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आज़म ख़ान: लोकतांत्रिक समाजवादी और एक ऐसा शिक्षाविद जो विश्विद्यालय बनाने की ‘सजा’ भुगत रहा है

विवेक कुमार

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आज़म ख़ान आधुनिक भारत में शिक्षा के, ख़ास तौर पर मुसलमानों के शिक्षा के सबसे बड़े प्रवक्ता हैं, एक ऐसा व्यक्ति जो इमरजेंसी में अपने आंदोलन के कारण जेल गया, जिसने रामपुर जैसे नवाबी और सामंती शहर को आधुनिक लोकतांत्रिक शहर बनाया। हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश के कद्दावर नेता आज़म ख़ान की तबीयत कोरोना के कारण अचानक से खराब हो गई और उन्हें ICU में भर्ती किया गया। दरअस्ल अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले आज़म ख़ान उत्तर प्रदेश के राजनीतिक गलियारों में एक बड़ा नाम माने जा रहे है, और तमाम राजनीतिक विश्लेषक इस बात की सहमति बना रहे है कि असद्दुदिन ओवैसी की पार्टी AIMIM पार्टी के उत्तर प्रदेश चुनाव में लड़ने का फैसला आज़म ख़ान को और महत्वपूर्ण बना देता है।

आज़म ख़ान का राजनीतिक शुरुआत।

 

आज़म ख़ान की राजनीतिक हलकों में चर्चा पहली बार सन 1974 में शुरू हुई जब वो अपने दमदार भाषणों और छात्रों के बीच अपने कामों को लेकर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय छात्र संघ के महासचिव चुने गए थे। ठीक एक साल बाद आज़म ख़ान को पहली बार आपातकाल में इंदिरा गांधी के नीतिओ के ख़िलाफ़ विरोध प्रदर्शन की वजह से जेल भी जाना पड़ा। प्रशासन की तमाम कोशिश और प्रताड़ना के बावजूद जिसमें उनके ऊपर अनगिनत FIR और इनके भाई शरीफ़ खान को अपनी नौकरी छोड़ने का दबाव बनाने तक के प्रयास शामिल थे। लेकिन इन कठिनाइयों ने युवा आज़म खां के हौसले को सिर्फ मजबूत किया। अपनी जेल की सजा के दौरान इन पर एक आरोप ये लगा की ये जेल के अंदर चुपके से किताब लेकर घुसे है और छुप कर उसे पढ़ते हुए पकड़े गए।

आज़म खां यूरोप में हुए फासीवाद और लैटिन अमेरिकी देशों में चल रहे साम्राज्यवादी दमन के खिलाफ समाजवादी आंदोलनों से बहुत प्रभावित थे और उस समय से ही समाजवादी विचारधारा के क़रीब आए। रामपुर के छोटे से शहर से उठकर दुनिया के तमाम राजनीतिक और सामाजिक आंदोलनों पर अपनी एक गहरी समझ बनाई। जेल से रिहा होकर आज़म ख़ान का सबसे पहला राजनीतिक कदम नवाबी दबदबे के खिलाफ था, जेल से रिहा होने के तुरंत बाद आज़म ख़ान चुनाव लड़े पर संसाधनों की कमी की वजह से चुनाव हार गए। उनका ताल्लुक़ एक बहुत ही सामान्य से परिवार से था,पिता एक टाइपराइटर की दुकान चलाते थे और परिवार की देखरेख उसी से करते थे।

 

आज़म खान ने उन दिनो शोषितों और मजदूओं में अपने राजनीतिक आंदोलनों के लेकर एक अच्छी पहचान बनाई। इस आंदोलनों के दौरान ही इनकी मुलाक़ात मुलायम सिंह यादव से हुई और बाद में समाजवादी पार्टी के सह-संस्थापक भी बने। आज़म ख़ान को क़रीब से जानने वाले बताते है की आज़म ख़ान खांटी के समाजवादी नेता हैं और पूंजीवाद, फांसीवाद,आर्थिक गैर बराबरी,अल्पसंख्यक समुदाय, सामाजिक न्याय जैसे शब्द इनके जवान पर हर राजनीतिक बहस में रहता है। आजम ख़ान लोहिया और अम्बेडकर से काफी प्रभावित थे और उनके विचारों को जमीन पर उतारने का प्रयास अपने राजनीति में हमेशा करते रहे है।

शिक्षा के क्षेत्र में आज़म ख़ान का योगदान।

 

आज़म ख़ान ने अपनी बातचीत में कई बार में ये बात ज़ाहिर की है कि मुसलमानों में शिक्षा का हाल बहुत ख़राब है और वे इसको लेकर हमेशा चिंतित रहते है, अपनी राजनीति से शिक्षा के क्षेत्र में आमूलचूल परिवर्तन के लिए खां साहेब ने अनगिनत स्कूल,कॉलेजों को डोनेशन देने से लेकर समाजवादी सरकार में मुसलमानों की शिक्षा को लेकर कई सारी नीतियो में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा। मजदूरों,दिव्यांग बच्चों और शोषित समाज से आने वाले बच्चों के लिए प्राइमरी, सेकेंडरी,सीनियर सेकंडेरी स्कूल और अंग्रेज़ों के ख़िलाफ़ अपने संघर्षों,और अपनी पत्रकारिता,शेरो/शायरी के लिए पहचान बनाने वाले मौलाना जौहर अली जिनका ये बयान “हमें आजादी दे दो या फिर कब्र के लिए दो गज जमीन दे दो”बहुत प्रसिद्ध है, के नाम पर विश्वविद्यालय खोला और मात्र 20 रुपये की फीस लेकर शिक्षा देने की पहल की। इसी विश्वविद्यालय की महज 4 बीघा ज़मीन के मामले में आज़म ख़ान जेल में है।

