हिंदू और हिंदुत्व: राहुल गांधी वो कर रहे हैं जो समय की सबसे बड़ी जरूरत है

सौरभ बाजपेयी

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राहुल गांधी वो कर रहे हैं जो समय की सबसे बड़ी जरूरत है. हिंदू और हिंदुत्व का फर्क बताने के लिए हमें जान पर खेलना होगा. वरना यह हिन्दुत्ववादी हमारे राष्ट्र और धर्म दोनों को निगल जायेंगे. इसलिए राहुल गांधी जो कर रहे हैं वो ही असली राष्ट्रधर्म है.

हरिद्वार की धर्म संसद में जो हुआ वो हिन्दुत्ववाद है. हजारों सालों के विकासक्रम में ऐसा कभी नहीं हुआ. इस धर्म ने कभी सामूहिक हत्याओं का आह्वान नहीं किया. महर्षि चार्वाक प्रचंड भौतिकवादी थे. कर्म और कर्मफल की अवधारणा की खिल्ली उड़ाते घूमते रहे. किसी सनातनी ने उनकी ह्त्या का आह्वान नहीं किया.

शंकराचार्य शास्त्रार्थ करने निकले तो मंडन मिश्र के घर पहुंचे. शंकराचार्य ने दरवाजे पर ही शास्त्रार्थ की चुनौती दी. भारती ने अपने ही पति को चुनौती देने वाले को भीतर बुलाया. फिर शंकराचार्य वहीं रुके और शास्त्रार्थ हुआ. प्रश्न आया इस शास्त्रार्थ का निर्णायक कौन होगा? शंकराचार्य ने भारती का ही नाम सुझाया जो मंडन मिश्र की पत्नी थीं. धर्म की परिभाषा में यह सब के सब हिंदू थे.

कबीर इसी बनारस में पाखण्ड की ऐसीतैसी करते रहे. किसी हिंदू ने उनकी ह्त्या का आह्वान नहीं किया. आज के बनारस में हिन्दुत्ववादी उनका भला क्या हश्र करते? तुलसी और रहीम की मित्रता के किस्से मशहूर हैं. तुलसी के राम कभी रहीम की ह्त्या के लिए उकसायेंगे भला? रहीम धर्म से मुसलमान हैं, लौ लगी है कृष्ण से. आज के हिन्दुत्ववादी उन्हें धर्म परिवर्तन के लिए बाध्य कर देते.

मदारी मेहतर शिवाजी महाराज का एक मुसलमान सेवक था. उसने अपनी जान पर खेलकर औरंगजेब की कैद से उन्हें निकाला था. शिवाजी हिंदू थे, हिन्दुत्ववादी होते तो मदारी मेहतर की दाढ़ी नोंचकर जय श्रीराम बुलवा चुके होते. महाराणा प्रताप के एक विश्वस्त सहयोगी हसन खान मेवाती थे. हल्दीघाटी की लड़ाई में वो मानसिंह की सेना के खिलाफ लड़े थे. महाराणा प्रताप हिंदू थे, हिन्दुत्ववादी होते तो मेवाती को अकबर का एजेंट मानते रहते.

1857 में यह हिन्दुत्ववादी होते तो अजीमुल्लाह खां की ह्त्या का आह्वान करते. वो अजीमुल्लाह खां जो पेशवा नानासाहब के प्रधानमंत्री थे. अगर इनकी चलती तो 1857 में एक नहीं दो लड़ाईयाँ लड़ी जातीं. एक— हिंदू-मुसलमान मिलकर अंग्रेजों के खिलाफ लड़ते. दो—हिन्दुत्ववादी कट्टरपंथी मुसलमानों के साथ मिलकर हिंदू-मुसलमानों के खिलाफ लड़ते.

19वीं सदी के अंत में हिंदुत्व शब्द का राजनीतिक इस्तेमाल हुआ. लोग पूछते हैं आप सावरकर को क्यों नहीं मानते? हम कहते हैं उसकी बहुत वजहें हैं. उनमें से एक है— उन्होंने मेरे धर्म को हड़पने की साजिश रची. हिंदू को आज का पॉलिटिकल हिंदुत्व बनाने का श्रेय सावरकर को जाता है. इसीलिए भाजपा को सावरकर इस हद तक प्रिय हैं.

इसी पॉलिटिकल हिंदुत्व के घोड़े पर सवार होकर भाजपा उड़ रही है. हिन्दुओं को हिंदुत्ववादी बनाकर वो उनमें घृणा भर रही है. हिन्दुओं को हिंदुत्ववादी बनाकर वो उन्हें मूल मुद्दों से मोड़ रही है. हिन्दुओं को हिंदुत्ववादी बनाकर वो इस देश को शनैः शनैः बेच रही है. हिन्दुओं को हिंदुत्ववादी बनाकर वो इस देश की आत्मा घोंट रही है. हिन्दुओं को हिंदुत्ववादी बनाकर वो हमारे सनातन धर्म को राजनीतिक हथियार बना रही है.

राहुल गांधी हिंदू धर्म को हिन्दुत्ववादी हमले से बचाना चाहते हैं. हद हो गयी यार! या तो देशद्रोही-देशद्रोही खेलते हैं. या फिर धर्मद्रोही-धर्मद्रोही चिल्लाते रहते हैं. इनके भीतर का डर ही इन्हें जोर-जोर से चीखने को मजबूर करता है. न तो ये इस देश की फितरत से मेल खाते हैं, न इस धर्म की फितरत से. इनके फेर में पड़ गए हे हिन्दुत्ववादियों! जल्द से जल्द हिंदू हो जाओ, यही प्रार्थना है.

(लेखक राष्ट्रीय आंदोलन फ्रंट के संयोजक हैं, ये उनके निजी विचार हैं)