नई दिल्लीः प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा कृषि क़ानूनों को वापस लिये जाने के फैसले ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (सीएए) की वापसी की उम्मीद जगा दीं हैं। दिल्ली के जाने-माने समाजसेवी इंजीनियर मोहम्मद जाबिर ने मांग की है कि जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी ने कृषि क़ानूनों को वापस लिये जाने का फैसला लिया है उसी तरह सीएए को भी वापस लिया जाना चाहिए। इंजीनियर मोहम्मद जाबिर ने कहा कि यह क़ानून समाज को धर्म के आधार पर विभाजित करता है, इसलिये धर्मनिर्पेक्ष राष्ट्र में ऐसे क़ानून की कोई गुंजाइश नहीं है।
किसान आंदोलन की आंशिक जीत हुई है, इसे मुकम्मल जीत के तौर पर नहीं देखा जा सकता। मुकम्मल जीत तब मानी जाएगी जब एमएसपी पर क़ानून बन जाएगा।
— Engineer Mohd Jabir (@ErMohdJabir) November 19, 2021
कृषि क़ानूनों को वापस लिये जाने के फैसले पर इंजीनियर मोहम्मद जाबिर ने कहा कि किसान आंदोलन की आंशिक जीत हुई है, इसे मुकम्मल जीत के तौर पर नहीं देखा जा सकता। मुकम्मल जीत तब मानी जाएगी जब एमएसपी पर क़ानून बन जाएगा। उन्होंने कहा कि स्वामीनाथन आयोग की रिपोर्ट के मुताबिक़ दस में से छ किसान कृषि छोड़ना चाहते हैं, ऐसी स्थिति इसीलिये आई है क्योंकि किसानों को उनकी फसलों का वाजिब मूल्य नहीं मिल पाता। इसलिये किसानों को एमएसपी पर क़ानून बनाए बिना आंदोलन वापस नहीं करना चाहिए।
साल भर पहले का वह मंज़र याद कीजिये जब पंजाब के किसानों ने दिल्ली की ओर कूच करना शुरू किया था। जनविरोधी, न्याय विरोधी मीडिया के एंकर्स ने आंदोलनकारी किसानों को क्या क्या नहीं कहा! किसानों पर कैसे-कैसे इलज़ाम लगाए! क्या आज उन एंकर्स को अपने कृत्यो पर शर्म ग़ैरत आ रही होगी?
— Engineer Mohd Jabir (@ErMohdJabir) November 19, 2021
सोशल एजुकेशनल एंड वेलफेयर एसोसिएशन (SEWA) के चेयरमैन इंजीनियर मोहम्मद जाबिर ने कहा कि जिस तरह तीनों कृषि क़ानूनों को काले क़ानून के तौर पर देखा जा रहा था, उसी तरह सीएए एक नस्लवादी क़ानून है। इस क़ानून के तहत आईडिया ऑफ इंडिया पर प्रहार किया गया है, अनकेता में एकता का संदेश देने वाली भारतीय संस्कृति पर प्रहार किया गया है। इस क़ानून को भी तुरंत वापस लिया जाना चाहिए। जानकारी के लिये बता दें कि एनडीए सरकार द्वारा दिसंबर 2019 में सीएबी लाया गया था, इस बिल को संसद के दोनों में पारित कर दिया गया था। इसके पारित होते ही देश भर में इसके विरोध में आंदोलन शुरू हो गए।
कृषि क़ानून काले क़ानून थे तो CAA नस्लवादी क़ानून है। यह क़ानून भारत के लोगों को धार्मिक आधार पर विभाजित करता है, सांप्रदायिक ऐजेंडे को बढ़ावा देता है। यह क़ानून आईडिया ऑफ इंडिया पर प्रहार करता है। सांझी विरासत को नष्ट करता है। इस क़ानून को तत्काल वापस लिया जाना चाहिए।#RevokeCAA
— Engineer Mohd Jabir (@ErMohdJabir) November 19, 2021
इंजीनियर जाबिर ने कहा कि सीएए धर्म के आधार पर नागरिकता देता है, जबकि धर्म को नागरिकता देने का आधार कभी नहीं माना गया। इस क़ानून के मुताबिक़, बंग्लादेश, अफ़ग़ानिस्तान, पाकिस्तान से शरणार्थी के तौर पर आए हिंदू, सिख, ईसाई, जैन, बौद्ध, पारसी को नागरिकता देने का प्रावधान है, जबकि मुसलमानों को इससे वंचित रखा गया है। इंजीनियर जाबिर ने कहा कि जब सीएए को एनआरसी के साथ जोड़कर देखते हैं, तब पता चलता है कि सीएए एक नस्लवादी क़ानून है।
उल्लेखनीय है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने शुक्रवार को राष्ट्र के नाम संबोधन में तीनों विवादास्पद कृषि कानूनों को रद्द करने की घोषणी की और कहा कि इसके लिए 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद सत्र में प्रक्रिया शुरू की जाएगी। प्रधानमंत्री के इस फैसले पर अभी भी किसान नेताओं को पूरा विश्वास नहीं हो पा रहा है। किसान नेता राकेश टिकैत ने अब एमएसपी पर क़ानून बनाने की मांग रख दी है।