आशुतोष तिवारी
कॉमेडियन मुनव्वर फारुकी! तुम ने कॉमेडी को अलविदा कह दिया। तुम्हारे 12 शो 2 महीने में कैंसिल हुए थे।यह साधारण बात नही है। भारत मे आम लोगों को इतनी फुर्सत नही है कि वह अपनी रोजी रोटी भूलकर एक कॉमेडियन के पीछे हाँथ धो कर पड़ जाएं। जाहिर तौर पर यह राजनीतिक उछल कूंद करने वालो का काम है। उनके पीछे पिछले कुछ दिनों से संगठित अभियान चल रहा है। एक ही सवाल है कि ऐसे कौन से लोग है , जिनकी राजनीतिक रोजी ऐसे अभियानों से चलती है। वह किसी के खिलाफ भीड़ को उकसाते हैं। किसी की कॉमेडी बन्द करा देते है। या कभी चूड़ी बेचने वाले को पीट देते है। आप को क्या लगता है? क्या इस असहिष्णुता की प्रतिनिधि भारत की आम जनता है? अगर वह होती तो मुझे नही लगता कि भीड़ किसी के खिलाफ इतने तय बद्ध प्रयास कर सकती है। पक्का राजनीतिक गिरोहों के पुछल्ले है जिनके दुकाने ऐसे ही कामो से आबाद हैं।
सबसे बड़ी जिम्मेदारी ऐसे में बनती है व्यवस्था की। कला की कोई भी विधा खुद को व्यक्त ही नही कर पायेगी , अगर उसे सिर्फ लोगो के न्याय के भरोसे छोड़ दिया जाए। अगर हम किताब, पेंटिंग, शो बैन कराने की संस्क्रति मे इंट्री किये तो हमे समाज को आइना दिखाने वाली कला से ही हाँथ धोना पड़ेगा।
सबको पता है कि हर धर्म में कट्टर मिजाज के कुछ राजनीतिक गैंग है, जिनका रोजगार यही है कि उन्हें कहीं कुछ बैन कराने का, चीखने – चिल्लाने का मौका मिला। भारत मे बढ़ती बेरोजगारी से ऐसे गैंग्स को मुफ्त लठैत मुहैया कराएं हैं। अब पुलिस का काम क्या है। कि वह कलाओ को इन गुर्गो के विवेक पे छोड़ दे या उनके लिए सुरक्षा का सहारा बने। मुनव्वर के केस में पुलिस ने उल्टा गैंग के सामने ही हाँथ खड़े कर दिए। यह वही बात हुई कि पुलिस कहे कि दलित घोड़ी पर न ही बैठे तो अच्छा वरना समाज की शांति भंग हो जाएगी। अरे भाई, आप किसलिए हैं।
अगर आज भारत के लोग और हमारी व्यवस्था ऐसी कार्रवाइयों के खिलाफ नही खड़े हुए तो जान लें कि वह कला जो हमे उदात्त बनाती है, दिन पर दिन खतरे की तरफ बढ़ रही है। और इसका ठीकरा पूरे समाज को असहिष्णु कहकर फोड़ा जाएगा जिसके प्रतिनिधि असल मे कुछ पोलिटिकल गैंग है , जिनकी निश्चित दिन बैठके होती हैं, जिनके निश्चित लक्ष्य होते हैं।
एक बात और भाई । हम इसी समाज मे रहते हैं। इसे कोस कर या इसका मजा ले कर हम इसका कुछ न कर सकेंगे, सिवाय अपनी बौद्धिक चेतना के अनूठेपन पर गर्व करने के । पर हमारी मुक्ति उन्ही के बीच है , जिनसे हम आये हैं। यह परंपरा प्रिय समाज है, इसलिए इसकी मिथ्या चेतनाओं से जूझते हुए हमें बहुत सावधानी बरतनी होगी ताकि कोई लूप होल न रह जाये। हर धर्म की कुरीतियों का उपहास करें, वह भी ऐसे उदात्त तरीके से की कोई यह न कह पाए कि यह तो सिर्फ फला धर्म को निशाना बनाता है।
मैं बराबरी करने के लिए नही कह रहा, भारत की व्यवहारिक चेतना को समझ कर समन्वय की सलाह दे रहा हूँ। इस देश का दिल बड़ा है, कोई दस साला सरकार इसे छोटा नही कर सकती। मुनव्वर निराश न हों। आपको युट्युब के जरिये अपनी बात चीत जारी रखनी चाहिए। बन पड़े तो प्रोग्राम भी। आपकी लोकप्रियता के हितैषी कम नही है। आप इस सरप्लस भावधारा का सहारा ले अपनी बात आगे बढ़ा सकते है। कल, भारत की शानदार शख्सियत बन सकते हैं।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)