“दो महीने और लाठी मार लें, इसके बाद वोट की लाठी चलेगी। बाबा जाएं अपने मठ में लाठी भांजें।”

यह उद्गार उस युवा के हैं जो छह महीने के लिए तैयारी करने शहर आया था और दो साल गुजर गए, उसे नौकरी नहीं मिली। रोजगार मांगने लखनऊ गया तो लाठी खाकर लौट आया। यूपी में किसी भी नौकरी की तैयारी कर रहे युवाओं का दर्द एक समान है। अंतहीन इंतजार और उसपर महंगाई, भ्रष्टाचार की मार।

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उत्तर प्रदेश के युवा अपनी जवानी प्रदर्शन में खर्च कर रहे हैं। शिक्षक भर्ती के अभ्यर्थियों का एक समूह 29 दिन से धरना दे रहा है। एक अन्य समूह कई महीने से धरना दे रहा है। लखनऊ का इको गार्डन दिल्ली का जंतर-मंतर है। उत्तर प्रदेश के वे युवा जो पढ़ाई पूरी कर चुके हैं और रोजगार तलाश रहे हैं, उनके लिए भर्तियों में भ्रष्टाचार बड़ा मुद्दा है।

पिछले पांच साल में उत्तर प्रदेश में जितनी भर्तियां निकली हैं, उन सबमें भ्रष्टाचार हुआ। हर परीक्षा का पेपर लीक हुआ या फिर भर्ती कोर्ट में अटक गई। इस स्तर के भ्रष्टाचार की कीमत प्रदेश के युवा चुका रहे हैं।

इलाहाबाद में पढ़ने वाला प्रतापगढ़, सुल्तानपुर, बस्ती, गोंडा का एक युवा, जो एक चाय भी पीने से पहले चार बार सोचता है, वह अपना समय और पैसा खर्च करके अगर लगातार लखनऊ धरना देने आ रहा हो, तो आप इस मुद्दे की गंभीरता समझ सकते हैं।

सिर्फ उत्तर प्रदेश ही क्यों, राष्ट्रीय स्तर पर हालात इससे बेहतर नहीं हैं। 2020 में 23 करोड़ लोग गरीबी रेखा से नीचे चले गए। लॉकडाउन के पहले हफ्ते में 12 से 14 करोड़ लोग बेरोजगार हुए थे। उसके बाद हर महीने लाखों में ये आंकड़ा आता रहा है। नोटबंदी के जरिये भारत की अर्थव्यवस्था को जानबूझ कर ध्वस्त किया गया। जनता इसकी कीमत चुका रही है और कई दशक तक चुकाएगी।

जनता का पेट जुमलों से नहीं भरता। जनता को उन्माद फैलाने से रोटी नहीं मिलती। जनता सिर्फ जय श्रीराम का नारा नहीं लगाती। उसे रोटी, कपड़ा, मकान, शिक्षा, स्वास्थ्य, रोजगार भी चाहिए।

आप 80 करोड़ लोगों को मुफ्त राशन बांट रहे हैं तो ये गर्व का नहीं, राष्ट्रीय शर्म का विषय है। ये बात नरेंद्र मोदी भले न समझें, देश का सबसे सामान्य और निरक्षर व्यक्ति भी समझता है। जो व्यक्ति मजदूरी करके परिवार पालता है, वह भी चाहता है कि उसका बच्चा पढ़ लिख कर कुछ रोजगार करे।

बच्चा पैदा होते ही उसे सरकारी बाबू बनाने का सपना देखने वाली यूपी की जनता ये समझ रही है कि 80% को मुफ्त राशन बांटने का मतलब है कि जनता के हाथ में कटोरा थमाया जा चुका है।

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार है, ये उनके निजी विचार हैं)