नई दिल्ली: दिल्ली दंगों के शिकार लोगों में से कई अपने परिवार के अकेले कमाने वाले हैं, जो दिल्ली पुलिस की गैर-जिम्मेदाराना हरकतों के कारण एक साल से अधिक समय से बंद हैं, उनमें से एक गुलफाम उर्फ वीआईपी है। अदालत ने हाल ही में उसे अपनी गर्भवती पत्नी की देखभाल के लिए पैरोल पर बाहर आने की अनुमति दी थी. आज इस की अस्थाई ज़मानत के लिए लोक अभियोजक और जमीअत के वकील सलीम मालिक के बीच बहस शुरू हुई और अदालत ने अंततः जमीयत के वकील के तर्क को बरकरार रखा और गुलफाम को स्थायी जमानत दे दी।
अदालत ने फैसला सुनाया कि हालांकि फाजिल लोक अभियोजक ने मुल्ज़िम की जमानत का विरोध किया था, लेकिन वह यह साबित करने में विफल रहे कि गुलफाम और अन्य आरोपियों (लियाकत और तनवीर मलिक) में किया अंतर है कि गुलफाम को जमानत नहीं दी जानी चाहिए जबकि लियाकत और तनवीर को पहले ही जमानत दे दी गई है। जहां तक घायल गोस्वामी के शरीर से बरामद गोली की एफएसएल रिपोर्ट की बात है तो आरोपी को इस आधार पर जेल में नहीं रखा जा सकता कि उसकी रिपोर्ट अब तक नहीं मिली है.
गौरतलब है कि गुलफाम पर दंगों के बीच गोस्वामी को गोली मारने का आरोप है।
पुलिस के पास इस संबंध में प्रदीप सिंह वर्मा की गवाही है, जिसके बारे में जमीयत के वकील ने अदालत को बताया कि एक कम्युनिटी से अपनी दुश्मनी के आधार पर वह गवाही दे रहा है, दंगों के एक महीने बाद उसने गुलफाम की पहचान की, इसके अलावा आरोपी किसी भी सीसीटीवी वीडियो में नहीं दिख रहा है।सच तो यह है कि गोस्वामी खुद दंगों का हिस्सा था और यह बहुत संभव है कि वह एक दोस्ताना गन शूट में दुर्घटना का शिकार हुआ हो।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने अदालत के फैसले पर खुशी जाहिर करते हुए कहा है कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद निर्दोष लोगों को न्याय दिलाने के लिए अपना प्रयास जारी रखेगी।