सुसंस्कृति परिहार का लेख: यहां आशियाना टूटते देखते जश्न मनाते जो नज़र आते हैं वे भारतीय नहीं हो सकते

जिस देश में पैदा होने पर हमें सदैव गर्व होता रहा है जिसका यशगान हम बचपन से गाते रहे ।’सारे जहां से अच्छा हिंदोस्ता हमारा’ दिलों दिमाग मेंआज भी सतत गूंजता है।जिस के सर का ताज हिमालय हो अरब, बंगाल और हिंद महासागर जिसके पग पखारते हों। जिस देश में थार सा गर्म मरुस्थल और लद्दाख सा ठंडा मरुस्थल हो।बादलों के घर मेघालय में सर्वाधिक वर्षा चेरापूंजी में हो।अरावली, विंध्याचल, सतपुड़ा जैसे प्राचीन पर्वत हों।दलदल, रेगिस्तान तथा विशाल गंगा जमुना और ब्रह्मपुत्र के उपजाऊ मैदान हों। नीलगिरी की पहाड़ियों की रौनके खास हो।

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कश्मीरियत की खुशबू अलौकिक हो।राजस्थान, पंजाब, हरियाणा,गुजरात मालवा मिथिलांचल,अवध और पूर्वांचल की छटा निराली हो।गेटवे आफ इंडिया भारत का प्रवेशद्वार।कई तरह की वनस्पतियां,जीव जंतु और विभिन्न प्रजातियों के लोगों का समागम हो। वेशभूषा, खान-पान, भाषाएं, रीति-रिवाज,रहन सहन असमान होने के बावजूद सब एक सूत्र से बंधे सदियों से हों। उनमें आज नफरत की आग इस बुरी तरह सुलगाई जा रही है कि लगता है यह हमारा वह भारत नहीं है।

यूं तो भारत मूलतः आदिवासी लोगों का ही है जो विभिन्न दूसरी संस्कृतियों के आगमन से अपने को सुरक्षित रखने घने जंगलों और ऊंचे पहाड़ों में पहुंच गए।उनकी सदाशयता का ही परिणाम कि इस देश में शक, हूण ,मंगोलियन, आर्यन,द्रविड़ ,मुगल ,पठान ,डच ,फ्रेंच, अंग्रेज आए। यह भी सच है कि तमाम प्रजातियों के घाल मेल से ही हिंदुस्तान या भारत का तथाकथित जैविक विकास हुआ।

आश्चर्यजनक तो यह है कि जिस मुगल संस्कृति ने भारत को सबसे ज़्यादा दुनिया में पहचान दिलाई। गंगा जमुनी तहजीब की बुनियाद रखी। उर्दू अदबी जुबान दी,शायरी,ग़ज़ल गायकी का हुनर दिया। दीन ए इलाही धर्म का पैगाम दिया। ताजमहल, लालकिला ,कुतुबमीनार आदि दी।सूफी संत दिए।रहीम खानखाना दिए। उसी पर सबसे ज़्यादा हमले हो रहे हैं। आज़ादी की लड़ाई में उनके अवदान को देखना हो तो इतिहास पढ़िएगा। यह जान लीजिए इंकलाब का नारा -मौलाना हसरत मोहानी,मादरे वतन की जय-अजीम उल्ला,जय हिंद-आबिद हसन सफानी,भारत छोड़ो-युसुफ मेहर अली ने दिए।क्या इसे भुलाया जा सकता है।  इंडिया गेट पर शहीदों की सूची में मुस्लिमों के नाम की लंबी फेहरिस्त पढ़ते रह जायेंगे।क्या इनके वंशज गद्दार हैं।

लोगों का ख्याल है कि भारत पाक विभाजन के बाद ही विद्वेष की चिंगारी भड़की। लेकिन इसके बीज 1925में ही सो दिए गए थे। इसे यूं भी कह सकते हैं कि यह आग अंग्रेजों ने देश के उन गद्दारों से मिलकर भड़काई जो बाद में सिर्फ आज़ादी के एक साल बाद गांधी जी की हत्या के रुप में सामने आई। लेकिन तत्कालीन प्रधानमंत्री नेहरू  और उनके गृहमंत्री सरदार पटेल ने इन परिस्थितियों में देश को एक बनाए रखा। दोनों ने मिलकर अंग्रेजों और देश के गद्दारों की चाल असफल कर दी।ये गद्दार नागपुर गुफा में बैठकर60साल तक जो देश विरोधी प्लान  बनाए उसकी बदौलत 2014 में गुजरात  नरसंहार के कथित आरोपी मुख्यमंत्री और तड़ीपार गृहमंत्री ।भारत के सर्वेसर्वा बन गए। प्रतिफल  सामने है ही।हाथ कंगन को आरसी क्या?

म्लेच्छ यानि मुसलमान खुलेआम निशाने पर हैं। संविधान, नियम, कानून सब ताक पर है कोई दलील कोई अपील नहीं। बुलडोजर तैयार है।एक दिन या रात बिरात नोटिस चस्पा कीजिए और सुबह काम तमाम। हरदम  अवैध कब्जा, अवैध सम्पत्ति, दंगा फसाद, पत्थरबाजी का बहाना और एक विशेष कौम पर बुलडोजर का चलना। उनके परिवार कहां जायेंगे किसी को परवाह नहीं। अवैध कब्ज़े सब जगह के तोड़िए तो बात बने। जो नगर निगम या पालिका को टैंकर्स दे रहा है सभी सुविधाएं ले रहा है वह अवैध कैसे ?मान लीजिए वह अवैध है तो गलती किसकी उसे पनिश कीजिए।चीन्ह चीन्ह कर बुलडोजर चलाना कमीनापन ही कहां जायेगा। अदालतों को चुप्पी तोड़नी ही होगी।

ये कहां आ गए हैं हम। यहां आशियाना टूटते देखते जश्न मनाते जो नज़र आते हैं वे भारतीय नहीं हो सकते। यहां तो वसुधैव कुटुंबकम् की भावना का वास है धरती पर रहने वाले चर अचर नभचर सब हमारे कुटुम्ब के हैं। इंसान के प्रति इतना घृणा भाव।सच यह भारत नहीं हो सकता है।सर्वे भवन्तु सुखना की जगह सिर्फ आत्म सुख। उफ़ यह सब कैसे हुआ हमारा देश तबाह। बदलाव बदलाव की चर्चा 2014चुनाव में हुई थीं पर ऐसा बदलाव होगा, सोचा नहीं था। यहां तो सिर्फ बाजार है बिकाऊ माल है और इन गिने खरीदार हैं।लगता है भारत अब वो भारत नहीं बड़ी मंडी बन चुका है जहां बड़े बड़े अधिकारियों, पत्रकारों ,गरीब गुरबे, अल्पसंख्यक,दलित, महिलाएं सब बिकाऊ हैं बोलो बोलो कितने में खरीदोगे ?कब तक ये चलेगा ।इस बदलाव से टकराव कौन ले रहा है?सोचो ख़ूब सोचो और अपने भारत को बचाने सच्चे भारतीयों का साथ दो।