कृष्णकांत
अफवाह और मॉब लिंचिंग महात्मा गांधी के लिए कोई नई बात नहीं है। अंग्रेजों ने भी ऐसा प्रयास किया था, लेकिन हार गए थे। नवंबर, 1896 में गांधी भारतीय समुदाय के बुलावे पर दोबारा दक्षिण अफ्रीका जा रहे थे। साथ में परिवार भी था। उधर, गांधी के ‘ग्रीन पंफलेट’ ने वहां तूफान मचा रखा था। यह एक पुस्तिका थी जिसमें भारतीयों की समस्याओं को उठाया गया था। इस पुस्तिका को लेकर अफवाह फैलाई गई थी कि गांधी ने इसमें गोरे यूरोपियों के बारे में बुरा-भला लिखा है। भारत में उन्होंने गोरों के खिलाफ अभियान चला रखा है और अब वह दो जहाजों में भारतीयों को लेकर आ रहे हैं जिनको नेटाल में बसाया जाएगा।
गांधी का जहाज जब डर्बन पहुंचा तो वहां उन्हें उतरने नहीं दिया गया। वहां पहले से मौजूद भीड़ गांधी को मारने पर आमादा थी। जहाज 21 दिनों तक प्रशासन के नियंत्रण में समुद्र में ही खड़ा रहा। भीड़ मांग कर रही थी कि या तो दोनों जहाजों को वापस भेज दिया जाए वरना उसे डुबा देंगे। गांधी ने पत्नी और बच्चों को एक गाड़ी में अपने दोस्त जीवनजी रुस्तमजी के यहां भेज दिया। उनकी योजना थी कि वे बाद में किसी तरह छिपकर निकल जाएंगे।
जहाज के रेलिंग के पास खड़े गांधी परिवार को जाते हुए देख रहे थे, तभी भीड़ ने उन्हें पहचान लिया और टूट पड़ी। भीड़ का हमला इतना खौफनाक था कि गांधी को कुछ नहीं सूझा। वे रैलिंग पर ही झुक गए और पीटती रही। डरबन के पुलिस सुपरिंटेंडेंट आरसी अलेक्जेंडर की पत्नी सारा अलेक्जेंडर वहां से गुजर रही थीं। उन्होंने देखा कि भीड़ किसी को बेरहमी से पीट रही है। वे पास पहुंची तो देखा गांधी को पीटा जा रहा है। वे तुरंत गांधी के ऊपर झुक गईं। इसी दौरान किसी ने मिस्टर अलेक्जेंडर को खबर कर दी और तत्काल पुलिस आ गई। गांधी को बचाया गया।
इस हमले में गांधी को गंभीर चोटें आईं, कपड़े फट गए थे और पूरे शरीर पर गहरे जख्म हो गए थे। उन्हें रुस्तमजी के घर पहुंचाया गया तो भीड़ वहां भी पहुंच गई। भीड़ दरवाजा तोड़कर घर में घुसना चाहती थी लेकिन पुलिस ने गांधी को सिपाही के भेष में वहां से बाहर निकाल लिया। भारत से लेकर ब्रिटेन तक खबर फैली कि गांधी को फांसी दी जाएगी। उधर ब्रिटेन की सरकार ने दंगाइयों के खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया। गांधी से पूछा गया कि हमला करने वाले कौन लोग थे। गांधी ने कहा, हमें कोई कार्रवाई नहीं करनी है। हमलावर नौजवान थे, रायटर द्वारा गलत खबर प्रसारित करने के कारण भ्रमित हो गए थे। उन्होंने लिखित में यह बात प्रशासन को सौंप दी।
अगले दिन अखबार पढ़कर दक्षिण अफ्रीका चकित रह गया। सरकार के आदेश के बावजूद गांधी ने किसी कार्रवाई से मना कर दिया। जो लोग गांधी की जान के प्यासे थे, उनमें से बहुत लोग उनके चाहने वाले बन गए।
तब गांधी की उम्र 27 साल की थी और वे व्हाट्सएप पर सनक भरे मैसेज फॉरवर्ड नहीं कर रहे थे। दुनिया में उनकी धाक जमनी शुरू हो गई थी। उनके महात्मा बनने का सफर शुरू हो गया था। अब बम फोड़ने वाले, दंगा करने वाले और दिनरात नफरत बांटने वाले गांधी को बुरा भला तो कहेंगे ही। वे तब भी गांधी से नफरत करते थे, अब भी करते हैं। आज गांधी जीवित होते तो शायद यही कहते कि ‘वे गलत विचार के प्रभाव में आकर मनुष्यता से च्युत हुए लोग हैं। उन पर कोई कार्रवाई मत करो। उस विचारधारा को दफन कर दो जो नफरत और हिंसा फैलाती है’। जिन्होंने गांधी पर अनगिनत पत्थर फेंके थे, उनकी अगली नस्लें आज गांधी की मूर्तियों पर फूल बरसा रही हैं। अभी-अभी मैनचेस्टर में नई मूर्ति का अनावरण किया गया है। हमारे इस अनूठे पुरखे से नफरत करने वाले कौन लोग हैं, आप खुद ही अंदाजा लगा लें।