पूर्व IPS का लेख: नफरती बयानबाज़ी का दौर और सरकार का डैमेज कंट्रोल

नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल के बयानों को लेकर पहले से ही अरब देशों के विरोध  का सामना करना पड़ रहा है। वहीं अब ऑस्ट्रेलिया में बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या ने, ऑस्ट्रेलिया-इंडिया यूथ डायलॉग समिट में, इस्लाम को लेकर एक ऐसा बयान दे दिया है कि, उन्हें वहां भी विरोध का सामना करना पड़ गया। सिडनी के एक कॉलेज में तेजस्वी सूर्या ने, एक निजी समारोह में, हलाल भोजन पर प्रतिबंध लगाने का आह्वान किया। कुछ छात्र संगठनों और मुस्लिम समूहों ने बीजेपी सांसद की इस यात्रा के खिलाफ विरोध प्रदर्शन किया, जिसके कारण उनका सार्वजनिक कार्यक्रम रद्द भी कर दिया गया।

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पिछले साल तेजस्वी सूर्या ने बयान दिया था कि जो हिन्दू, इस्लाम और ईसाई धर्म में कन्वर्ट हुए हैं, उन्हें वे फिर से हिन्दू धर्म में कन्वर्ट करवाएंगे। इस बयान का काफी विरोध हुआ था, और बीजेपी नेतृत्व ने उन्हें ऐसे बयानों से बचने की चेतावनी दी थी, जिसके बाद उन्होंने अपने बयान को वापस ले लिया था। नूपुर शर्मा के बयान के विरोध से अभी, बीजेपी उबर भी नहीं पाई थी कि अब बीजेपी सांसद तेजस्वी सूर्या के बयान ने पार्टी की मुश्किलें और बढ़ा दी हैं। मुस्लिम संगठन पहले से ही नूपुर शर्मा और नवीन जिंदल की गिरफ़्तारी की मांग कर रहे हैं। 17 से अधिक देश आधिकारिक आपत्ति जता चुके हैं, जिसमें यूएई, ईरान, सऊदी अरब, ओमान, कतर, जॉर्डन, अफगानिस्तान, बहरीन, मालदीव, लीबिया और इंडोनेशिया आदि शामिल हैं। इनके सचिवालय से संदेश जारी हुआ है और वो संदेश किसी बीजेपी या संघ के नाम नहीं, भारत के नाम जारी हुआ है।

देश, सरकार और सत्तारूढ़ दल तीनो अलग अलग हैं। देश एक राजनैतिक भौगोलिक क्षेत्र होता है, जो संविधान में परिभाषित और व्याख्यायित है, सरकार, जनता द्वारा चुने गए संसद में बहुमत प्राप्त दल का वह समूह होता है जो मंत्रिमंडल का निर्माण करता है और संविधान में उसे कार्यपालिका कहा गया है, यानी एक्जीक्यूटिव और सत्तारूढ़ दल वह होता है जो सदन में बहुमत पाकर सरकार बनाता है। तीनों अलग अलग है और तीनों को एक में ही समाहित कर के देखने की प्रवृत्ति अधिनायकवादी प्रवित्ति है।

कतर ने दोहा स्थित भारतीय राजदूत को तलब कर के कहा कि भारत को माफी मांगनी चाहिए और उसे ऐसी गतिविधियों पर नियंत्रण रखना चाहिए। लेकिन पैगंबर के खिलाफ आपत्तिजनक बयान न तो सरकार के किसी मंत्री ने दिया है और न ही यह सदन में दिया गया है, बल्कि यह बयान दिया है, सत्तारूढ़ दल भाजपा के अधिकृत प्रवक्ता ने। अधिकृत प्रवक्ता का बयान, पार्टी का ही बयान माना जाता है और इस बयान के खिलाफ विपरीत प्रतिक्रिया तब भी हुई थी, जब यह बयान सार्वजनिक हुआ था, और कुछ मुकदमे भी दर्ज हुए थे। पार्टी तब भी चुप थी और सरकार खामोश।

