पूर्व IPS का लेख: सेना के नाम पर छलावा है अग्निपथ योजना

लोकसभा में एक सवाल के जवाब में बताया गया कि, भारतीय सेना में हर साल 50,000 से अधिक लोगों की भर्ती हुआ करती थी। यह आंकड़े भी दिए गए कि, 2016 -17 : 54,815, 2017 -18 : 52,839, 2018 -19 : 57,266. लेकिन 2020 के बाद से कोरोना के कारण, सेना की कोई नियमित भर्ती नहीं हुई और अब जाकर सरकार ने अग्निपथ योजना के नाम से एक नई योजना शुरू की है।

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सरकार के विज्ञापन के अनुसार, उक्त योजना के अंतर्गत भर्ती हुए युवा सैनिक नहीं बल्कि अग्निवीर कहे जायेंगे। यहीं यह सवाल उठता है, क्या अग्निपथ, सेना की भर्ती है ? जो खबरें मिल रही हैं, उनके अनुसार, वे सेना में भरती भी नही करा रहे है। वे एक नई सेना अग्निवीर के नाम से बना रहे है, जो किसी भी रेजीमेंट का अंग नहीं होगी। न तो यह खुद को भूतपूर्व सैनिक कह पाएंगे और न ही इनको सेना की कोई सुविधा सेवा से रिटायर होने के बाद मिलेगी। वे न तो किसी रेगुलर रेजीमेंट में शामिल होंगे और न ही किसी रेजीमेंट के बैज अपने कंधे पर लगा सकेंगे। चार साल बाद जब लौटेंगे तब एक बार ऐसी बेरोजगारी से रूबरू होंगे कि उनका पूरा परिवार उससे पीड़ित होगा। इन चार सालों में न तो वे पढ़ने की उन्हे कोई सुविधा पाएंगे, और न ही रिटायरमेंट के बाद उन्हें कैंटीन और पेंशन की सुविधा। समान कार्य करते हुए भी ऐसे अग्निवीर एक रेगुलर सैनिक के समान वेतन भी नही पाएंगे।

एक आकलन के अनुसार, “अग्निपथ योजना के तहत, अग्निपथ को चार साल की अवधि के लिए संबंधित सेवा अधिनियमों के तहत बलों में नामांकित किया जाएगा। वे सशस्त्र बलों में एक अलग रैंक होंगे, जो सशत्र बलों के  किसी भी मौजूदा रैंक से अलग है होंगे। सशस्त्र बलों द्वारा समय-समय पर तय किये गए, संगठनात्मक आवश्यकता और नीतियों के आधार पर चार साल की सेवा पूरी करने पर, अग्निवीरों को सशस्त्र बलों में स्थायी नियुक्ति के लिए आवेदन करने का अवसर प्रदान किया जाएगा। इन आवेदनों पर उनकी चार साल की नियुक्ति अवधि के दौरान उनके कार्यकलाप सहित एक निर्धारित मानदंड के आधार पर केंद्रीकृत तरीके से विचार किया जाएगा और सशस्त्र बलों के नियमित संवर्ग में अग्निवीरों के प्रत्येक विशिष्ट बैच से, 25% तक का नामांकन किया जाएगा। विस्तृत दिशा-निर्देश अलग से जारी किए जाएंगे।”

फिर क्या यह योजना, सेना की नियमित भर्तियों को बंद करने की पूर्व पीठिका है ? देश के युवाओं में सेना और पुलिस बलों में नियमित नौकरी का एक अलग ही उत्साह होता है। पहले सेना, पीएसी, पुलिस और अन्य केंद्रीय पुलिस बलों में नियमित भर्तियां होती थीं, इनके कैंप लगाए जाते थे, और इन बलों में जाने के इच्छुक युवा फिजिकल टेस्ट के लिए खूब तैयारी भी करते थे। अब अचानक सरकार ने अग्निपथ के नाम से एक नई योजना की घोषणा कर दी। जो युवा सेना में नियमित भर्ती के सपने देख रहे थे, अचानक वे इस अस्पष्ट और भ्रमपूर्ण योजना को लेकर उत्तेजित हो गए और अब वे सड़को पर आ गए हैं। अग्निवीर बनाने वाली अग्निपथ योजना है क्या, इसके बारे में सरकार को कुछ बाते स्पष्ट करनी होगी। जैसे

1. क्या इस योजना के आने के बाद, सेना की रेगुलर भर्तियां बंद हो जाएंगी और सेना अग्निवीर के ही के द्वारा अपनी जनशक्ति पूरी करेगी?