भाजपा सरकार में मुक़दमे

 

उत्तर प्रदेश और केंद्र की मौजूदा भाजपा सरकार हर रोज़ नए नए मामले में आज़म के ख़िलाफ़ FIR दर्ज करती रही है। उनके ऊपर दर्ज मुकदमों की संख्या 100 से ज्यादा हो गई है, कुछ मामले तो इतने हास्यास्पद है जिसकी कोई तुलना नहीं, जैसे किताब चोरी और बकरी चोरी का मामला, जिसका मक़सद सिर्फ़ आज़म खां को बदनाम करना है और रामपुर के आसपास की राजनीति का चेहरा बदल देने की छवि को धूमिल करने का है। भाजपा को ये बात अच्छे से पता है कि रामपुर और उसके आस पास के इलाकों में हिंदू मुस्लिम कार्ड आज़म ख़ान के रहते नहीं चलेगा, शायद इसलिए भी उन पर इतने मुकदमे किए जा रहे है।

 

राजनीतिक सफ़र

 

चार दशक से ज़्यादा के राजनीतिक संघर्ष में उन्होंने कई सारे उतार चढ़ाव देखे। कमण्डल आंदोलन के वक्त बढ़ते धार्मिक उन्माद को रोकने में इनकी मुख्य भूमिका रही। आज़म खा ने अपनी राजनीति को कभी हिंदू-मुस्लिम ध्रुवीकरण करके नहीं बनाया जिसके क़रीब आज कल भाजपा और कही कही  असद्दुदिन ओवैसी नज़र आते है,आज़म खां ने अपने कई भाषणों में कहा है कि “जबतक इस देश में बाबा साहेब का दिया हुआ संमविधान है तब तक हमें कोई कुछ नहीं कर सकता।आज़म खां ने मुस्लिम समुदाय को कभी डरा कर उनका वोट नहीं माँगा और अपने 40 साल से ज्यादा के राजनीति सफ़र में हिंदू मुस्लिम एकता और सामाजिक समन्वय स्थापित करने का काम किया।अखिलेश सरकार में इन्होंने कुम्भ मेले की ज़िम्मेदारी को अपने हाथों में लिया और आपसी भाईचारा बनाने का काम किया,शायद इसलिए भी भाजपा इनसे इतना नाराज है।

अपने राजनीतिक सफर में इन्होंने कभी मुसलमानो पिछड़ो और दलितों, के हकों के साथ कभी समझौता नहीं किया और पुरजोर तरीक़े से अपनी बात संसद पर और सड़कों पर रखी। आज़म ख़ान सपा सरकार के सबसे बड़े नेताओं में शामिल थे,और माना जाता है की इनका प्रभाव सूबे की लगभग 50 से 70 विधानसभा और 10 से 12 लोकसभा सीटों पर है पर मीडिया ने इन्हें कभी बड़ा नेता तो छोड़िए मुसलमानों का बड़ा नेता मानने से इनकार करती रही है।इसके उलट असदुद्दीन ओवैसी को मीडिया ने हमेशा ही एक मात्र मुस्लिम नेता की तरह पेश किया है, और बिना किसी संगठन के उत्तर प्रदेश की राजनीति में एक बड़ा स्थान अभी से दे दिया है।ओवैसी को बिहार के चुनाव के बाद से ही जहाँ AIMIM को पांच सीटें आई उत्तर प्रदेश में भी बड़ा खिलाड़ी माना जा रहा है और ऐसी अटकलें लगाई जा रही है की भाजपा के हिंदू मुस्लिम ध्रुवीकरण का फायदा इनकी पार्टी को भी होगा।

आज़म खां की पूरी राजनीति भाजपा के हिंदू मुस्लिम अजेंडा के खिलाफ रही है और किसी भी रूप से भाजपा को फायदा नहीं पहुँचाती, इसके उलट ओवैसी पर इस बात के बार बार इल्ज़ाम लगते रहते है की इनकी राजनीति से भाजपा को फायदा पहुंचता है। आज़म ख़ान ने जेल जाने से पहले एक अपील जारी करके देश के तमाम पढ़े लिखे तबके से भाजपा के द्वारा शिक्षा संस्थाओं पर हो रहे हमले पर बोलने और लिखने को कहा पर शायद किसी ने उन्हें गंभीरता से लिए जाने लायक नहीं समझा। दरसल अगर आप गौर से देखें तो वो वर्ग जिसे हम और आप बुद्धिजीवी कहते है वो भी अपना विचार,समझ (Narrative)उसी भाजपा समर्थित मीडिया द्वारा चलाए जा रहे propaganda से बनाता है जिसके हिसाब से आज़म ख़ान महज एक भूमाफिया बन कर रह गए है अपनी एक बड़े शिक्षाविद होने की असल पहचान से कही दूर।

 

(Article written by Vivek kumar,  Student-International relations and Area Studies School of international Studies(JNU)