फोटोशॉप और क्रॉपिंग से रचा जा रहा है फर्जी इतिहास

फोटोशॉप और क्रॉप फ़ोटो से न तो इतिहास बनाया जा सकता है और न ही मिटाया जा सकता है, पर इससे अपनी हीनभावना, कुंठा और छुद्र मनोवृत्ति ज़रूर प्रदर्शित की जा सकती है। 1971 के बांग्लादेश युद्ध के अवसर पर ली गयी एक असल तस्वीर से इंदिरा गांधी को क्रॉप कर केवल सेना प्रमुखों की फ़ोटो को सरकारी ब्रोशर में छाप कर, सरकार क्या यह साबित करना चाहती है कि सेना बिना भारत सरकार के अनुमति के ही इस युद्ध मे लड़ रही थी? यह लोकशाही है। और लोकशाही में सेना एक सरकारी विभाग, जिसके जिम्मे सीमाओं की रक्षा का दायित्व होता है।

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यह तो हुयी प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की बात। 1971 के युद्ध के समय देश के रक्षामंत्री थे, बाबू जगजीवन राम। जगजीवन राम देश के कुछ चुनिंदा लोगों मे से ही होंगे जिन्होंने अपने राजनैतिक जीवन मे कोई चुनाव नहीं हारा है। 1937 के चुनाव से लेकर 1980 तक वे लगातार जीतते रहे और एमपी बने रहे। वे बिहार के सासाराम लोकसभा क्षेत्र से लगातार चुने जाते रहे। पर इमरजेंसी के समय उन्होंने हेमवती नंदन बहुगुणा और नंदिनी सत्पथी के साथ मिल कर कांग्रेस छोड़ दिया था और कांग्रेस फ़ॉर डेमोक्रेसी के नाम से एक नयी पार्टी बना कर जनता पार्टी के साथ 1977 का चुनाव लड़ा और जीता। तब वे मोरारजी मंत्रिमंडल में उपप्रधानमंत्री भी रहे।

अब इन फोटोज को देखें। एक फ़ोटो में, तत्कालीन रक्षा मंत्री बाबू जगजीवन राम तीनो सेनाध्यक्षों से मिल रहे हैं। यह युध्द के बाद, सेना प्रमुखों की अपने रक्षामंत्री से मुलाकात का गौरवपूर्ण क्षण है। पर इस फोटोग्राफ को भी सरकार द्वारा जारी किए गए ब्रोशर में क्रॉप कर के, जगजीवन राम की तस्वीर को हटा दिया गया है। घेरे वाली फ़ोटो देखें, उसमें स्पष्ट है कि, जगजीवन राम जी को क्रॉप कर के अलग दिखाया गया है।

इतनी ईर्ष्या? इतनी जलन? इतिहास में तथ्य नही बदले जा सकते हैं। क्रोनोलॉजी नही प्रदूषित की जा सकती है। हां, घटनाओं के कारण और उनके असर पर अलग अलग दृष्टिकोण से व्याख्या की जा सकती है। वह व्याख्या विचारधारा के आधार पर भी की जा सकती है और अकादमिक भी। पर तथ्य तो वही रहेंगे, जब तक कि कोई और तथ्य प्रमाणों के साथ सामने न आ जाय।  देश के गौरवपूर्ण क्षण के प्रति इतनी निर्लज्ज कुंठा का, शायद ही कोई और उदाहरण मिले। 

1971 की जंग की विजय, न केवल एक शानदार सैन्य उपलब्धि थी, बल्कि वह आधुनिक भारतीय इतिहास के सबसे दुर्भाग्यपूर्ण काल खंड की सबसे घातक और घृणित विचारधारा, द्विराष्ट्रवाद के विफलता का प्रमाण भी है। धर्म और राष्ट्र एक ही होते हैं, और हिंदू और मुस्लिम दो राष्ट्र हैं, यह अजीबोगरीब और अतार्किक सिद्धांत, पहले वीडी सावरकर ने दिया और फिर एमए जिन्ना की ज़िद ने उसे अपना मिशन बना लिया और उसका जो दुष्परिणाम हुआ उसे भारत ने भोगा और दुनिया ने देखा। पाकिस्तान आज तक, उस शर्मनाक पराजय, अपने नब्बे हज़ार सैनिकों के आत्मसमर्पण, और अपने अंग भंग को पचा नहीं पाया है।

