लखनऊ (ब्यूरो)। वेस्ट यूपी की राजनीति में अपनी मजबूत पकड़ रखने वाले दलित नेता योगेश वर्मा ने तीसरी बार अपना सियासी ठिकाना बदला है। वर्ष 2007 में बसपा के सिंबल पर पहली बार वह मेरठ जिले की हस्तिनापुर सुरक्षित सीट से विधायक बने थे, लेकिन वर्ष 2012 के अगली ही चुनाव में बसपा ने पार्टी विरोधी गतिविधियों में शामिल होने का आक्षेप लगाकर उनका टिकट काट दिया था और पार्टी से छह साल के लिए उनके निष्कासन का फरमान बसपा की ओर से जारी किया गया था। इसके बाद वह पीस पार्टी में शामिल होकर इसी सीट पर चुनावी मैदान में उतरे थे और सपा प्रत्याशी से कम वोटों के अंतर से चुनाव हार गए थे।
उसके बाद उनकी बसपा में पुन: वापसी हुई और वर्ष 2017 के विधानसभा चुनाव में बसपा ने उन्हें फिर से उम्मीदवार बनाया, लेकिन वह फिर दूसरे नंबर पर रहे और भाजपा की लहर में हस्तिनापुर पर कमल खिल गया। इसके अगले ही वर्ष 2018 में हुए नगर निकाय चुनाव में योगेश वर्मा ने अपनी हार का बदला भाजपा से चुकता कर लिया।
मेरठ मेयर सीट रिजर्व होने पर बसपा से अपनी पत्नी सुनीता वर्मा को प्रत्याशी बनावाकर योगेश ने भाजपा लहर के बावजूद भी इस चुनाव में भाजपा की मौजूदा राज्यसभा सांसद कांता कर्दम को सुनीता वर्मा के हाथों करीब 30 हजार वोटों के बड़े अंतर से हरवाया। पत्नी के मेरठ का महापौर बनने पर उनकी पार्टी में भी पहले की तरह ही साख मजबूत हुई, लेकिन कुछ समय बाद फिर सियासत ने करवट बदली और बसपा ने एक बार फिर योगेश को पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया।
अब योगेश ने अपना नया सियासी ठिकाना सपा को बनाया है और वह शनिवार को लखनऊ में सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव की मौजूदगी में साइकिल पर विधिवत सवार हो गए। सियासी हल्कों में कयास लगाए जा रहे हैं कि वह इस बार हस्तिनापुर सीट पर सपा के उम्मीदवार हो सकते हैं। हालांकि अभी चुनाव में करीब एक साल शेष है। आगे देखने वाली बात यह होगी कि ऊॅंट किस करवट बैठता है।