अब्दुल माजिद निज़ामी
अफगानिस्तान में हुई दानिश सिद्दीकी की हत्या ने अंदर तक झिंझोड़ दिया है। दानिश की हिम्मत है जो अफगानिस्तान के ऐसे मौजूदा हालात में वहाँ पत्रकारिता कर रहा था, जिन हालातों को देखते हुये भारत सरकार ने 10 जुलाई को कंधार में वाणिज्य दूतावास से लगभग 50 राजनयिकों, सहायक कर्मचारियों और सुरक्षा कर्मियों को भारतीय वायु सेना की उड़ान से निकाला और वापस बुलाया। 13 जुलाई को भी मौत दानिश को छू कर निकल गयी थी। दानिश ने 13 जुलाई को अपने ट्वीट में लिखा था- जिस हम्वी (बख्तरबंद गाड़ी) में मैं अन्य विशेष बलों के साथ यात्रा कर रहा था, उसे भी कम से कम 3 आरपीजी राउंड और अन्य हथियारों से निशाना बनाया गया था। मैं लकी था कि मैं सुरक्षित रहा और मैंने कवच प्लेट के ऊपर से टकराने वाले रॉकेटों के एक दृश्य को कैप्चर कर लिया।’
उसने ट्वीट करके ख़ुद को लकी बताया था। लेकिन मेरा दोस्त शायद भूल गया था कि क़िस्मत हर बार मेहरबान नही होती या फिर पत्रकारिता के जूनून ने उसे वहाँ से वापस नही आने दिया। दिल बार-बार यह सवाल कर रहा है कि एक पत्रकार की क्या ग़लती होती है,क्यों उसे निशाने पर लिया जाता है। पत्रकार सिर्फ इतना ही करता है कि हर ख़बर को सच्चाई के साथ जनता के सामने लाना चाहता है। इसके पीछे उसका लालच नही,बल्कि सच को दिखाने का एक जूनून होता है। सबसे ज़्यादा गर्मी वाले दिन जब कोई बाहर नही निकलता तब वो धूप में खड़े होकर बताता है कि आज सबसे ज़्यादा गर्मी है, जब सबसे ज़्यादा सर्दी होती है और लोग रजाई में दुबके होते हैं तो वो पत्रकार ही होता है जो बाहर निकल कर सर्दी का हाल बताता है। इसी तरह बारिश में भीगते हुये पत्रकारिता करता है। इसके अलावा कहाँ पानी भरा है,कहाँ सडकें टूटी हैं, कहाँ लाइट नही है, जैसी अन्य जनसमस्याओं को भी पत्रकार उठाता है।
मौसम और जनसमस्याओं से हटकर बात करें तो पत्रकार समाज में सुधार लाने का भी लगातार प्रयास करता है। हमारी नस्लों को नशे, जुए और दूसरे अपराधों से बचाने के लिए अपराधियों के ख़िलाफ़ लिखता है। ज़मीनों पर अवैध कब्जों को लेकर भूमाफियाओं के ख़िलाफ़ लिखता है। सरकारी विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार को उजागर करता है। जिससे अपराधी उसकी जान के दुश्मन बन जाते हैं। भ्रष्ट अधिकारी उसे झूठे केस में फंसाने के मंसूबे बनाते हैं, उसे प्रताड़ित करते हैं।
यह सब करके पत्रकार को मिलता क्या है? अपराधी और अधिकारी उसके दुश्मन बन जाते हैं। इन सबको भी पत्रकार किसी प्रकार बर्दाश्त कर लेता है। लेकिन दर्द तब होता है, जब जिन लोगों,जिस समाज के लिए वह लड़ रहा है,अपनी जान जोखिम में डाल रहा है,वही उसे दलाल मीडिया और बिकाऊ मीडिया जैसे शब्दों से पुरस्कृत करते हैं। तब एक पत्रकार को एहसास होता है कि पत्रकार होना आसान नही है। इसके लिए जान से लेकर सम्मान तक सब कुछ दाँव पर लगाना पड़ता है। कभी सोच कर देखना यदि पत्रकार न हो तो सत्ता,अपराधी और अधिकारी सब बेलगाम हो जाएँ। कोई भी घटना होने पर पुलिस के बाद पत्रकार की याद आती है। जब कहीं सुनवाई नही होती तो पत्रकार का सहारा लिया जाता है। काम निकलने से पहले पत्रकार से अच्छा कोई आदमी नही होता और काम निकलने के बाद पत्रकार से बुरा आदमी नही होता।
मेरी सब लोगों से अपील है कि एक पत्रकार के दर्द को समझें, उसे वो सम्मान दें,जिसका वो हक़दार है। कुछ लोगों के ग़लत होने से पूरे पत्रकार जगत पर ऊँगली न उठायें। हम आपके लिए ही लड़ रहे हैं और इंशाअल्लाह लड़ते रहेंगे।
(लेखक हिंद न्यूज़ के ग्रुप एडिटर हैं)