जन्मदिन विशेष: डाॅ. मनमोहन सिंह जिनके ‘मौन’ ने सिखाया कि अधिक बोलना बुरा होता और झूठ बोलना तो और भी…

डॉ मनमोहन सिंह ने बिना कुछ कहे हमें समझाया है कि बहुत बोलना बुरा होता है, उसपर भी झूठ बोलना और ज्यादा बुरा. अगर ये देश के बारे में हो तो बुरा का मतलब विध्वंसक समझना चाहिए. सबसे मार्के की बात है कि सालों तक 18-18 घंटे झूठ बोलने से अपना विकास भले होता हो, देश का विकास कतई नहीं हो सकता.

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उन्होंने ये भी समझाया है कि देश को सही रास्ते पर ले जाने के लिए तेज आवाज वाला जबानी पहलवान प्रधानमंत्री जरूरी नहीं है. जरूरी है कि जो उस पद पर बैठे, उसका शरीर या आवाज कमजोर हो, लेकिन दृष्टि पैनी होनी चाहिए.

प्रधानमंत्री रहने के दौरान मनमोहन सिंह ने कहा था कि इतिहास उनका मूल्यांकन करने में उदारता बरतेगा. उन्होंने तब ये नहीं सोचा होगा कि ये वक्त इतना जल्दी आ जाएगा.

साल 1991 था. भारत की अर्थव्यवस्था रसातल पर जा चुकी थी. देश को अपना खर्च चलाने के लिए सोना गिरवी रखना पड़ा था. उसी दौर में एक कम बोलने वाले, दर्जनों पदों पर काम कर चुके नौकरशाह को उसकी योग्यता के दम पर राजनीति में लाया जाता है और वित्त मंत्री बना दिया जाता है. नरसिंहराव की सरकार ने वित्तमंत्री मनमोहन सिंह के हाथ में कमान सौंपी कि आर्थिक संकट से देश को बाहर लाना है. यहां से भारत में जिस आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत हुई, उसने भारत की तकदीर बदल दी.

यहां से विकास का एक नया दौर शुरू हुआ, जिसके अगले पड़ाव में मनमोहन सिंह खुद प्रधानमंत्री बने. वे दस साल तक प्रधानमंत्री रहे और एक छोटे दौर के लिए विकास दर को आठ और दस फीसदी तक भी ले गए. भारत वैश्विक शक्तियों में शुमार हो चुका है, ये चर्चा पहली बार उन्हीं के दौर में शुरू हुई थी और ये बात वे खुद नहीं, दुनिया भारत के बारे में कहती थी.

उनकी सरकार पर कई घोटालों के आरोप थे, कहा जा रहा था कि पूरी सरकार जेल में होगी, लेकिन उन घोटालों में ज्यादातर झूठ साबित हुए. मनमोहन सिंह जेल तो नहीं गए, उनकी प्रासंगिकता जरूर साबित हो चुकी है.

आज अर्थव्यवस्था माइनस में है और ये दुर्दशा देखकर लोग बार-बार मनमोहन सिंह को याद करते हैं. कभी यूपीए के घोर आलोचक रहे लोग भी मनमोहन सिंह को याद कर रहे हैं.

कुछ दिन पहले एक वरिष्ठ पत्रकार का लेख पढ़ा कि ‘मनमोहन के आलोचक भी ये मानते हैं कि वे निर्णय लेने में ज्यादा लोगों की राय लेते थे. वे संस्थाओं को महत्व देते थे. वे अर्थव्यवस्था को बेहतर समझते थे. आज वे होते तो कोरोना महामारी को बेहतर संभालते’.

2019 में मनमोहन सिंह ने मीडिया से कहा था, ‘मैं नहीं मानता कि मैं कमजोर प्रधानमंत्री हूं. भाजपा और उसके सहयोगी जो चाहे कहते रहें. अगर आप मजबूत प्रधानमंत्री का मतलब ये समझते हैं कि वह अहमदाबाद की सड़कों पर निर्दोषों का नरसंहार देखे, अगर ये मजबूती का पैमाना है तो मैं नहीं मानता कि इस देश को इस तरह की मजबूती की जरूरत है. मैं ईमानदारी से मानता हूं कि आज के मीडिया की अपेक्षा इतिहास मेरे प्रति उदार रहेगा’.

मैं तो यहां तक सोचता हूं कि अगर मनमोहन सिंह खराब थे, तब भी नरेंद्र मोदी ने साबित किया है कि वे काफी बेहतर प्रधानमंत्री थे.

मनमोहन सिंह ने भारत को घोर गरीबी से निकालने का एक उदार रास्ता अख्तियार किया था. एक निरंकुश तानाशाही आज वह रास्ता बंद करने पर आमादा है. देश का भविष्य जो भी हो, लेकिन डॉ मनमोहन के योगदान के लिए उन्हें सदैव याद किया जाएगा. भारतीय अर्थव्यवस्था की बर्बादी और उदार लोकतंत्र का दमन मनमोहन सिंह और बड़ा बनाएगा।

उन्होंने मजबूती से साबित किया कि देश की सबसे ऊंची कुर्सी पर बैठकर कोई नेता अपने लिए 8000 करोड़ का विमान और 20000 करोड़ का बंगला झटक ले तो इससे विकास का कोई लेना देना नहीं है, न ही इससे जनता को कुछ नहीं मिलता। आर्थिक मोर्चे पर घनघोर अयोग्यता और स्टंटबाजी ने देश को 50 साल पीछे पहुंचा दिया है।

मनमोहन सिंह की आलोचना में हमने भी तमाम लेख लिखे हैं, लेकिन आज उनके जन्मदिन पर एक बधाई तो बनती है. सैल्यूट!