हमारे गांवों में अगर आप किसी पड़ोसी से नमक उधार ले लीजिए तो वह वापस नहीं लेता। कहते हैं कि किसी पर नमक का उधार चढ़ाना निकृष्टता है। आपने गौर किया होगा कि गांवों-कस्बों में किराना दुकानें बंद होती हैं तो नमक का बोरा बाहर ही पड़ा रहता है। हमारे समाज में चोर भी इतने नैतिक होते हैं कि वे नमक की चोरी नहीं करते। दुर्भाग्य से हमारे देश के प्रधानमंत्री ने अपने फर्ज को नमक से जोड़कर इस न्यूनतम नैतिकता को तोड़ दिया है। उनका वह फर्ज ऐसा था, जिसे वे निभा भी नहीं सके लेकिन गरीबों पर एहसान लाद रहे हैं।
भारत जैसे विशाल देश का प्रधानमंत्री इतना नीचे कैसे गिर सकता है कि एक बूढ़ी महिला पर दस रुपये के नमक का एहसान लादे? एक साधारण गरीब महिला ने कहा कि हम मोदी को वोट देंगे क्योंकि मैंने उनका नमक खाया है। यह उसकी अपनी समझदारी थी। लेकिन प्रधानमंत्री की हैसियत से मोदी खुद रैली में इस बात का जिक्र करते हैं। वे जनता को क्या बताना चाहते हैं?
क्या वे गरीबों को नमक राशन अपनी तनख्वाह से दे रहे हैं? यह सब उनका कैसे हुआ? प्रधानमंत्री नमक, तेल, दाल, चावल, गेहूं कहां से लेकर आते हैं? झूठ के अलावा वे किस चीज का उत्पादन करते हैं? वे 140 करोड़ भारतवासियों के देश को और इसके संसाधनों को अपना कैसे बता सकते हैं? अगर इस बात का उन्होंने रैली में जिक्र भी किया तो यह कहना था कि इस देश में जो कुछ है, वह मेरा नहीं है। वह सब जनता का है। वे अहंकार में है कि इस देश को अपनी पुश्तैनी जागीर समझने की भूल कर बैठे हैं।
हमारी परंपरा में नमक का हक या कर्ज वफादारी से जोड़कर देखा जाता है। क्या नरेंद्र मोदी अपने को सुल्तान और जनता को गुलाम समझते हैं जो उनकी कृपा पर जीवित है और उनका नमक खा रही है? क्या वे जनता को ये जता रहे हैं कि हम तुमको पाल रहे हैं और तुम सब मेरे प्रति वफादार रहो? क्या वे यह भूल चुके हैं कि इस देश की जनता सल्तनत और राजशाही को कब का दफना चुकी है? इतने बड़े पद पर रहकर 20 सालों में वे लोकतंत्र की न्यूनतम तमीज भी क्यों नहीं सीख सके?
वे सिर्फ नमक की बात नहीं कर रहे हैं। वे कह रहे हैं कि जिन्हें मुफ्त वैक्सीन लगी है वे भाजपा को वोट देंगे। भाजपा को क्यों देंगे? क्या वैक्सीन भाजपा ने अपने खाते से लगवाई है? भाजपा ने अडाणी अंबानी और संदिग्ध इलेटोरल बॉन्ड से जो कालाधन बटोरा है, उसमें से वैक्सीन पर कितना खर्च हुआ? उल्टा पीएम केयर फंड का पैसा प्रधानमंत्री खुद गोल कर गए हैं, जिसका कोई हिसाब नहीं है।
इससे पहले भी महामारियां आईं। इससे पहले भी दर्जनों तरह की वैक्सीन लगीं, लेकिन ऐसी चिरकुट सरकार और ऐसे सस्ते प्रधानमंत्री से पहली बार सामना हुआ है जो अपना फर्ज निभाने के लिए जनता पर एहसान लाद रहा है। एक महामारी आई। सरकार एक साल के मौके के बावजूद लोगों को आक्सीजन और दवाएं नहीं दे पाई। वैक्सीन भी बहुसंख्य लोगों ने पैसे देकर लगवाई। गंगा के तट लाशों से भर गए जिन्हें कुत्ते और कौवे नोच रहे थे। इस निकृष्टता और नकारापन को जनता पर ऐसे लादा जा रहा है जेसे कि उनपर बहुत एहसान किया है। जिस जनता को महामारी में न्यूनतम सुविधाएं भी न दे सके, उसी पर एहसान लाद रहे हैं!
देश का प्रधानमंत्री ऐसा व्यक्ति होता है जिससे करोड़ों लोग प्रेरणा ले सकते हैं। यह आदमी हमें क्या प्रेरणा दे सकता है जो एक बूढ़ी महिला पर दस रुपये के नमक का एहसान लाद रहा है? एक लोकतांत्रिक देश में गरीब जनता का इस तरह राजनीति दोहन ही असली नमकहरामी है।
(लेखक कथाकार एंव पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)