किसी लेखक की पहचान केवल उसकी एक किताब से होती है, चाहे उसने दर्जनों पुस्तकें लिख डाली हों. अब्दुल रज़ाक गुरनाह की ‘पैराडाइज़’ को पहले बुकर, फिर व्हाइटब्रेड प्राइज़ और अब साहित्य का नोबेल पुरस्कार मिला है। ‘पैराडाइज़’, फिक्शन पर आधारित किताब है। तंज़ानिया के क़स्बे कावा का बालक, युसूफ कहानी के केंद्र में है, जो होटल के कारोबारी पिता का क़र्ज़ उतारने के वास्ते एक अरब व्यापारी के हत्थे चढ़ गया, और बंधुआ मज़दूर बन गया।
अब्दुलरज़ाक गुरनाह ने बालक युसूफ के किरदार को बंधुआ मज़दूरी की त्रासदी से कनेक्ट किया है. प्रथम विश्वयुध्द के दौरान कांगो और पश्चिमी अफ़्रीकी देशों की हालत लगभग वैसी ही थी। अरब और यूरोपीय व्यापारी आते, और पैसे के बल पर स्थानीय लोगों का शोषण करते. गुरनाह ने फिक्शन के ज़रिये अफ़्रीकी उपनिवेशों में यूरोपीय भ्रष्टाचार और अनैतिकता पर प्रचंड प्रहार किया है।
गुरनाह की भाषा शैली पोलिश-ब्रिटिश लेखक ,जोसेफ कोनराड के काफी क़रीब है, जिन्हें उनकी कृति ‘हार्ट ऑफ़ डार्कनेस’ के वास्ते साहित्य का नोबेल पुरस्कार 1902 में मिला था. संजोग देखिये, जोसेफ कोनराड ने अपने उपन्यास ‘हार्ट ऑफ़ डार्कनेस’ की कथा भी कांगो नदी के गिर्द बुनी थी।
अब्दुलरज़ाक गुरनाह की पुस्तक ‘पैराडाइज़’ 1994 में छपकर आयी थी. 27 साल के बाद यह पुस्तक अपने मुकाम को हासिल कर गयी, जो किसी भी रचनाकार का सपना होता है. अब्दुलरज़ाक गुरनाह ने 10 किताबें लिखी हैं. उनकी पहली पुस्तक 1987 में प्रकाशित ‘मेमोरी ऑफ़ डिपार्चर’ थी, और आखिरी किताब 2020 में छपी Afterlives.
उनकी एक और किताब ‘बाई द सी’ 2001 में छपी, जो बूकर प्राइज़ के लिए लांगलिस्टेड रही. ‘बाई द सी’, “लॉस एंजिलिस टाइम्स बुक प्राइज़ ” से नवाज़ी गई।
जंजीबार में जन्मे अब्दुलरज़ाक गुरनाह एक छात्र के रूप में लन्दन आये, और वहीँ के होकर रह गए. रिटायर होने तक यूनिवर्सिटी ऑफ़ केंट में अंग्रेज़ी साहित्य पढ़ाते रहे। अब्दुलरज़ाक गुरनाह ने अपने रचना संसार के अधिकांश हिस्से को पूर्वी अफ्रीका के तटीय इलाकों तक केंद्रित कर रखा था। उनकी क़िस्सागोई के नायक भी उधर के ही होते हैं !