आज का समय संचार क्रांति का है। मैं जो कुछ भी यहां लिखता बोलता रहता हूं, वह केवल मेरे मित्र और पब्लिक के ही कुछ लोग ही नहीं पढ़ते सुनते हैं, बल्कि, यह दुनियाभर में कहीं भी पढ़ा सुना जा सकता है। पिछले 8 सालों में देश में जो सामाजिक विभाजनकारी वातावरण बनाया गया है वह एक धर्म विशेष यानी मुस्लिम समाज को केंद्र में रख कर बनाया जा रहा है। पर पिछले आठ सालों में देश में कोई व्यापक दंगा नहीं हुआ, हालांकि इसका श्रेय भले ही सरकार ले ले, पर दंगा न भड़कने का कारण, सरकार के प्रयास नहीं बल्कि दोनो समुदायों का बेहद भड़काऊ बयानबाजियों के बीच एक प्रशंसनीय धैर्य धारण करना है। नहीं तो सरकार ने अपने दल के लोगों पर ऐसा कोई नियंत्रण नहीं रखा जिससे भड़काऊ बयानबाजी बंद हो जाय और जनता में विश्वास बहाली हो सके।

अब यदि आज कतर द्वारा यह कहा जा रहा है, कि भारत माफी मांगे तो सरकार द्वारा कतर को यह स्पष्ट कर दिया जाना चाहिए कि, नूपुर शर्मा का बयान, भारत की जनता या भारत सरकार का कोई अधिकृत स्टैंड नहीं है और जैसा कि, भाजपा ने अपनी प्रेस विज्ञप्ति जारी कर के कहा भी है कि, यह कुछ बाहरी तत्वों (फ्रिंज एलीमेंट) का बयान है। जब हम आज़ादी के पचहत्तरवे साल में, अमृत महोत्सव मना रहे हैं तो, एक देश द्वारा यह कहा जाना कि इस आपत्तिजनक बयान के लिए पूरा देश माफी मांगे, एक बेहद अपमानजनक क्षण है। साथ ही, भारतीय विदेशनीति के विशेषज्ञों के लिए  भी एक इम्तहान का वक्त है कि वे कैसे एक पागलपन और अनावश्यक बयान से उत्पन्न समस्या से वे निपटते हैं।

सरकार को, अरब देशों को ही नहीं बल्कि दुनियाभर के देशों को यह समझाना होगा कि, जो कुछ भी हुआ है उससे सरकार और देश बिलकुल सहमत नहीं है और ऐसे तत्वों के खिलाफ मुकदमे दर्ज हैं तथा भारतीय कानून के अनुसार कानूनी कार्यवाही भी की जा रही है। अब यह प्रकरण समाप्त किया जाना चाहिए। रहा सवाल भाजपा का तो, यह जिम्मेदारी राजनीतिक दल की है कि, वह भविष्य में ऐसे अप्रिय प्रकरण न उठें, उसके लिए, उचित कदम उठाये। साथ ही, सरकार द्वारा ऐसे बयान देने वालों के खिलाफ कानूनी कार्यवाही भी की जानी चाहिए, जिससे दुनिया में यह संदेश भी जाय कि हम ऐसे किसी भी आपत्तिजनक बयान को जो, भारतीय कानून में दंडनीय अपराध है, कानून के उल्लंघन के रूप में लेते हैं, और उसके खिलाफ विधिसम्मत कार्यवाही भी कर रहे हैं। भाजपा ने अंततः एक गाइड लाइन अपने प्रवक्ताओं के लिए जारी भी की है। अब देखना यह है कि भाजपा के प्रवक्ता, उक्त गाइड लाइन का कितना पालन करते हैं। उम्मीद है कि वे, उसका पालन करेंगे और दुबारा ऐसी अप्रिय स्थिति नहीं आने देंगे जिससे देश को फिर दुनिया के सामने शर्मसार होना पड़े।

