अपशब्दों की दुनिया और स्त्री समाज

आरती रानी प्रजापति

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शब्दों का प्रयोग कितना सहज है हम सभी यह जानते हैं किन्तु शब्द ही असहज हो तो? हमारे समाज में गालियाँ देने का प्रचलन बहुत है। जिसे देखो गाली देता मिल जाता है। आजकल यह छोटे बच्चों के मुँह से ज्यादा सुनी जाती हैं। जिसपर माँ से लेकर आस-पड़ोसी तक बड़े खुश होते हैं। लेकिन यदि बच्चा बड़ा है तब गाली दे तो असहनीय हो जाता है। कमाल की बात यह है कि देश की आधी आबादी यानी स्त्रियाँ इन शब्दों से थोड़ा परहेज रखती हैं। सामान्य घर की महिलाएं गाली दो ही अवसर पर देती है- किसी के विवाह पर, जब सिर्फ स्त्री समुदाय इक्कट्ठा होता है या लड़ाई के समय। स्त्री पक्ष के लिए गाली देना भी गलत माना जाता है। हाँ यह बात अलग है कि आजकल पढ़ने-लिखने वाली लड़कियां नारीवाद का परचम लहराती हैं और खुद भी गाली देती हैं। जिससे वह खुद को पुरुषों के समकक्ष समझती हैं। उतना ही स्वतन्त्र और बिंदास दिखाना चाहती हैं इसलिए वह भी आज खुल कर गालियाँ देती हुई मिल जाएँगी। मुद्दा यह नहीं है कि लड़कियां गाली दे या न दें। बात यह है कि क्या वह इस बात को समझती हैं कि वे खुद अपनी जाति, समुदाय का अपमान करा रही हैं?

भारतीय समाज में प्रचलित अधिकत्तर गालियाँ स्त्री के यौन-अंगों से सम्बंधित हैं। समाज जब आदिम समय में जी रहा था उस समय ऐसी अपशदों की भाषा नहीं होती थी क्योंकि वहां स्त्री को बराबर मान दिया जाता था। जैसे-जैसे समाज ने निजी संपत्ति का विकास किया महिलाएं घर में बंद होती गई। स्त्री, एक पुरुष के अधीन बना दी गई। घर में बंद स्त्री के साथ परिवार की इज्ज़त को जोड़ा गया। आदिम समाज में स्त्री को न केवल शारीरिक संबंधों की आज़ादी थी वरन वह अपने सभी कार्यों में आत्मनिर्भर थी। अब सभ्यता ने उसे परिवार पर निर्भर रहना सिखाया।

लंबा है ग़ुलामी का इतिहास

स्त्री किसी एक दिन गुलाम बन गई हो ऐसा भी नहीं था यह कई हजार वर्ष चलने वाला सिलसिला था। खैर अब स्त्री परिवार की मान मर्यादा की रक्षिता मानी गई। इसलिए जब भी किसी समुदाय को अपने अधीन करना होता तो उसकी स्त्रियों को उठा लेता, बलात्कृत करता, बंदी बनाता जिससे उस स्त्री के किसी और के साथ शारीरिक सम्बन्ध है इस बात को कहा जा सके क्योंकि समाज में ऐसी मनाही थी। जो समुदाय या परिवार जन कुछ कमजोर होते थे वे यह सब कह कर ही अपना काम चला लेते हैं कि तेरी माँ या बहन के साथ सम्बन्ध बना लूंगा और सभी बातें। ‘चुतिया’ एक आम गाली जो स्त्री की योनि से ही जुडी है। इसका आजकल बहुत प्रयोग होता है। योनि के नाम पर बनी यह गाली व्यक्ति के मूर्ख होने का संकेत देती है। और यह बनी है स्त्री के उस अंग से जो पुरुष से उसे भिन्न करता है। यानि स्त्री मूर्ख होती हैं इस बात को यह शब्द हमें बताता है। पूरे स्त्री समाज पर प्रहार यह शब्द कितना पितृसत्तात्मक है यह कोई सोचता भी नहीं।

