आज की तारीख में मोदी सरकार का सबसे बड़ा दुश्मन कौन है? वही जिस पर सरकार सबसे ज्यादा भरोसा करती है। जी हां गोदी मीडिया। गोदी मीडिया खबरों को छुपाकर सोचता है कि उसने सरकार की सबसे बड़ी सेवा कर दी। जबकि सच यह है कि खबरों को छुपाकर वह अपने मालिक के साथ बहुत बड़ा धोखा कर रहा है। राजा नवाबों के यहां भी भी वे खबरची सबसे नालायक माने जाते थे जो अप्रिय सत्य को दबाकर उन्हें केवल मीठी मीठी बातें ही बताते थे। दुश्मन की फौज महल के अंदर तक आ जाती थी मगर राजा, नवाब को इसी भ्रम में रखा जाता था कि आस पड़ोस के सारे राजाओं से ज्यादा बहादुर वे हैं। लोकप्रियता के मामले में तो दूर विदेशों के राजा महाराजा भी आपका मुकाबला नहीं कर सकते।
किसान आंदोलन और फिर रविवार की मुज्जफरनगर की महा किसान पंचायत की खबरें टीवी ने तो गायब की हीं, इस बार अख़बार भी उन्हीं की तरह बेशर्मी की राह पर चल पड़े। कई हिन्दी अखबारों में यह खबर थी ही नहीं या अंदर बिल्कुल दबा कर नकारात्मक तरीके से छापी गई। हिन्दी अखबारों की बात खासतौर पर इसलिए कि जहां लाखों लोग इकट्ठा हुए वहां हिन्दी ही पढ़ी या बोली जाती है। वहां आने वाले हिन्दी अखबारों में अगर उनकी ही खबर नहीं होगी या गलत तरीके से होगी तो वे मीडिया का सम्मान कैसे कर सकेंगे? न्यूज चैनलों पर से उनका विश्वास पहले ही हट गया था अब अखबारों ने भी अपनी विश्वसनीयता खो दी।
लेकिन जनता क्या सोचती है? इससे गोदी मीडिया को कोई फर्क नहीं पड़ता। वह अब जनता के लिए काम करती भी नहीं है। आश्चर्य जनक रूप से तमाम पत्रकार और संपादक भी अब यह कहने लगे हैं कि मीडिया का जनता से क्या संबंध? टीवी वाले अपने झूठ को सच बताने के लिए बीच बीच में खुद ही आपस में डिबेट करने लगते हैं, जिनमें एक उनका संपादक और दूसरी उनकी सबसे तेज बोलने वाली एंकर बैठ जाती है और वे आपस में सवाल जवाब करते हुए कहते हैं कि हमें कोई यह न बताए कि पत्रकारिता क्या है?
खैर उन्हें बताने कौन जा रहा है। उन्हें तो समय ही बताएगा। लेकिन उन्हें यह पता नहीं है कि उनसे बहुत पहले यह कहा जा चुका है कि अख़बार ( तब मीडिया मतलब अख़बार ही था, टीवी की गंदगी नहीं आई थी) और पत्रकारिता का क्या रिश्ता? सबसे तेज जिस सबसे ऊंचे मुकाम पर नहीं पहुंच सका और उससे पहले ही पतन के गड्डे में गिर गया उससे बहुत बड़े मीडिया ग्रुप के मालिक यह कह चुके हैं कि हम खबरों के बिजनेस में नहीं विज्ञापन के धंधे में हैं।
लेकिन किसे पता था कि विज्ञापन का यह धंधा एक दिन गिरते गिरते खुले आम झूठ और नफरत का धंधा बन जाएगा। लोगों की लिंचिग करवाने लगेगा। साम्प्रदायिकता फैलाने लगेगा। और इसकी आग उन्हें भी नहीं बख्शेगी जो इसे भड़काते हैं। मुज्जफरनगर में यही हुआ। रात दिन नफरत फैलाने वाले, किसानों को खालिस्तनी, मवाली, गुंडे कहने वाले एक चैनल की एंकर जब मुज्जफर नगर पहुंची तो लोगों ने उसका विरोध किया।
इसका मतलब? इसका मतलब यह है कि जनता के सब्र का पैमाना छलकने लगा है। आप मीडिया हो तो इसका मतलब यह नहीं कि कुछ भी बोलते रहो, और जिस के खिलाफ बोल रहे हो उससे यह उम्मीद करते रहो कि वह आपको अपना माई बाप भी कहता रहेगा! एक तरफ वहां जनता ने गोदी मीडिया को खदेड़ा तो दूसरी तरफ यह दृश्य भी देखने को मिला कि टीवी का एक पुराना पत्रकार जिसे अपनी नौकरी इसलिए गंवा देना पड़ी थी कि सरकार की निगाहों में वह क्रान्तिकारी पत्रकार था जब पसीने से लथपथ ग्राउंड रिपोर्टिंग कर रहा था तो एक किसान चुपचाप पास आकर उसका पसीना पोंछने लगा। जनता के प्रेम की यह सौगात गोदी मीडिया के स्वयंभू स्टार बने एंकरों और पत्रकारों को कभी नसीब नहीं हो सकती। सुप्रीम कोर्ट तक ने इन्हें झाड़ पिलाई कि इस मिडिया ने तबलीगी जमात के मामले में पूरी इकतरफ रिपोर्टिंग की। झूठ बोला कि हमने थूकते हुए देखा। नंगे घूम रहे थे। बिरयानी मांग रहे थे। पत्रकार इस दौर में भौंपू से भी बदतर स्थिति में पहुंच गए हैं। सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस एनवी रमना को यहां तक कहना पड़ा कि खबरों को इस तरह सांप्रदायिक रंग देना देश और समाज के लिए बहुत खतरनाक है। इससे देश की छवि विकृत हुई है।
