संविधान दिवस: मनुस्मृति आधारित संविधान चाहता था आरएसएस, अंबेडकर ने किया था खुलासा

आरएसएस चाहता था कि भारत का संविधान मनुस्मृति पर आधारित हो. आरएसएस महिलाओं को बराबरी का अधिकार दिये जाने के भी खिलाफ था. भारत के संविधान का मसविदा तैयार करने और उसे स्वीकार करने के दौरान आरएसएस चाहता था कि उनके सपनों के ‘हिन्दू राष्ट्र’ का संविधान ‘मनुस्मृति’ पर आधारित हो. भगवा गिरोह के ‘वीर’ सावरकर ने लिखा -“भारत के संविधान के बारे में सबसे बुरी बात तो यह है कि इसमें कुछ भी भारतीय नहीं है… वेदों के बाद मनुस्मृति हमारे हिन्दू राष्ट्र के लिए सर्वाधिक पूजनीय है, जो प्राचीन काल से ही हमारे रीति रिवाज, संस्कृति, विचार व कर्म का आधार बनी हुई है. इस ग्रंथ ने सदियों से हमारी आध्यात्मिक व पारलौकिक उन्नति का पथ प्रशस्त किया है. यहां तक कि आज भी करोड़ों भारतीय अपने जीवन और व्यवहार में मनुस्मृति की मान्यताओं का अनुपालन कर रहे हैं। मनुस्मृति हिन्दू लॉ है.”(वुमेन इन मनुस्मृति, सावरकर समग्र, वाल्यूम 4, प्रभात प्रकाशन, नई दिल्ली, पृ. 416)

Thank you for reading this post, don't forget to subscribe!

धर्मनिरपेक्ष लोकतांत्रिक संविधान के 26 नवंबर 1949 को अंगीकार होने के बाद आरएसएस के अंग्रेजी के मुखपत्र आर्गेनाइजर ने 30 नवंबर 1949 को अपने संपादकीय में लिखा कि- “लेकिन हमारे संविधान में प्राचीन भारत के विशिष्ट संवैधानिक विकास का कोई उल्लेख नहीं है. मनु ने जो कानून बनाया, वह यूनानी और फारसी दार्शनिकों से बहुत पहले बनाया. मनुस्मृति में स्पष्टतः वर्णित वह कानून व्यवस्था, आज की तारीख़ में दुनियाभर के लिए विशेष आदर का विषय है क्योंकि उसमें स्वाभाविक आज्ञापालन और निश्चितता बोध के गोपनीय सूत्र हैं. लेकिन हमारे संवैधानिक विशेषज्ञों का ध्यान उधार नहीं गया.”

जब वे दावा कर रहे थे कि मनुस्मृति पूरी दुनिया में सम्मानित है, तो वे किसकी तरफ इशारा कर रहे थे? इस बात का खुलासा अम्बेडकर ने ही किया जिन्होंने अपने लेखन के जरिये मनुस्मृति के उन विचारधारात्मक सूत्रों को उजागर कर दिया था जिन्होंने जर्मन दार्शनिक नीत्शे को प्रेरित किया और नीत्शे ने हिटलर को प्रेरित किया. फिर आरएसएस के नेता हिटलर और मुसोलिनी से प्रेरित हुए.

यहां तक कि जब हमारा धर्म निरपेक्ष लोकतांत्रिक संविधान लागू हो गया तब भी आरएसएस भारत के संविधान के खिलाफ दुष्प्रचार करता रहा. आरएसएस भारत के संविधान के प्रति कितना वफादार है यह गोलवलकर के इस वक्तव्य से समझा जा सकता है। “हमारा संविधान पश्चिमी देशों के विभिन्न संविधानों से ली गई अलग-अलग धाराओं का पुलिंदा भर है. इसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिसे हम अपना कह सकें. क्या इसमें हमारे राष्ट्रीय मिशन और हमारे जीवन के केन्द्रीय तत्व के बारे में एक भी शब्द है? नहीं!” (गोलवलकर, बंच ऑफ थॉट्स, साहित्य सिंधु, 1996, पृ. 238)

अम्बेडकर ने हिन्दू कोड बिल लिखा, जिसका मकसद हिन्दू पर्सनल लॉ में सुधार करना और महिलाओं को पैतृक सम्पत्ति में अधिकार व अन्य अधिकारों की गारंटी करना. आरएसएस हिन्दू कोड बिल विरोधी कमेटी का हिस्सा था. गोलवलकर ने घोषणा की कि महिलाओं को बराबरी का अधिकार मिलने से पुरुषों के लिए ‘भारी मनोवैज्ञानिक संकट’ खड़ा हो जाएगा जो ‘मानसिक रोग व अवसाद’ का कारण बनेगा. (पॉला बचेटा, जेंडर इन द हिन्दू नेशन: आरएसएस वुमेन एज़ आइडियोलाग्स, पृ. 124)

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार है)