परवेज़ त्यागी
लखनऊ: आजमगढ़ लोकसभा सीट पर उपचुनाव का इतिहास बदलाव का रहा है। आम चुनाव में जीत दर्ज करने वाले दल को आजमगढ़ की जनता ने फिर उपचुनाव में स्वीकार नहीं किया है। इस सीट के आंकड़े इसकी गवाही दे रहे हैं। यही वजह है कि इस बार आजमगढ़ में आगामी 23 जून को होने वाले मतदान से पूर्व मैदान में उतरे तीनों दल जीत के लिए ऐडी-चोटी का जो लगा रहे हैं, लेकिन मतदाता अपने पत्ते नहीं खोल रहे हैं। यहां सपा वर्चस्व बचाने और बसपा वजूद बनाने के लिए जूझ रही है वहीं, भाजपा एक दशक बाद जीत की फिराक में जुटी है।
बता दें कि, आजमगढ़ लोकसभा सीट पर पहला उपचुनाव 1978 में हुआ था। 1977 के आम चुनाव में आजमगढ़ सीट से जनता पार्टी के राम नरेश यादव ने जीत दर्ज की थी। एक साल बाद ही उनके इस्तीफे से खाली हुई सीट पर उपचुनाव हुआ तो कांग्रेस की मोहसिना किदवई को यहां की जनता ने अपना सांसद चुना था। दूसरा उपचुनाव 2008 में आजमगढ़ सीट पर हुआ और 2004 के आम चुनाव में जीतने वाली सपा चार साल बाद ही बसपा से पराजित हो गई। बसपा के अकबर अहमद डम्पी ने दूसरे उपचुनाव में जीत दर्ज कर पहले चुनाव के इतिहास को बरकरार रखा। आम चुनाव 2019 में आजमगढ़ से सांसद बनने वाले सपा मुखिया अखिलेश यादव के विधायक बनने के बाद इस्तीफे देने से 2022 में तीसरा उपचुनाव हो रहा है। सपा से सीट छीनने और आजमगढ़ में दूसरी बार चुनाव जीतने के लिए सत्तारूढ़ भाजपा आतुर दिख रही है।
भाजपा प्रत्याशी दिनेश लाल यादव निरहुआ को जिताने के लिए मोदी-योगी सरकार के मंत्री पूरा जोर लगा रहे है। इतना ही नहीं आस-पडौस जिले के विधायक से लेकर सांसद तक को चुनावी रण में भाजपा ने उतार रखा है। उधर, बसपा के शाह आलम उर्फ गुड्डू जमाली भी मैदान मारने की जद्दोजहद में शिद्दत से जुटे हैं। सपा ने अपने प्रत्याशी धर्मेन्द्र यादव की जीत और सीट बचाने के लिए वोटरों की बिरादरी के हिसाब से नेताओं की चुनाव में ड्यूटी लगाई है।
सपा के मुस्लिम नेता और विधायकों ने डाला डेरा
आजमगढ़ सीट पर मुस्लिम मतदाताओं के बीच पकड़ बनाए रखने के लिए सपा ने अपने तमाम मुस्लिम नेता और विधायक प्रचार में उतार दिए हैं। शनिवार को आजम खान की चुनावी सभा के होने के साथ ही पश्चिम से लेकर पूरब तक के मुस्लिम नेताओं ने आजमगढ़ में डेरा डाल दिया है। पूर्व मंत्री शाहिद मंजूर, नवाब इकबाल महमूद, कमाल अख्तर सरीखे लोग गॉव-गॉव गली-गली मतदाताओं के बीच जाकर धर्मेन्द्र यादव के लिए वोट की मांग रहे हैं। सपा को बसपा के दमदार मुस्लिम प्रत्याशी के मैदान में होने से मुस्लिम मतों में सेंधमारी का खतरा सता रहा है।