इंसानी इतिहास मे जब हम इंसानों के बीच आपसी ताल्लुक(संबंध) की बात करते है तो देखते है कि “ऊंच नीच” “बड़े छोटे” या “बादशाह और प्रजा” का इतिहास रहा है। जहां गरीब,कमज़ोर,ग़ुलाम पर या रंग के नज़रिए से भेदभाव हुआ है,मज़दूरों पर उनकी मज़दूरी को लेकर भेदभाव हुआ है,ज़ुल्म हुआ है,और हद यह थी की पैदा हुई लड़कियों को ज़िंदा दफ्न तक कर दिया जाता था।
लेकिन बड़ा सवाल यह है कि इनके अधिकार(हक़) की बात भी कभी हो सकी है क्या ? क्या ऐसा कभी हुआ है की वेस्ट इंडीज़ के किसी टापू पर रहने वाले “काले” इंसान और रूस में रहने वाले “सुर्ख सफेद” इंसान बिल्कुल बराबर हो सके हो ? क्या यह सोचा जा सकता है की जब “लडक़ी” को पैदा ही नही होने दिया जा रहा है वहां उसे जायदाद तक मे “हक़” दिया गया हो? या ऐसा की जहाँ एक “बादशाह” अपनी प्रजा के जैसे घर मे ही रहता हो ?लेकिन ऐसा हुआ है,कैसे आइए समझते है।
अरबी में एक शब्द है “रहमतुलिलअलामीन” इस शब्द का मतलब है तमाम दुनिया के लिए रहमत (अमन,शांति) यह उपाधि या यह नाम जिस शख्सियत को दिया गया है वो शख्सियत है पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व) की, यही वो अज़ीम(बड़ी) शख्सियत है जिस शख्सियत ने दुनिया को अल्लाह के बनाये वो कानून और अधिकार ( हक़) दिए जो दुनिया वालों ने छीन लिए थे। पैग़म्बर मुहम्मद की पैदाइश(जन्म) 572 ई.पूर्व में अरब के मक्का शहर में हुई थी।
पैग़म्बर मुहम्मद इस दुनिया मे भेजे गए आखरी नबी है,पैग़म्बर मुहम्मद ने अल्लाह के दिये गए बताये गए वो हुक़ुक़(अधिकार)आज से तकरीबन 1450 साल पहले वो लोगों को दिये जो तमाम दुनिया के लिए “रहमत”(अमन) बने,जहां पैदा हुई बच्चियों को ज़िंदा दफ़्न कर दिया जाता था,जहां “ग़ुलामों” पर बेइंतहा ज़ुल्म किया जाता था,जहां “औरत” को पैर की जूती समझा जाता था वहां इन असभ्य,अमानवीय सभ्यताओं को खत्म किया गया और हर एक को बराबरी के हुक़ुक़ दिए गए।
यही वजहें रही कि पैग़म्बर मुहम्मद(स.अ.व) के किरदार,(कैरक्टर),अख़लाक़(नेचर) ने तमाम दुनिया को अपनी तरफ मुतवज्जेह(अट्रैक्ट) किया,और इस्लामी कानून, हुक़ूक़ और बराबरी ने दुनिया मे उस चीज़ पर बहुत बड़ी चोट की जिसने इंसानों में फर्क किया जाता था,जहां एक मर्द के लिए औरतों की हद तय गई। जिसने अमीरों के गरीबों पर किये जाने वाले ज़ुल्म को रोका और ऐसा मुआशरा ( समाज) बनाया जहां “इंसाफ” होता था जहां ज़ुल्म की मनाही थी।
आज 1450 साल के लगभग अरसे के बीत जाने के बाद भी हम जब देखते है कि ज़ुल्म, ऊंच – नीच,और अमानवीयता का ज़ोर है तो सोचने वाली बात यह है की आज से 1450 साल पहले क्या स्थितियां रही होंगी? लेकिन तब यह “चमत्कारी” काम हुआ और यही वजहें की दुनिया में आज तक पैग़म्बर मुहम्मद की शख्सियत और किरदार को “अज़ीम” (बड़ा) बनाया।
आज इस्लामी महीने “राबीउलव्वल” के महीने में दुनिया के इतिहास की सबसे “प्रभावशाली” शख्सियत यानी पैग़म्बर मुहम्मद(स .अ.व) की पैदाइश हुई थी,और “प्रभावशाली” शख्सियत का ज़िक्र वेसे तो लगभग हर बड़ी शख्सियत ने पैगम्बर मुहम्मद के बारे में हर दौर में किया है,लेकिन अमरीकी राइटर माइकल हार्ट ने जब “दुनिया के 100 सबसे प्रभावशाली शख्सियत” की फेहरिस्त(लिस्ट) तय की तो उसमें राजनीतिक तौर पर,धार्मिक तौर पर वैचारिक से लेकर हुक़ूमत(साम्राज्य) के तौर पर पैग़म्बर मुहम्मद को उस फेहरिस्त में अव्वल(फर्स्ट) नम्बर पर रखा।
आज तमाम दुनिया के लिए रहमत यानी पैग़म्बर मुहम्मद (स .अ.व) की शख्सियत एक मॉडल है,एक आइडल की तरह एक रणनीतिकार की तरह हमारे सामने रहती है,हम उसे पढ़ पाते है कि कैसे आख़िर “ग़ुलामी” के दौर में एक “हब्शी” हज़रत बिलाल(र.अ)ने इस्लाम की पहली आज़ान दी थी,कैसे एक महिला हज़रत ख़दीजा(र.अ) जो पैग़म्बर मुहम्मद(स.अ.व) से लगभग 15 साल बड़ी थी और “बेवा” (विधवा) से निकाह(शादी) किया था।
यह तमाम मिसालें सिर्फ चंद ही है इसके अलावा और न जाने कितने ऐसी मिसाल है जिसने इंसानी बेहतरी के लिए हर बार काम किया और इसके अलावा अलग अलग स्थितियां भी बहुत मौकों पर रही जो 63 साल की उम्र तक पैगम्बर मुहम्मद (स.अ.व) के साथ रही,और दुनिया के सामने मिसाल बनी, यह असल मायनों में इंसानी इतिहास में एक “क्रांति” थी,”बदलाव” था। “रेवोल्यूशन” था। आज ज़रूरत है पैग़म्बर मुहम्मद(स.अ.व) की सीरत (किरदार) को जानने की और समझने की,ओर तमाम लोगों तक पहुँचाने की यह इंसानी बेहतरी के लिए बेहद ज़रूरी है।
इस खास महीने की और तमाम दुनिया के लिए “रहमत” बन कर इस दुनिया मे आने वाले पैग़म्बर मुहम्मद(स.अ.व) की योमे पैदाइश पर सबसे ज़्यादा ज़रूरी यही चीज़ है कि हम और आप पैग़म्बर मुहम्मद (स.अ.व) के बारे में पढ़ें,जाने और समझें कि कैसे इतिहास में इतना बड़ा “बदलाव” हुआ कैसे दुनिया ने एक “मोजज़ा” (चमत्कार) देखा और कैसे इस दुनिया के “पालनहार” अल्लाह ने दुनिया को बदलने के लिए एक शख्सियत हमारे बीच भेजी, आप सभी को इस खास महीने की इस खास दिन की बहुत बहुत मुबारकबाद…
(लेखक युवा पत्रकार हैं)