2. सेना की रेगुलर भर्तियां बंद नहीं होंगी तो, वे क्या वैसे ही जैसे कोरोना के पहले होती रही हैं, अब फिर से होने लगेंगी या उन्हे घोषित रूप से बंद न करके, अघोषित रूप से टालते टालते बंद कर दिया जायेगा ?

3. अगर रेगुलर भर्तियां बंद नहीं हो रही है तो सेना में हर साल होने वाली रिक्तियां अब फिर भरी क्यों नहीं जा रही हैं? रिक्तियां तो बहुत हो गई होंगी क्योंकि पिछले चार साल से सेना में कोई भर्ती हुई ही नहीं है।

4. नियमित भर्तियों की कोई बात न करते हुए अचानक एक नई योजना जो सेना की है भी और नहीं भी है, को लागू कर देना अनेक संदेहों को जन्म देता है। जो युवा नियमित रूप से सेना में जाना चाहते है क्या उन्हे अग्निपथ योजना के माध्यम से ही सेना में जाना होगा या उनके लिए सेना की नियमित भर्ती का विकल्प अभी खुला हुआ है ?

5. अब कहा जा रहा है कि, 25% अग्निवीर सेना में स्थाई होंगे और शेष को पुलिस और केंद्रीय पुलिस बलों में खपाया जायेगा। यह भी कहा गया है कि, 10% का आरक्षण केंद्रीय बलों में, अग्निवीर को दिया जायेगा। क्या इससे सारे अग्निवीर पुलिस बलों के एडजस्ट हो जायेंगे ?

4. क्या यही या इसी तरह की कोई योजना पुलिस या अन्य केंद्रीय बलों के लिए भविष्य के नहीं लाई जायेगी ? क्या सरकार ऐसा कोई आश्वासन दे सकती है ?

6. सेना, पुलिस, केंद्रीय पुलिस बलों में शुरुआती सिपाही रैंक पर नियमित भर्तियां 18 साल की उम्र के बाद से ही शुरू हो जाती हैं। यह नियमित भर्तियां हर साल होती थीं, पर इधर यह उतनी नियमित नहीं रह गई हैं। जब सारी भर्तियां पहले ही हो जाएंगी तो मुक्त अग्निवीर कैसे पुलिस बलों में खपाए जायेंगे?

7. सरकार खुद ही कनफ्यूज है कि ये सेना के जवान होंगे या सेना के जवान बनने के पहले किसी कौशल प्रशिक्षण योजना के हिस्से होंगे या चार साल बाद कॉर्पोरेट के मानव संसाधन, या मर्सेनरी टाइप लडाको की फौज, जिसका चलन इधर बहुत तेजी से दुनिया में बढ़ा है, या उनकी कानूनी और सैनिक स्थिति क्या होगी।

इसी बीच उद्योग संगठन सीईई ने अखबारों में पूरे पन्ने का विज्ञापन जारी करके अग्निपथ योजना का स्वागत किया है। इस विज्ञापन पर वरिष्ठ पत्रकार अमिताभ श्रीवास्तव ने जो टिप्पणी की है उसे भी पढ़ा जाना चाहिए। अमिताभ लिखते हैं, “आज के अख़बार में छपे इस फ़ुल पेज विज्ञापन को ध्यान से पढ़िये, इसकी भाषा पर ग़ौर करिये । उद्योग संगठन सीआईआई सरकार की अग्निपपथ योजना की जिन शब्दों में उत्साहपूर्वक प्रशंसा कर रहा है, उससे ऐसा लग रहा है जैसे अग्निवीर फ़ौज के लिए नहीं, देश के उद्योगों के लिए मानव संसाधन के रूप में तैयार किये जाने वाले हैं। फ़ौज में ठेके पर नौकरी की वास्तविक अवधि ट्रेनिंग और छुट्टियों आदि का समय निकाल देने के बाद लगभग ढाई साल रहने वाली है। उसके बाद उद्योग जगत एडमिनिस्ट्रेशन से लेकर सप्लाई चेन मैनेजमेंट में उनकी खपत के लिए पलक पाँवड़े बिछाये बैठा रहेगा, ऐसा यह विज्ञापन आभास दे रहा है। मोदी जी देश की वर्तमान सुरक्षा को अधिक से अधिक चाकचौबंद करने से ज्यादा उद्योगपतियों के लिए भविष्य के कामगारों की व्यवस्था करने में लगे हैं। धन्य है ऐसी दूरदृष्टि, धन्य है ऐसा राष्ट्रवाद, धन्य है ऐसी देशभक्ति।”

केंद्रीय मंत्री और पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल वीके सिंह ने अग्निपथ योजना पर कहा है कि, “वे इस योजना को बनाने वालों में नही रहे हैं। अतः उन्हें इसके बारे में कुछ भी मालूम नहीं है। अभी तो योजना कल अनाउंस हुई है, जमीन पर उतरे तो उस पर कोई प्रतिक्रिया दी जाय। अभी देखते हैं।”