एक ऐसी ही गाली है ‘बहनचोद’ है। कितनी अजीब बात है कि एक तरफ हमारे समाज में खाप पंचायत है। शिव सेना है जो बात-बात पर धर्म संस्कृति का हवाला देती है। स्त्री को पार्क में किसी के साथ यदि यह देख ले तो डंडा लेकर पीटने लगते हैं। वही लोग जो स्त्री को देवी मानकर उसके पूजने की बात करते हैं माँ और बहनचोद कहने में शर्म महसूस नहीं करते। ऐसे लोगों को यदि आप टोक दे तो उनका अहम जाग जाता है। उलटा आपको सुना देंगे। तर्क करेंगे कि यह हमारे समाज की भाषा है ऐसा ही बोलते हैं हम। यह सही है कि आप ऐसा ही बोलते हैं पर आप कैसे  हैं यह भी हम अच्छे से जानते हैं। आपकी महान संस्कृति महिलाओं की भक्षक है उन्हें घर में बंद किया जाता है। प्रेम करने की छूट तो क्या यहाँ तो मीरा को भक्ति का भी अधिकार नहीं दिया गया। इसी महान संस्कृति में महिलाओं को ज़िंदा जलाया जाता है। लड़की है यह जानते ही मार दिया जाता है। आपकी महान सभ्यता और संस्कृति महिलाओं के शोषण पर टिकी हुई है। और मुँह से औरतों के लिए अपशब्द निकालते लोग क्या महान संस्कृति के वाहक हो? आपने कभी सोचा है कि जब आप इन शब्दों का प्रयोग किया है तक हम क्या महसूस करती हैं? कितना विद्रोह उमड़ता है भीतर। आपने जब चाहा आपने भाषा में हमारा सम्बन्ध किसी भी सड़क चलते के साथ जोड़ दिया और यही हम किसी को आँख उठा कर देख भी ले तो आपको आपत्ति होती है।

प्रेम करने की सजा

पिछले साल की घटना है केरल की एक लड़की को उसके माँ-बाप ने घर के एक कमरे में इसलिए बंद कर दिया था क्योंकि उसने प्रेम करने की गलती की थी। ताजी हवा-पानी से बेदखल वह लड़की कुछ सालों में अपना मानसिक संतुलन खो देती है। यह किसी एक राज्य या घर की बात नहीं है पूरे भारतीय समाज की यही दशा है  यहाँ प्रेमी राधा-कृष्ण को घर-घर में पूजे जाएंगे, प्यार किया तो डरना क्या कहती अनारकली तो हिट हो सकती है पर अपने घर की बेटी किसे से बात करती सहनीय नहीं है। और आप अपनी भाषा के माध्यम से अपनी उन स्त्रियों का जिन्हें आप पर्दें में रखते हैं सबके सामने नंगा कर देते हैं। कैसा समाज है यह विरोधों से भरा हुआ। आजकल स्त्रियाँ भी इन गालियों का प्रयोग कर रही हैं। बिना इस बात को सोचे हुए कि ये  उनके देहवादी विमर्श को कितना खोखला कर देता है। आप देह मुक्ति की बात करेंगे और साथ ही किसी को अपनी भाषा में जबरन किसी के साथ जोड़ देंगे।

वेश्या के लिए समाज में ‘रंडी’ शब्द प्रचलित है। वेश्याएं समाज से जबरन अगवा की गई वह स्त्रियाँ होती हैं जिन्हें समाज स्वीकार नहीं करता। होती वह स्त्रियाँ हैं पर समाज से बहिष्कृत औरतें। जिन्हें पुरुष समाज ने अपने पैसे, देह और अन्य निजी कारणों से देह-व्यापार में धकेल दिया। वेश्या के साथ यही समस्या है वह समाज की यौन-शुचिता की मानसिकता को समाज के ही कारण खो देती है। समाज में स्त्री के लिए यौन-शुचिता की अवधारणा प्रचलित हैं एक बार अपने कोमार्य को खो दिया तो समाज आपको जीने नहीं देता यही कारण है कि बलात्कार की शिकार महिलाओं को समाज ताने देता है। ‘कहीं मुँह दिखाने लायाक नहीं छोड़ा’ यह सुनाता है।

