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बाबरी मस्जिद में सुप्रीम कोर्ट से मिली ‘नाइंसाफी’ का बदला लेने के लिये यह रास्ता अपनाया जाए तो….

बेशक मुसलमान पांच एकड़ ज़मीन पाने की चाहत में बाबरी मस्जिद का मुक़दमा नहीं लड़ रहे थे, बल्कि इंसाफ के लिए लड़ रहे थे। जो नहीं मिला, तो पांच एकड़ ज़मीन ही क्यों ली जाए? नहीं लेनी चाहिए बिल्कुल नहीं लेनी चाहिए। लेकिन कुछ करना ज़रूर चाहिए! बेशक सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर रिव्यू पिटीशन डालना सबका अधिकार है। लेकिन मुसलमानो को चाहिए कि इस फैसले के खिलाफ रिव्यू पिटीशन दायर न करें, क्योंकि होना वही है जो पहले से तय है। पिछली दलीलें कम नहीं थीं, राजीव धवन मज़बूत दलीलों के साथ लड़े, लेकिन जब कोर्ट तथ्य के बजाए आस्था पर फैसला सुनाए तब आप क्या कर सकते हैं? इसलिए रिव्यू पिटीशन के ख्याल को खारिज करें, क्योंकि सांप गुजर चुका है अब लकीर पीटने से कुछ हासिल नहीं होने वाला।

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अपने साथ हुई इस नाइंसाफी के प्रतिशोध में कुछ ऐसा करें जिसे आने वाला हिंदुस्तान ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया देखे। जैसे इस देश में एक बहुत बड़ी आबादी ग़रीबों की है, जिन्हें न शिक्षा मिल पाती है, और न इलाज मिल पाता है। मुसलमानो को चाहिए अब हर जिले में पाच एकड़ ज़मीन खरीदें उस पर मेडिकल काॅलेज अथवा अस्पताल बनाएं, उसमें बहुत मुनासिब दाम पर स्वास्थय सेवाएं उपलब्ध कराएं, डाॅक्टर्स की फौज तैयार करें, जो एक स्वस्थय समाज का निर्माण करे।

बाबरी मस्जिद के फैसले के बाद मैंने कई ‘बड़े’ मुस्लिम ‘नामों’ से बात की सबका एक ही कहना है कि मुसलमान इतना कमज़ोर नही है कि पांच एकड़ ज़मीन की ख़ैरात मस्जिद के बदले में स्वीकार कर ले, मुसलाम कुछ घंटों में ही पचास एकड़ ज़मीन खरीदने का माद्दा रखता है। इसमें कोई संदेह नही है, मुस्लिम समाज ऐसा कर सकता है। उत्तर प्रदेश में कुल 75 जिले हैं हर जिले में पांच एकड़, या जरूरत के हिसाब से यूपी वक्फ बोर्ड से ज़मीन ली जाए और वहां अस्पताल, काॅलेज, बनाया जाए उसी में मस्जिद भी बनाई जाए। वहां से तब्लीग़ भी हो, और समाज सेवा भी, ताकि इस देश में कोई शख्स इलाज के अभाव मे न मरे।

आप कभी दिल्ली के एम्स या पंत जैसे अस्पतालों को देखिए इन अस्पतालो में दूर दराज से ग़रीब अवाम इलाज कराने के लिए आती है, हफ्तो, महीनों तक अस्पताल के मैदान में दिन रात इस आस में पड़े रहते हैं कि उन्हें बेड मिल जाएगा, कुछ को मिलता है कुछ अभागे इसी आस में दुनिया को अलविदा कह जाते हैं। हालांकि अपने नागरिकों को बचाना स्वास्थय, शिक्षा, रोजगार देना सरकार का काम है, लेकिन सरकार इन जरूरी कार्यो के अलावा बाक़ी सारे गैरजरूरी कार्य करती है। मरते हुए लोगों को बचाने के लिए आप आगे आईए, अपना प्रतिशोध लोगों की जान बचाने में, उनके इलाज में, शिक्षा में लगाईए। यही बाबरी के ‘इंसाफ’ को सच्ची श्रद्धांजली होगी और आपका प्रतिशोध भी दर्ज हो जाएगा।

(लेखक द हिंद न्यूज़ वेबपोर्टल के संपादक हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है, ये उनके निजी विचार हैं)