यह पाकिस्तान की सैनिक पराजय ही नहीं थी, बल्कि यह आइडिया ऑफ पाकिस्तान, जिसने, चौधरी रहमत अली से शुरू होकर, अल्लामा इकबाल के दिमाग से होते हुए, एमए जिन्ना के स्टडी रूम में आकार ग्रहण किया था, का अंत भी था। बांग्लादेश के उदय ने यह प्रमाणित कर दिया कि, धर्म, राष्ट्र का आधार नहीं हो सकता है। धर्म एक निजी आस्था है और उसका राष्ट्र से कोई सम्बंध नहीं है। आज आरएसएस जिस राष्ट्रवाद की बात कर रहा है, वह इसी दफन और अप्रासंगिक हो चुके द्विराष्ट्रवाद की बात कर रहा हूँ। यह धारणा भारत जैसे बहुलतावादी देश में संभव ही नहीं है।

इंदिरा गांधी का 1971 की विजय के बाद उभरा व्यक्तित्व, न केवल पाकिस्तान को अब तक असहज करता रहता है, बल्कि वह संघ और उसके मानस पुत्रो को भी चैन से बैठने नहीं देता है। इसीलिए जब भी उस महान विजय की चर्चा की जाती है तो, अक्सर वे शातिराना तरीक़े से, उस युद्ध की सफलता को एक सैन्य उपलब्धि तक ही सीमित करके देखते हैं और इंदिरा का नाम लेने और उनको श्रेय देने से कतराते हैं। मैं इसे उनकी कृतघ्नता नहीं कहूंगा, यह तो उनकी स्वाभाविक प्रकृति है कि वे हर घटना, उपलब्धि और व्यक्तित्व को सांप्रदायिक नज़रिए से देखने के लिये अभिशप्त बना दिये गए हैं। साम्प्रदायिक नज़रिए से देखना भी एक प्रकार का मनोरोग है। आप सब अपने घर परिवार और बच्चों को इस मनोरोग से बचाएं। उन्हें धार्मिक बनाये, आध्यात्मिक बनाये, पर धर्मांध और कट्टर नहीं।

यह कार्य सरकार के किसी विभाग द्वारा ही किया गया होगा, और इसे किसी अफसर ने ही अनुमोदित किया होगा। पर क्या नौकरशाही इतनी महीनी से प्रतिबद्ध हो गयी है कि वह सवार के इशारे और एड पर ख़ुद ही चलने लगती है या उसे ऐसा करने के लिये कहा गया है? कहा गया है तो यह किसने कहा है और किसी के कहने पर कहा गया है या यह उसके दिमाग की यह एक स्वयंस्फूर्त उपज है?

इस तरह के कई सवाल स्वाभाविक रूप से उठेंगे जिनका उत्तर सरकार द्वारा दिया जाना चाहिए। सरकार की तरफ से यदि ऐसा करने का कोई इशारा नही किया गया है तब तो यह और गम्भीर बात है। ऐसे तमाशे से सरकार की ही छवि गिरती है और जब सरकार एक व्यक्ति में सिमट गयी हो तो इसका आक्षेप उसी व्यक्ति पर सीधे आता है। इस घटना की उच्चस्तरीय जांच कराई जानी चाहिए। लल्लनटॉप वेबसाइट से इस पर एक डिटेल खबर छापी है जिंसमे इन फोटोशॉप और क्रॉपिंग का उल्लेख किया गया है।

(लेखक पूर्व आईपीएस हैं)