कई साल के घृणा अभियानों के बावजूद हमारा महात्मा फिर जीत गया। थोपी हुई महानता और फर्जी फकीरी ने एक बार फिर से घुटने टेक दिए। यह पिछली सदी में भी हुआ था। यह अगली सदियों में भी होगा। आप देख सकते हैं कि घृणा अभियान में शामिल भाड़े के पद्मश्री शूटर आंसू बहा रहे हैं कि ‘यह देश तो जेहादियों का गया है।’ उनकी नफरत की अदाकारी जारी रहने के लिए मजहबी नफरत चाहिए, उन्हें खुद जिंदा रहने के लिए सियासी जेहाद चाहिए, लेकिन जनतंत्र में नफरत कब तक राज करेगी? जनतंत्र में तो जनता ही राज करेगी।
यह गांधी का देश है। कभी गांधी ने घोषित किया था कि यह देश किसानों का है। गांधी का रास्ता अहिंसा और सत्याग्रह का था। किसानों ने गांधी के उसी अहिंसक सत्याग्रह के जरिये एक हिंसक और जिद्दी प्रशासन से जीत हासिल की है। यह गांधी का अंतिम आदमी जीता है। यह हमारा भारत जीता है। राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने लिखा था, “किसान ही इस देश का असली राजा है। अगर वह अनाज उगाना बंद कर दे तो हम खाएंगे क्या? हमारे देश में 80 फीसदी से ज्यादा जनता किसान है। सच्चे प्रजातंत्र में हमारे यहां राज किसानों का होना चाहिए।”
किसान ही असली राजा है यह बात भारत के इतिहास में बार-बार साबित हुई है। भारत की धरती पर अंग्रेजों की हार की पटकथा भी विद्रोही किसानों से शुरू होती है। महात्मा गांधी का राजनीतिक जीवन भी बिहार के चंपारण में किसान आंदोलन से शुरू हुआ जब उन्होंने नील की खेती करने वाले किसानों को शोषण से मुक्ति दिलाई।
महात्मा गांधी के विचारों से प्रभावित सरदार वल्लभ भाई पटेल का भी जीवन बारदोली सत्याग्रह से शुरू हुआ जो कि किसानों का ही गांधीवादी आंदोलन था। इसी आंदोलन के बाद सरदार पटेल, गांधी जी के बेहद करीब आ गए थे। एक तरह से देखें तो किसानों के शोषण और उससे छुटकारा पाने की छटपटाहट ने ही गांधी और पटेल जैसे नेताओं को राष्ट्रीय फलक पर स्थापित किया और उनकी लोकप्रियता बढ़ती चली गई।
जैसे-जैसे किसानों को शोषण से निजात मिलती गई, जैसे-जैसे उनको अधिकार मिलते गए, देश के किसानों के बीच गांधी जी लोकप्रिय होते गए। इस तरह पूरा भारत एकजुट हो गया और अंग्रेजों को जाना पड़ा। यही हाल आज नरेंद्र मोदी का है। आजकल यूपी में चुनाव का माहौल है। मोदी और अमित शाह बार-बार यूपी आ रहे हैं। बीजेपी और सरकार की अंदरूनी रिपोर्ट है कि बीजेपी इस चुनाव में बुरी तरह हारेगी, क्योंकि किसान उनसे नाराज हैं। यूपी और हरियाणा के किसान बीजेपी नेताओं को अपने गांव में घुसने नहीं दे रहे हैं। किसान इस सरकार के खिलाफ एकजुट हैं।
इस रिपोर्ट से डरे नरेंद्र मोदी ने फटाफट काले कृषि कानून वापस लेने की घोषणा कर दी। जिस पार्टी के नेता कुछ दिन पहले तक किसानों को आतंकवादी बता रहे थे, वे आज किसान भक्त हो गए हैं। जो नेता 700 से ज्यादा किसानों की मौत पर नहीं पसीजे, वे हार के डर ने उनका दिमाग ठीक कर दिया है। यही लोकतंत्र की ताकत है। लोकतंत्र की जय!
(लेखक जाने माने पत्रकार एंक कथाकार हैं)