मुसलमान और बुज़दिली एक जगह जमा नहीं हो सकते. सच्चे मुसलमान को कोई ताक़त हिला नहीं सकती है. और न कोई खौफ़ डरा सकता है. चंद इंसानी चेहरों के गायब हो जाने से डरो नहीं. उन्होंने तुम्हें जाने के लिए ही इकट्ठा किया था. आज उन्होंने तुम्हारे हाथ में से अपना हाथ खींच लिया है तो ये ताज्जुब की बात नहीं है. ये देखो तुम्हारे दिल तो उनके साथ रुखसत नहीं हो गए. अगर अभी तक दिल तुम्हारे पास हैं तो उनको अपने उस ख़ुदा की जलवागाह बनाओ.
आज ज़लज़लों से डरते हो ? कभी तुम ख़ुद एक ज़लज़ला थे. आज अंधेरे से कांपते हो ? क्या याद नहीं रहा कि तुम्हारा वजूद ख़ुद एक उजाला था. ये बादलों के पानी की सील क्या है कि तुमने भीग जाने के डर से अपने पायंचे चढ़ा लिए हैं. वो तुम्हारे ही इस्लाफ़ थे जो समुंदरों में उतर गए. पहाड़ियों की छातियों को रौंद डाला. आंधियां आईं तो उनसे कह दिया कि तुम्हारा रास्ता ये नहीं है. ये ईमान से भटकने की ही बात है जो शहंशाहों के गिरेबानों से खेलने वाले आज खुद अपने ही गिरेबान के तार बेच रहे हैं. और ख़ुदा से उस दर्जे तक गाफ़िल हो गये हैं कि जैसे उस पर कभी ईमान ही नहीं था.
तब से अभी तक पूरे ग्यारह सौ साल बीत चुके हैं. भारत की जमीं पर जितना बड़ा हिंदु धर्म है, उतना बड़ा ही इस्लाम धर्म भी है. यदि हिंदू धर्म कई हजारों सालों से यहाँ के लोगों का धर्म रहा है तो इस्लाम भी यहाँ एक हजार साल से लोगों का धर्म रहा है. जैसे एक हिंदू गर्व के साथ कह सकता है कि वह एक भारतीय है और हिंदू धर्म का अनुसरण करता है, उसी तरह हम भी गर्व से कह सकते हैं कि हम भी भारतीय हैं और इस्लाम का पालन करते हैं. मैं इसे और भी विस्तार में ले जाना चाहता हूँ. एक भारतीय ईसाई उतने ही गर्व से यह कहने का हक़दार है कि वह एक भारतीय है और भारत में वह एक धर्म का पालन कर रहा है, जो ईसाई धर्म है.
हमें एक पल के लिए भी यह नहीं भूलना चाहिए कि हर एक व्यक्ति का यह जन्मसिद्ध अधिकार है कि उसे बुनियादी शिक्षा मिले, बिना इसके वह पूर्ण रूप से एक नागरिक के अधिकार का निर्वहन नहीं कर सकता. राष्ट्रीय शिक्षा का कोई भी कार्यक्रम उपयुक्त नहीं हो सकता यदि वह समाज के आधे भाग से जुड़ी शिक्षा पर ध्यान नहीं देता हो – वह है महिलाओं की शिक्षा. दिल से दी गयी शिक्षा समाज में क्रांति ला सकता है.
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)