत से कुल जमा छह टेस्ट मैच खेले। उन्होंने 1932 में इंग्लैंड की टीम से आस्ट्रेलिया के खिलाफ अपने जीवन का पहला टेस्ट खेला था। तब तक भारत को टेस्ट मैचों में खेलने का अवसर नहीं मिला था। भारत ने अपना पहला टेस्ट मैच 1934 में खेला था। वे बिलियर्ड और पोलो के भी बेहतरीन खिलाड़ी थे।

नेहरु जी ने किसे दिलवाया था बंगला

इफ्तिखार अली खान पटौदी की अकाल मौत के बाद उनकी पत्नी साजिदा सुल्तान बेगम को प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु ने सोशल वर्कर के कोटे से राजधानी के त्यागराज मार्ग (पहले डुप्ले रोड) में भव्य बंगला दिलवा दिया। इधर ही मंसूर अली खान पटौदी लेकर आए शर्मिला को अपनी बहू बनाकर। साजिदा सुल्तान की साल 2003 में मृत्यु के बाद पटौदी परिवार को उस बंगले को खाली करना पड़ा। हालांकि कहने वाले तो कहते हैं कि पटौदी कुनबे ने हरचंद कोशिश की थी कि बंगला शर्मिला टेगौर के नाम पर आवंटित हो जाए।

दिल्ली में भोपाल हाउस क्यों नहीं

राजधानी के दरियागंज में एक पटौदी हाउस है। वहां पर अब एक स्कूल चलता है। राजधानी में एक पटौदी हाउस आंध्र भवन के करीब कोपरनिक्स मार्ग के पास और अशोक रोड के पीछे भी हुआ करता था। यह लेडी इरविन स्कूल के आगे था। उसके अब वहां पर अवशेष ही बचे हैं। उस पर आंध्र प्रदेश सरकार का स्वामित्व  है। इस बीच, यह बात हैरान करती है कि राजधानी में पटौदी के ससुराल पक्ष, जो भोपाल का राज परिवार था, ने दिल्ली में अपना बंगला क्यों नहीं बनाया। भोपाल रियासत देश की प्रमुख रियासत थी। हालांकि कहते हैं कि उन्हें अपना भवन बनाने के लिए लैंड दी गई थी, जिस पर उन्होंने भवन तामीर नहीं करवाया। इस बीच, जामिया मिलिया इस्लामिया में एक भोपाल ग्राउंड हुआ करता था, वह अब मंसूर अली खान स्टेडियम कहलाता है। एक दौर में भोपाल रियासत ने जमीन जामिया को दी थी।

कनॉट प्लेस और इफ्तिखार अली खान का क्या रिश्ता

हरियाणा के पटौदी हाउस और अपने कनॉट प्लेस का एक करीबी संबंध है। दरअसल दोनों को रोबर्ट टोर रसेल ने डिजाइन किया था। कहते हैं कि इफ्तिखार अली खान पटौदी क्नॉट प्लेस के डिजाइन से इस कद्र प्रभावित हुए थे कि उन्होंने निश्चय किया कि उनके महल का डिजाइन रसेल ही तैयार करेंगे। नई दिल्ली के चीफ आर्किटेक्ट रसेल ने पटौदी हाऊस का डिजाइन बनाते हुए भी अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाया। महल के आगे बहुत से फव्वारे लगे है। फव्वारों क साथ ही गुलाब के फुलों की क्यारियां हैं, जिधर बेशुमार गुलाब के फुलों से सारा माहौल गुलजार रहता है। महल के भीतर भव्य ड्राइंग रूम के अलावा सात बेडरूम,ड्रेसिंग रूम और बिलियर्ड रूम भी है। सारे महल का डिजाइन बिल्कुल राजसी अंदाज में तैयार किया गय़ा। इसका डिजाइन तैयार करते वक्त रसेल को आस्ट्रेलिया के आर्किटेक्ट कार्ल मोल्ट हेंज का भी पर्याप्त सहयोग मिला।

इस बीच, छोटे नवाब मंसूर अली खान पटौदी  ने दिल्ली क्रिकेट को एक झटके में छोड़ दिया था। वे जब 1960 के आसपास दिल्ली के रणजी ट्रॉफी में कप्तान थे, तब उन्होंने हैदराबाद का रुख कर लिया था। फिर वे हैदराबाद कीटीम से अपने मित्र एम.एल.जयसिम्हा की अगुवाई में खेलते रहे।  कुछ साल पहले पटौदी साहब का फिरोजशाह कोटला में ‘हालऑफफेम’  बनाया गया है। पर ये सवाल तो पूछा ही जाएगा कि अकारण दिल्ली को छोड़ने वाले शख्स को यहां इतनी इज्जत क्यों मिली? क्या पटौदी ने टेस्ट क्रिकेट से 1975 में सन्यास लेने के बाद कभी दिल्ली  में  स्कूल य़ा कॉलेज के प्रतिभाशाली खिलाड़ियों को बल्लेबाजी या फील्डिंग के गुर सिखाए? हालांकि वे यहां पर ही रहते थे।

हां, ये मानना होगा कि पटौदी जुझारू क्रिकेटर थे। एक कार हादसे में उनकी दायीं आँख की रोशनी जाती रही थी। पर पटौदी ने हार नहीं मानी। उन्होंने एक आँख से बल्लेबाजी करते हुए टेस्ट मैचों में 6 शतक और 16 अर्धशतक ठोके। कहा जाता है कि वे जब बल्लेबाजी करते थे तब उन्हें दो गेंदें अपनी तरफ आती हुई दिखती थीं। इन दोनों के बीच कुछ इंचों की दूरी भी रहती थी। पर पटौदी ने हमेशा उस गेंद को खेला जिसे उन्हें खेलना चाहिए था।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)