UAE के बहाने: बदनाम अगर होंगे तो क्या नाम न होगा!

आर.के जैन

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सबसे पहले तो मैं जी न्यूज़ के ख्याति प्राप्त ऐंकर सुधीर चौधरी को बधाई देना चाहूँगा कि अब उनका नाम विदेशों में भी चर्चित होने लगा है । वह जिस काम व उद्देश्य की ख़ातिर जी जान से लगे हुऐ है उसके परिणाम सामने आने लगे हैं ।

संयुक्त अरब अमीरात की प्रिंसेस ने अबू धाबी में आयोजित होने वाले इंस्टीट्यूट ऑफ चार्टरड एकाउंटेंट के एक सेमिनार में बतौर वक्ता शामिल होने वाले न्यूज़ ऐकर सुधीर चौधरी को निमंत्रित किये जाने पर आयोजकों को गहरी फटकार लगाई थी वे उनके देश में एक इस्लामफोबिक, नफ़रती और हेट स्पीच व फेंक न्यूज़ फैलाने वाले को कैसे आमंत्रित किया गया है । उन्होंने यह भी कहा कि किसी भी धर्म के विरुद्ध नफ़रत व मिथ्या प्रचार करना उनके देश में अपराध है।

राजकुमारी की फटकार व चेतावनी के बाद यद्यपि आयोजकों ने सुधीर चौधरी को दिया गया निमंत्रण वापस ले लिया है पर सवाल है कि कार्यक्रम के आयोजक जो एक प्रतिष्ठित पेशेवर संस्थान से है को क्या सुधीर चौधरी की पृष्ठभूमि नहीं मालूम थी? या वो सुधीर चौधरी के द्वारा चलाये जा रहे एजेनडा को सही मानते है जो उन्हें वक्ता के तौर पर बुला रहे थे। मैं समझता हूँ कि सुधीर चौधरी पत्रकारिता में वह स्थान नहीं रखते जो उन्हें सम्मान दिलाता हो । उनका पत्रकारिता का स्तर हर समझदार व जागरूक व्यक्ति जानता है ।

मेरा यह मानना है कि कि बेइज़्ज़ती सुधीर चौधरी की नहीं हुई है बल्कि इन्स्टिट्यूट ऑफ चार्टरड एकाउंटेंट की हुई है जो इतना ग़ैर ज़िम्मेदार घोषित हुआ है कि उसे इतनी तमीज़ भी नहीं है कि अपने सेमिनार के वक्ताओं के पैनल में किसे आमंत्रित करे। अबू धाबी चैपटर व चार्टरड एकाउंटेंटस के मुख्य संस्थान की इस हरकत ने न केवल उनकी अपनी संस्था, अपने सदस्यों, व अन्य पेशेवर शिक्षण संस्थाओं को भी कलंकित करने का काम किया है बल्कि देश की छवि को भी बट्टा लगाया है। मैं स्वयं हैरत में हूँ कि आख़िर आयोजकों ने किस आधार पर सुधीर चौधरी को वक्ता के तौर पर आमंत्रित किया था जबकि देश में एक से बढ़कर एक पत्रकार, अर्थशास्त्री, बुद्धि जीवी, व अपने क्षेत्र के नामी लोग मौजूद है।

सुधीर चौधरी जैसे पत्रकारों या न्यूज़ ऐकरस को आप भले ही देश के अंदर महान, देशभक्त कहते रहे पर इनकी असलियत सब जानते है और सुधीर चौधरी के आचरण व उनकी भूमिका को लेकर जो ऐतराज संयुक्त अरब अमीरात की राजकुमारी ने उठाया है वह दरअसल हमारे देश के उपर भी है कि हम कैसे और क्यों इन्हें पाल पोस रहे है जो सिर्फ़ साम्प्रदायिक नफ़रत को फैलाने का काम करते हैं और एक विशेष धर्म के प्रति ज़हर उगलते रहते है। मैं समझता हूँ कि इस घटना से हमें सबक़ लेने की ज़रूरत है ।

(लेखक पत्रकार एंव टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)