नूपुर शर्मा जिस चैनल के डिबेट में बैठी थीं वह चैनल सांप्रदायिक नफरत फ़ैलाने और प्रोपेगेंडा डिबेट के लिए कुख्यात है। डिबेट भी एक ऐसे मामले में हो रही थी, जो अदालत के जेरे सुनवाई है। मामला था, ज्ञानवापी मस्जिद विवाद का। यह मामला सुप्रीम कोर्ट के भी विचाराधीन है और अब जिला जज वाराणसी इसके मेंटेनेबिलिटी पर सुनवाई कर रहे हैं। इसी बीच सुप्रीम कोर्ट और जिला जज कोर्ट द्वारा बार बार यह कहने पर कि, यह सर्वे रिपोर्ट और वीडियो मीडिया को लीक नहीं होनी चाहिए, वह वीडियो न केवल लीक हुआ, बल्कि राष्ट्रीय चैनलों पर प्रसारित भी हुआ और उस पर बहस भी हुई। बहस में जब आपत्तिजनक शब्दों का आदान प्रदान शुरू हुआ तभी न्यूज एंकर को इसे ऑफ एयर कर देना चाहिए था। लेकिन जब इरादा ही आग लगाने का हो तो वे क्यों ऐसे अभद्र और अपत्तिजनक बहस को ऑफ एयर करेंगे। बात बनारस से शुरू हुई और मक्का तक पहुंच गई।

नूपुर शर्मा के बयान पर जो उन्होंने पैगंबर मोहम्मद के बारे में कहा था, वह सच है या झूठ, हदीस में लिखा है या उसकी गलत व्याख्या की गई है, आदि के बारे में मेरा यह कहना है कि, डिबेट ज्ञानव्यापी के उस मुकदमे और लीक हुई सर्वे रिपोर्ट और वीडियो पर केंद्रित था न कि इस्लाम के इतिहास, पैगंबर के जीवन, कुरान और हदीस की सत्यता पर। इस सब भी बहस हो सकती है पर उस बहस में उन्हे शामिल होना चाहिए और बोलना चाहिए जो धर्म शास्त्र के विद्वान है। यह बहस धर्म पर थी ही नहीं। पर चटपटी और भड़काऊ डिबेट के आदी हो चुके चैनल का मूल एजेंडा ही है, बजट को गरमाना और ऐसा माहौल बनाना जिससे विभाजनकारी ताकतें और मजबूत हो। अपशब्द और आपत्तिजनक बातें दोनो ही तरफ से हुई। जैसे ही यह अप्रिय विवाद उठा वैसे ही नाविका कुमार, जो इस प्रोग्राम को संचालित कर रही थी, को तुरंत ही रोक देना चाहिए था, पर न तो उन्होंने ऐसा किया और न ही ऐसा करने का उनका इरादा भी था। पिछले आठ साल से चली आ रही यह बुरी आदत इतनी आसानी से सुधारी भी तो नहीं जा सकती है। इसका जो परिणाम हुआ वह सबके सामने है।

न्यूज एजेंसी पीटीआई के अनुसार, सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने हाल ही में जारी अपनी एक, एडवाइजरी में कहा है कि, “हाल के दिनों में यह पाया गया है कि कई सैटेलाइट टीवी चैनलों ने कुछ घटनाओं को इस तरह से कवरेज किया है जो अप्रमाणिक, भ्रामक, सनसनीखेज और प्रतीत होता है. सामाजिक रूप से अस्वीकार्य भाषा और टिप्पणियों का उपयोग करना, जनमानस की भावनाओं को ठेस पहुंचाना और अश्लील व मानहानिकारक इस्तेमाल करना उपरोक्त अधिनियम की धारा 20 की उप-धारा (2) के प्रावधानों का उल्लंघन करते हैं।”

लेकिन क्या सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने अपनी एडवाइजरी का अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए कुछ किया है ? मुझे नहीं लगता कि कुछ किया होगा। अब जब दुनियाभर में तमाशा बन गया और विभिन्न देशों से हमारे राजदूत तलब होने लगे, कड़ी प्रतिक्रियाएं आने लगीं तो, केंद्र सरकार ने ‘भड़काऊ हेडलाइन और हिंसा के उन वीडियो पर कड़ी आपत्ति जताई, और यह कार्यवाही की।

