आरएसएस कितना बड़ा देशभक्त और कितना बड़ा धार्मिक है!

आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने 14 फरवरी को संघ पदाधिकारियों को कॉन्फ्रेंसिंग के जरिये संबोधित किया। इस दौरान उन्होंने इंटेलीजेंस ब्यूरो का हवाला देते हुए बताया कि “संघ के सभी पदाधिकारी अपने कैडर को प्रोत्साहित करें क्योंकि भाजपा को पहले दो चरणों में अपमानजनक हार का सामना करना पड़ रहा है। पहले चरण में भाजपा को सिर्फ 17 सीटें जीतने का अनुमान है और दूसरे चरण में भी पार्टी ने उतना ही बुरा प्रदर्शन किया है।” इतना ही नहीं, भागवत ने संघ के पदाधिकारियों से यह भी अपील की है कि वे घर-घर जाएं और हिंदुओं से बीजेपी को वोट करने को कहें। 

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पहले चरण में कुल 58 सीटों पर चुनाव हुआ है। इनमें से बीजेपी ने पिछली बार 53 सीटें जीती थीं। अगर यह कथित आईबी रिपोर्ट सही है तो इस बार बीजेपी सिर्फ 17 सीटें जीत रही है। मतलब चुनाव भाजपा के हाथ से लगभग निकल चुका है। मोहन भागवत की इस अपील से पहले भी भाजपा हिंदू हिंदू रट रही थी। अब यह और बढ़ गया है। अब भाजपा के कई नेताओं के उल्टे पुल्टे वीडियो आ रहे हैं जिसमें वे जहरबुझे भाषण दे रहे हैं।

मोहन भागवत अपने कैडर से कह रहे हैं कि हिंदुओं को एकजुट करो। सिर्फ हिंदुओं को क्यों? क्या भारत के संविधान में भारत के नागरिक सिर्फ हिंदू हैं? वोट का अधिकार तो हर समुदाय को है, आरएसएस सिर्फ हिंदुओं को एकजुट क्यों करना चाहता है? अगर वे देश के लिए काम कर रहे हैं तो अपने हर एजेंडे से ​मुस्लिम, सिख और ईसाई को बाहर क्यों रखते हैं? अगर वे देश का भला चाहते हैं तो देश के सभी नागरिकों को संबोधित क्यों नहीं करते? अगर वे देश से प्रेम करते हैं तो देश के नागरिकों को धार्मिक पहचान के आधार पर बांटना क्यों चाहते हैं?

क्योंकि आरएसएस का मकसद देशहित कभी नहीं रहा है। वे आज महात्मा गांधी और पंडित नेहरू जैसे महापुरुषों को गालियां देते हैं। वे कल भी समूची कांग्रेस और उन सारे आंदोलनकारियो के खिलाफ थे, जो अंग्रेजों से संघर्ष कर रहे थे। आज संघ जो कर रहा है, वह एजेंडा अंग्रेजों का है।

1857 के गदर के बाद अंग्रेजों ने यह नीति अपनाई थी कि वे हिंदुओं और मुसलमानों की पहचान को अलग अलग तवज्जो देकर उन्हें दो ग्रुप में यूनाइट करते थे ताकि दोनों संसाधनों के लिए आपस में लड़ें और अंग्रेजों की सत्ता चलती रहे। इसमें वे कई बार कामयाब हुए। यही एजेंडा आरएसएस का है। वे चाहते हैं कि हिंदू एक तरफ एकजुट हों और मुसलमान एक तरफ, इससे बहुमत आरएसएस के पास रहेगा और वह अपने जहर की खेती करता रहेगा।

यह बंटवारा, नफरत और वैमनस्य ही इनका धर्म है। राम के नाम पर भी आरएसएस ने यही फैलाया है। अयोध्या में जो मंदिर बन रहा है, वह पहला मंदिर नहीं है। इस देश में लाखों की संख्या में मंदिर हैं और वे सब बिना नफरत के सियासी कारोबार के तैयार हुए हैं। आरएसएस चाहता है कि लोग धर्म के आधार पर लड़ते रहें जिसका फायदा उठाकर वह सत्ता में बना रहे। यही उनकी देशभक्ति और ईश्वरभक्ति है। अगर आप इस तरह की राजनीति से प्रभावित हैं तो आपकी मति मारी गई है। हम आपके लिए ईश्वर से प्रार्थना करेंगे।

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)