अनिवार्य सैनिक शिक्षा जरूरी है तो वह केवल किसानों और आम जन के बच्चो को ही क्यों? इंटरमीडिएट के बाद दो साल के लिए हर युवा को चाहे वह किसी के भी घर का हो, उसे सैनिक शिक्षा अनिवार्यतः दी जाय। उसके बाद वह अपना करियर चुने। बिना सैनिक शिक्षा के कोई भी विधायिका का चुनाव भी न, लड़ सके।

इसी बीच, अग्निपथ योजना को लेकर, सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका (पीआईएल) याचिका दायर की गई है, जिसमें केंद्र सरकार के खिलाफ व्यापक विरोध के दौरान सामूहिक हिंसा और रेलवे सहित सार्वजनिक संपत्तियों को नुकसान की जांच के लिए एक विशेष जांच दल (एसआईटी) की स्थापना की मांग की गई है। यह जनहित याचिका एडवोकेट विशाल तिवारी ने दायर की है। 

याचिकाकर्ता का कहना है कि “नाराज उम्मीदवारों” ने लखीसराय और समस्तीपुर स्टेशनों पर नई दिल्ली-भागलपुर विक्रमशिला एक्सप्रेस और नई दिल्ली-दरभंगा बिहार संपर्क क्रांति एक्सप्रेस की कम से कम 20 बोगियों में आग लगा दी और बिहार राज्य में राजमार्गों को अवरुद्ध कर दिया।  विरोध की तीव्रता ऐसी है कि पूर्वी मध्य रेलवे को 164 ट्रेनें रद्द करनी पड़ीं।  बताया जा रहा है कि पटना जंक्शन समेत विभिन्न रेलवे स्टेशनों पर बड़ी संख्या में यात्री फंसे हुए देखे गए.  लोग बस टर्मिनलों पर भी बसों के इंतजार में खड़े हैं क्योंकि विरोध के कारण राजमार्ग भी अवरुद्ध हैं।

समाचार रिपोर्टों का हवाला देते हुए याचिकाकर्ता का कहना है कि राष्ट्रीय स्तर पर 300 से अधिक अंतर-राज्यीय ट्रेनें प्रभावित हुई हैं और अब तक 200 से अधिक प्रमुख ट्रेनें रद्द कर दी गई हैं। याचिका में भारत संघ और उत्तर प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, बिहार और तेलंगाना राज्यों को प्रतिवादी के रूप में जोड़ा गया है। याचिकाकर्ता ने सशस्त्र बलों और राष्ट्रीय सुरक्षा पर “अग्निपथ” योजना के प्रभाव की जांच करने के लिए सेवानिवृत्त सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति के गठन की भी मांग की।

अग्निपथ योजना पर सवाल उठाते हुए, याचिकाकर्ता का कहना है, “इस तरह की अल्पकालिक संविदा सेना भर्ती सेना के उम्मीदवारों के लिए एक डिमोटिवेशन है क्योंकि यह ऐसे उम्मीदवारों के लिए अनिश्चितता लाता है क्योंकि निश्चित 4 अवधि के बाद ऐसे व्यक्तियों के लिए कोई भविष्य नहीं होगा क्योंकि केवल 25% कर्मचारी ही सेना में लिए जायेंगे।

सरकार सेना और समस्त पुलिस बलों की नियमित भर्तियां खोले और उनकी रिक्तियां भरने की एक कार्ययोजना भी प्रकाशित करे। यदि नियमित भर्तियां जैसा पहले हुआ करती थीं वैसे ही शुरू करे। रिक्तियों की संख्या आवश्यकतानुसार कम अधिक हो सकती है पर नियमित भर्तियों पर रोक लगा कर जिस तरह से अग्निपथ का गुणगान उद्योग जगत से लेकर व्हाट्सएप यूनिवर्सिटी और आईटी सेल कर रहा है उससे तो यही लग रहा है कि सेना की नहीं, सेना और देशभक्ति के नाम पर कॉर्पोरेट की मानव संसाधन आपूर्ति योजना है। अग्निपथ योजना में दो साल की आयु सीमा बढ़ाई गई है। यह अभी पहला संशोधन है, आगे क्या होगा पता नही। सरकार फिलहाल इस योजना को वापस ले और वह सच में युवाओं को रोजगार देना चाहती है तो सभी सरकारी विभागों की रिक्तियों को भरने की प्रक्रिया शुरू करे। संविदा और लेटरल भर्ती सिस्टम को बंद करे।