जिस देश में पीढ़ियों से मुसलमान मनिहार और मनिहारिन ही औरतों को चूड़ियां पहनाते रहे हों, वहां पर एक चूड़ी वाले को इसलिए पीटा जाता है क्योंकि वह मुसलमान है। पिछली पीढ़ियों में हमारे घरों की औरतें बाजार नहीं जाती थीं। अगर मनिहारिनें न होतीं तो वे सुहागिनों के हाथ सूने रहते। आप समझ रहे हैं कि इस देश के लोगों को किस तरह बर्बर और बददिमाग बनाया जा रहा है कि वे अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी मारने में गर्व महसूस कर रहे हैं।
जिस देश का प्रधानमंत्री दावा करे कि उसने 35 साल तक भिक्षा मांगकर जीवन जिया है, उस देश में तो भिखारियों को सम्मान मिलना चाहिए। लेकिन एक भीख मांगने वाले को और उसके बच्चे को इसलिए पीटा जाता है क्योंकि वह मुसलमान है। जो लोग प्रधानमंत्री को ‘अवतार’ मानते हैं, उन्हें तो भिखारियों के चरण धोकर पी लेना चाहिए। पता नहीं किस भिखारी के रूप में परमपिता दर्शन दे रहे हों! आखिर एक महापुरुष 35 साल तक भिखारी के वेष में इसी धरती पर घूमा है। फिर भी लोग भीख मांगने वाले से नफरत क्यों कर रहे हैं? किसी भिखारी को बेवजह पीटने लोग कौन हैं? लगता है कि बीजेपी और हिंदुत्व के समर्थकों के बीच प्रधानमंत्री की महिमा फीकी पड़ रही है। वे उनके अतीत का सम्मान नहीं कर पा रहे हैं। वे भिखारियों का सम्मान करने की जगह उन्हें पीट रहे हैं और पाकिस्तान जाने को कह रहे हैं। क्या ऐसे लोगों को भिखारियों से नफरत है? क्या लोग चाहते हैं कि प्रधानमंत्री की तरह कोई और भीख न मांगे? क्या उन्हें डर है कि कोई भिखारी कल को प्रधानमंत्री को चुनौती दे सकता है?
जिस विचारधारा से प्रभावित लोग जगह जगह गरीब निर्दोंषों की लिंचिंग कर रहे हैं, उस विधारधारा के नेता लोग इसकी निंदा करते हैं? सरकार इस बारे में क्या सोचती है? सुप्रीम कोर्ट की गाइडलाइन के बावजूद लिंचिंग रोकने के क्या उपाय किए गए? कोई मंत्री लिंच मॉब को माला पहनाने के लिए बेताब क्यों रहता है? नेता इस लिंचिंग कल्चर पर क्या सोचते हैं?
दरअसल, कोई किसी के बारे में कुछ सोच नहीं रहा है। समाज में नफरत भरने और उसे बांटने का एक राष्ट्रीय प्रोजेक्ट चल रहा है और पब्लिक बुरी तरह उसकी चपेट में है। नेता और अपने संगठन के साथ मिलकर संगठित रूप से इस नफरत को हवा दे रहे हैं। वे चाहते हैं कि देश में गांव गांव के स्तर पर विभाजन और गहरा हो ताकि हिंदू उनकी तरफ लामबंद हो जाएं और वे सत्ता पर हमेशा के लिए काबिज रहें।
मुसलमानों से नफरत का ये कारोबार मुसलमानों के खिलाफ तो है ही, यह मूलत: हिंदुओं के खिलाफ है। हिंदुओं को एक बर्बर कौम में बदला जा रहा है। उन्हें नफरत करने वाली ऐसी कौम में बदला जा रहा है जो न तो लोकतंत्र पसंद करेंगे, न कानून के शासन में भरोसा करेंगे, न ही सभ्य समाज में कोई आस्था रखेंगे। यह पूरा प्रोजेक्ट हिंदुओं को गुलाम बनाकर सत्ता में बने रहने की साजिश है।
धार्मिक नफरत का सियासी कारोबार कभी व्यक्ति या समुदाय के खिलाफ नहीं होता। वह देश के खिलाफ होता है। यह देश को फिर से एक बंटवारे की तरफ धकेलने की साजिश है, जिसका दूरगामी परिणाम बहुत भयानक होगा।
(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)