गुरुग्राम नमाज़ विवाद: अल्पसंख्यकों को ये अहसास दिलाया जाए कि वे दोयम दर्जे के नागरिक हैं।

पलश सुरजन

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पिछले दिनों सोशल मीडिया पर एक व्यथित करने वाला वीडियो सामने आया। इसमें एक मुस्लिम बुज़ुर्ग को नमाज़ पढ़ने से रोकने की कोशिश कुछ धर्मांध हिंदू कर रहे हैं। आस-पास की भीड़ जय श्रीराम के नारे लगा रही है। कुछ पुलिस वाले उन उत्पाती लोगों को रोकने की कोशिश कर रहे हैं और इस हंगामे के बीच वो बुजुर्ग जमीन पर नमाज़ पढ़ने बैठ रहे हैं। यह वीडियो दिल्ली से सटे गुरुग्राम का है, जहां पिछले कुछ वक्त से खुले में नमाज का मुद्दा जबरदस्ती विवाद का विषय बना दिया गया है। इसे लैंड जिहाद जैसे नाम देकर समाज में सांप्रदायिक तनाव बढ़ाने की साजिशें की जा रही हैं। गौरतलब है कि 2018 से ही कुछ इलाकों को चिन्हित कर खुले में नमाज़ की अनुमति प्रशासन ने दी हुई है। पहले 37 जगहें चिन्हित की गईं थीं, फिर इनकी संख्या घटाकर 29 कर दी गई।

हर जुमे को इन जगहों पर मुस्लिम समाज के लोग इबादत के लिए पहुंचते हैं। लेकिन पिछले कुछ समय से इसमें अनावश्यक तरीके से बाधा पहुंचाने की कोशिश हो रही है। उपरोक्त वीडियो ऐसी ही एक कोशिश का प्रमाण है। एक महीने पहले भी भाजपा नेता कपिल मिश्रा ने कुछ दक्षिणपंथी संगठनों के लोगों के साथ गुड़गांव के सेक्टर 12 ए के उस स्थान पर गोवर्धन पूजा में शिरकत की थी, जहां मुसलमान हर हफ़्ते नमाज़ अदा करते हैं। इधर खुले में नमाज़ रोकने के लिए नियोजित तरीकों की श्रृंखला में ट्रक खड़ा करना प्रदर्शनकारियों का नवीनतम हथियार है। इससे पहले पिछले दिनों कई गांवों के लोगों ने सेक्टर 37 थाने के पास दी गई जगह पर पहुंच कर हवन किया था और दावा किया था यह मुंबई आतंकी हमले के शहीदों को श्रद्धांजलि देने के लिए किया जा रहा है।

एक नमाज़ स्थल पर कुछ लोगों को क्रिकेट खेलते देखा गया था और एक अन्य स्थान पर पूजा की गई और बाद में वहां गोबर फेंक दिया गया। ये सारे हथकंडे महज इसलिए कि मुस्लिमों को खुले में नमाज़ पढ़ने से रोका जाए, अल्पसंख्यकों को ये अहसास दिलाया जाए कि वे दोयम दर्जे के नागरिक हैं। हालांकि संविधान में इस देश के सभी नागरिकों के लिए बराबरी का अधिकार दिया गया है, फिर चाहे वो किसी भी धर्म के अनुयायी हों और हर नागरिक को अपनी पूजा पद्धति के पालन की इजाज़त है।

गुरुग्राम की घटना बताती है कि कैसे संविधान की मर्यादा का हनन सायास किया जा रहा है और इसमें वो लोग भी शामिल हैं जो खुद को जनप्रतिनिधि मानते हैं। हिंदू-मुस्लिम के बीच इस तरह की सांप्रदायिकता के बीज बोने का सिलसिला केवल गुरुग्राम में ही नहीं है, देश के बाकी हिस्सों में यही कोशिश चल रही है। अभी कुछ समय पहले गृहमंत्री अमित शाह ने उत्तराखंड में हाईवे पर नमाज़ का मुद्दा उठाया था। उप्र में केशव प्रसाद मौर्य ने जालीदार टोपी और लुंगी वालों को हटाने वाला बयान दिया और भाजपा के लिए वाहवाही लूटना चाही।

इससे पता चलता है कि सांप्रदायिक वैमनस्य बढ़ाना इनका प्रमुख राजनैतिक एजेंडा है और सबका साथ जैसी बातें खोखली हैं। अगर प्रधानमंत्री या उत्तरप्रदेश और हरियाणा में मुख्यमंत्री इन घटनाओं और बयानों पर कड़ी आपत्ति जतलाते और ये कहते कि इस तरह की घटनाओं की पुनरावृत्ति नहीं होना चाहिए, तब तो ये माना जा सकता था कि प्रधानमंत्री वाकई सबको साथ लेकर चलने में यकीन करते हैं। लेकिन उनका मौन इन घटनाओं का समर्थन करते ही दिखता है।

देश की सरकार को और जनता को यह नहीं भूलना चाहिए कि पाकिस्तान का निर्माण धर्म के आधार पर हुआ था, जबकि हिंदुस्तान ने तो अपनी पुरानी तहजीब और संस्कारों को ही अपनाने का फैसला किया था। इसलिए यहां हरेक धर्मावलंबी के लिए बराबरी का स्थान सुनिश्चित किया गया। अगर हम भी धर्म आधारित देश बनाने की कोशिश करेंगे तो हमारी ख़ास पहचान गुम हो जाएगी। पाकिस्तान में धार्मिक कट्टरता के कारण लोकतंत्र का कैसा नुकसान हुआ, किस तरह कट्टरपंथियों के आगे सरकारें समर्पण करने मजबूर हुईं, यह भी हमारे सामने ही है। हम बात-बात पर खुद को पाकिस्तान से बेहतर बताते भी हैं, लेकिन यह गर्व हम कब तक कर पाएंगे, इस बारे में भी सोचना होगा।

वैसे पाकिस्तान में भी धार्मिक कट्टरता के खिलाफ आवाज़ उठती रही है। हाल ही में एक श्रीलंका के नागरिक की ईशनिंदा पर भीड़ ने हत्या कर दी। इस दुखद घटना पर पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान चुप नहीं रहे, बल्कि उन्होंने इसे पाकिस्तान के लिए ‘बेहद शर्मनाक दिन’ बताया, और श्रीलंकाई राष्ट्रपति गोटाभाया राजपक्षे से बात कर सख्त कार्रवाई का आश्वासन दिया। इस मामले में अब तक कई गिरफ्तारियां भी हो चुकी हैं। पाकिस्तान के राष्ट्रपति, मानवाधिकार मंत्री, कुछेक कलाकारों ने भी इस घटना की निंदा की। वहीं पाकिस्तान की पत्रकार यूसरा असक़री ने इस घटना पर अफ़सोस जताते हुए ट्वीट में सवाल पूछा है, ‘हम क्या हो गए हैं?’ इस वक्त भारत में भी नागरिक समाज को यही सवाल खुद से करने की ज़रूरत है कि हम क्या हो गए हैं।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)