लेकिन इन सब आलोचनाओं, जनता के विरोध का गोदी मीडिया पर कोई असर होगा कहना मुश्किल है। हां लेकिन जैसा कि इस लेख के शुरू में लिखा कि यह गोदी मीडिया जिस तरह अपने मालिक को गलत सूचनाएं दे रहा है, या दे ही नहीं रहा वह उसके लिए सबसे घातक बनेगा। घातक तो दोनों के लिए बनेगा। क्योंकि सरकार भी इसी मीडिया के भरोसे 9 महीने से किसानों की मांग अनसुनी कर रही है। यही मीडिया रोज दिखाता है, बताता है कि किसान टूट गया है। घर वापस चला गया है। हमने उससे बात की है वह सरकार के साथ है। लेकिन मुज्जफरनगर की ऐतिहासिक पंचायत ने बता दिया कि न किसान टूटा है और न ही वह सरकार के साथ है। उसके पास खेती किसानी का परंपरागत असिमित धीरज है इसलिए वह इतने लंबे समय से चुपचाप बैठा है। सारे मौसम निकल गए।
पिछले साल जब किसान दिल्ली के बार्डर पर आकर बैठा था सर्दियां शुरू हो रही थीं। उसने पूरी कड़कड़ाती सर्दी, भीषण गर्मी और ये बरसात खुले में निकाल दी। मगर उसकी हिम्मत नहीं टूटी। पता नहीं किसी ने सरकार को बताया या नहीं कि देश में किसान ही एक ऐसा समुदाय है जो अंग्रेजों के अत्याचार से लेकर जमींदारों, सामंतों के जुल्म तक किसी के आगे नहीं झुका। इसके आंदोलन ने ही देश के सारे बड़े नेता पैदा किए हैं। गांधी चंपारण किसान आंदोलन से, नेहरू अवध किसान आंदोलन से होकर निकले थे। अब यह नया किसान आंदोलन कई मजबूत नेताओं को निकालेगा। जिस मुज्जफरनगर में 2013 में दंगा करवाकर देश भर में हिन्दु मुसलमान किया और वोट पाए वही मुज्जफरनगर अब फिर हिन्दु मुसलमान एकता की मिसाल बन रहा है।
सरकार पर और भाजपा को वोट राजनीति पर जब इस एकता की चोट पड़ेगी तो इन दोनों का नजला सबसे पहले गोदी मीडिया पर ही गिरेगा। अभी तक गोदी मीडिया यह कहता है कि आप चिंता नहीं करो। कुछ भी होगा हम संभाल लेंगे। नफरत और विभाजन की नई कहानियां शुरु कर देंगे। हिन्दु मुसलमान का कोई नया मामला बना देंगे। लेकिन जैसा कि मुज्जफरनगर ने बताया कि झूठ हमेशा नहीं चलता। वहां देश भर से किसान आया था। वह गांव गांव में जाकर बताएगा कि किसान डरा नहीं है। साथ ही यह भी पूछेगा कि यहां टीवी ने दिखाया क्या? अख़बार में आया क्या? और जब उसे गांव वाले बताएंगे कि यहां को सन्नाटा था। तो वह कहेगा कि यह मीडिया फर्जी है। और गांव, देहातों में आज भी यात्रा करके आए, शहर होकर आए आदमी की बात बहुत ध्यान से सुनी जाती है। और मुंह ही मुंह में होती हुई वह सब जगह फैल जाती है।
मीडिया फर्जी! यह सच्चाई जिस दिन फैल गई वह दिन मीडिया के लिए सबसे खराब दिन होगा। जब जनता ही फर्जी कह रही है तो उसे गोद में बिठाए रखने का क्या तुक है? जनता को बेवकूफ बनाने के लिए ही तो इसे रखा था। अब जनता इसकी असलियत समझ गई है तो फेंको उतार कर। लेकिन मीडिया याद रखे फेंका भी ऐसे ही नहीं जाएगा। उससे पहले एक एक हिसाब किया जाएगा। कि तुमने हमें डुबोया है। तुमने झूठ की मीठी चाशनी हमारे कानों में घोली है। हमें बरबाद करके ऐसे ही नहीं चले जाओ। लो यह रहा तुम्हारा हिसाब।
मीडिया को उस दिन के लिए तैयार रहना चाहिए। उसके साथ क्या होगा कहना मुश्किल है। मगर हां यह दुआ, प्रार्थना कर सकते हैं कि जैसा उसने जनता की लींचिंग करवाई, घर उजाड़े, बच्चों को अनाथ बनाया, मां बाप से उनके जवान बेटे, बेटियां छीने ऐसा उसके साथ क्या किसी के साथ भी न हो। उसे सज़ा मिले मगर कानूनी। जेल जाएं, मुकदमा चले जनता देखे कि कल तक नफरत और झूठ का प्रचार कर रहे ये पत्रकार, एंकर किस तरह दया, न्याय, क्षमा की गुहारें लगाते हैं!
(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)