भाजपा ने धार्मिक भावनाएं आहत करने वाले अपने 38 नेताओं की पहचान की है। इनमें से 27 को ऐसे बयान देने से बचने की हिदायत दी है। कहा गया है कि धार्मिक मुद्दों को लेकर बयान देने से पहले सक्षम पदाधिकारी से मंजूरी लें। पिछले 8 साल (सितंबर 2014 से 3 मई 2022 तक) में नेताओं के बयानों को आईटी विशेषज्ञों की मदद से खंगाला गया। करीब 5200 बयान गैर-जरूरी पाए गए। 2700 बयानों में शब्दों को संवेदनशील पाया गया 38 नेताओं में अनंत हेगड़े, शोभा करंदलाजे, गिरिराज सिंह आदि हैं। यह सभी महत्वपूर्ण नेता है और कुछ तो मंत्री भी हैं।

पहली बार सरकार एक ऐसे संकट में फंसी है, जिसकी ज़िम्मेदारी भाजपा की लंबे समय से आ रही नस्ली राष्ट्रवाद और धर्म आधारित राजनीति की सोच है। सरकार और भाजपा के लिए भी यह एक कठिन समय है। सरकार तो संविधान मानने के लिए शपथबद्ध है, पर क्या भाजपा संविधान के मूल ढांचे पर वाकई यकीन करती है ? आरएसएस जो बीजेपी का थिंकटैंक है उसके विचार भारतीय संविधान और सेक्युलर मूल्यों के लिए क्या हैं, यह किसी से छिपा नहीं है। जब आडवाणी जी पार्टी विद अ डिफरेंस कहते थे तो उसका पोशीदा आशय संघ की यह लाइन ही थी, जो अब बुरी तरह एक्सपोज हो रही है। यह संकट अंदर से नेतृत्व पर भी आया है। नफरत की फौज, पिछले आठ सालों में खाद पानी पाकर इतनी उन्मादित हो गई है कि, अब कुछ सुनने को तैयार भी नहीं है। वह इस जटिलता को भी नहीं समझ पा रही है कि,  खाड़ी देशों में डेढ़ करोड़ भारतीय काम कर रहे हैं, छह करोड़ परिवारों की रोजीरोटी इससे सीधे जुड़ी है। इन देशों को हम तीन लाख करोड़ रुपये का निर्यात करते हैं। मगर इस नफरती गिरोह को इससे कोई सरोकार नहीं है। प्रधानमन्त्री मोदी जी ने खाड़ी देशों में  संबंध मजबूत करने पर अपने दोनो कार्यकालों में बहुत प्रयास किया और उसके अच्छे परिणाम आए भी। सौहार्द बढ़ा, व्यापार बढ़ा और परस्पर विश्वास भी मजबूत हुआ। पर अब इस सब पर पानी फिरता लग रहा है।

आज दुनियाभर में तमाशा हो रहा है, सरकार डैमेज कंट्रोल में लगी है। आखिर यह पहले क्यों नहीं सोचा गया कि यह आग अपना घर भी जला सकती है? लेकिन नहीं, तब तो चुनाव जीतना था, सांप्रदायिक ध्रुवीकरण करना था, 80/20 का अनुपात तय करना था, लोगो को कपड़ो से पहचानना था, मर चुके नस्ली राष्ट्रवाद को धो पोंछ कर खड़ा करना था, देश में विभाजनकारी माहौल बनाना था। पर अब ? अब बार बार यह कहा जा रहा है कि हम सर्वधर्म समभाव को मानते हैं, संविधान को मानते है। सर्वधर्म समभाव तो संविधान के मूल ढांचे का अंग है, उसे तो संसद भी नहीं बदल सकती है। सरकार ने एक बार भी अपने इन मंत्रियों को यह हिदायत दी कि, उन्होंने संविधान की शपथ ली है, वे फ्रिंज एलीमेंट नहीं हैं, वे सरकार के अंग है, उन्हे तो कम से कम ऐसी बात नहीं कहनी चाहिए थी?