गुजरात 2002 से भी सौहार्द का पैग़ाम लेकर आये थे डा.कल्बे सादिक़

नवेद शिकोह

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

ये बात कम ही लोग जानते हैं कि गुजरात दंगों की नफरत के शोले से भी डा.कल्बे सादिक साम्प्रदायिक सौहार्द, भाईचारे और मोहब्बत का पैग़ाम लेकर लखनऊ वापस आये थे। गोधरा ट्रेन कांड के बाद गुजरात दंगे शुरू हो चुके थे। इन दंगों की नफरत देश के कोने-कोने मे फैल रही थी। मीडिया भी आग बुझाने के बजाय आग लगा रही थी।

उस वक्त विश्वविख्यात धर्मगुरु डा. कल्बे सादिक गुजरात दंगों से सुरक्षित निकलकर लखनऊ आये थे। और उन्होंने गुजरात में हिन्दू-मुसलमान के बीच नफरत की हिंसा की आग में भी दोनों धर्मों के बीच मोहब्बत और सौहार्द की मिसाल ढूंढ कर मुझसे इसकी दलील पेश की थी।

गुजरात से लखनऊ लाये डा. कल्बे सादिक के इस मोहब्बत के पैगाम को मीडिया ने तवज्जो ही नहीं दी थी। मुझे याद है अमर उजाला के लखनऊ कैंट रोड स्थित ब्यूरो कार्यालय में मेरे सीनियर पत्रकार मरहूम मनोज श्रीवास्तव ने मुझसे कहा कि डा.कल्बे सादिक गुजरात से लखनऊ वापस आये हैं,उनसे बात कर लो। मैंने डाक्टर सादिक को उनके लखनऊ स्थित आवास पर लैंडलाइन फोन के ज़रिए बात की तो उन्होंने बताया कि वो एक मजलिस पढ़ने गुजरात गये थे। वहां दंगों की शुरुआत हो चुकी थी। लेकिन उन्हें ये अंदाजा नहीं था कि इतना जबरदस्त फसाद और नरसंहार हो जायेगा।

इस दौरान गुजरात के तत्कालीन मुख्यमंत्री नरेन्द्र मोदी सरकार के श्रम मंत्री उनके पास बहुत हड़बड़ाहट मे आये और बोले डाक्टर साहब मैं आपको एयरपोर्ट छोड़ने जाऊंगा। मौलाना कल्बे सादिक साहब ने मुझे बताया कि उस हिंदू भाई (मोदी की गुजरात सरकार के श्रम मंत्री)ने मुझे गुजरात से सुरक्षित लखनऊ पंहुचाने के लिए एयरपोर्ट तक छोड़ा। और मैं ख़ैरियत से सही सलामत गुजरात से लखनऊ वापिस हुआ।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)