मजेदार बात हैं कि जिस भारतीय समाज में इतने बंधन हैं उसी में स्त्री की यौनिकता को हमेशा सबके सामने बोला जाता है। रंडी वेश्या के लिए प्रचलित शब्द स्त्री के लिए अक्सर प्रयुक्त किया जाता है। सड़क, चौराहें कहीं भी यदि किसी स्त्री को अपमानित करना है तो उसे रंडी कहना ही काफी है। स्त्री के लिए बना एक शब्द स्त्री के लिए ही खराब हो जाता है। किसी भी स्त्री को नीचा दिखाना हो तो उसे रंडी कह दो। स्त्री जिसे आप देवी मानते हैं, दुर्गा काली की उपाधि देते हैं उसने यदि किसी शारीरिक सम्बन्ध को बना लिया तो आप उसे गाली देंगे। वेश्यावृत्ति का अपना एक इतिहास है। रंडी शब्द मेरी समझ के अनुसार रांड से बना है जिसका मतलब होता है जिसका पति न हो। वेश्या किसी एक की नहीं होती।ऐसे ही जिस स्त्री को यह कहा जाता है माना जाता है कि उसके किसी के साथ सम्बन्ध हैं। क्या कभी किसी पुरुष के लिए इस शब्द का प्रयोग होते सूना गया? क्या शारीरिक सम्बन्ध के लिए स्त्री ही जिम्मेदार है? यदि पुरुष का सम्बन्ध बनाना गलत नहीं है तो स्त्री का कैसे हो सकता है ? पुरुष किसी पत्थर से तो सम्बन्ध नहीं बनाता फिर ऐसा भेदभाव क्यों?

सभी गालियाँ स्त्री से जुडी होती हैं और गहरे उनका सम्बन्ध स्त्री की यौनिकता उसके कामांगों से होता है। स्त्री को देवी मनाने का ढोंग करने वाला तथाकथित भारतीय समाज वास्तव में उसको कभी सम्मान देता ही नहीं। हर घर में चाहे वह कितना पढ़ा-लिखा परिवार हो या गरीब इन गालियों का प्रयोग वहां आसानी से मिल जाता है। स्त्री को लगातार इन शब्दों के माध्यम से नीचा दिखाने की कोशिश की जाती हैं। उसे हर बार इस बात को बताया जाता है कि तुम सिर्फ एक गाली हो जिसका सम्बन्ध कभी भी किसी से भी जोड़ा जा सकता है। और हैरानी की बात है कि स्त्री समाज खुद इस बात को समझना नहीं चाहता कि यह शब्दावली उसके जहन में क्यों उतारी जा रही है। ऐसा नहीं है कि वह इसका अर्थ नहीं जानती पर प्रयोग करती है लगातार यह सोच कर कि क्या फर्क पड़ता है, पर इन छोटी-छोटी बातों से ही हम अपने अस्मिता कि लड़ाई को दिशाहीन कर रहे हैं। सदियों से जिस सत्ता ने हमें बंद रखा, मारा पीटा, हत्या की हम जान बूझ कर उस सत्ता जैसे ही बन रहे हैं और कहीं न कही हम पितृसत्ता की उस साजिश को पूरा कर रहे हैं जो चाहती है कि हम गुलाम रहे सब जानते हुए भी।

(लेखिका आरती रानी प्रजापति JNU की पीएचडी स्कॉलर हैं, ये उनके निजी विचार हैं)