ज़ैग़म का सवालः किसी को सरकारी मदद या पीएम केयर फंड से किसी तरह की सहायता मिली?

पूरी दुनिया ने कहा कि कोरोना अमीरों की बीमारी है। शुरू में ऐसा लगा भी। ये पहली बीमारी थी जिसका असर ऊपर वाले तबके से नीचे की तरफ आया। इस वायरस ने प्लेन में सफर किया, ट्रेन या छकड़े में नहीं। जहां जहां जहाज़ जा सकते हैं वहां तक ये वायरस पहुंच गया। विदेशों में तमाम बड़े नेता, अभिनेता, कारोबारी और शिकारी इसका शिकार बने। ऐसा लगा मानो ऊपर वाले ने किरोना को किसी ख़ास मिशन पर भेजा है। लेकिन ये सब दुनिया की बातें थीं।

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भारत समेत तमाम गर्म देशों में इसका असर धीमा और सीमित रहा है। इसका फायदा यहां व्यापारी और शासक वर्ग ने जमकर उठाया है। अब आप देखिए पिछले दो महीने में कौन कमा रहा है और कौन गंवा रहा है? संक्रमितों और मरने वाले लोगों को दरकिनार कर दें तो पिछले दो महीने की बड़ी घटनाएं देखिए। सरकार ने वेतन भत्तों में कटौती की, श्रमिक अधिकार ख़त्म किए, नौकरियों में छंटनी हुई, जमाखोरी और मुनाफाखोर बढ़ी, ज़रूरी सामान की क़ीमत बढ़ी, राशन और दवाओं की कालाबाजारी हुई, तेल की कीमत बढ़ी, टैक्स बढ़े, सरकार की आमदनी बढ़ी, पीएम केयर फंड असीमित दर से बढ़ा, चोर रास्ते से सरकारी संसाधन बिके, कई कंपनियों का मालिकाना हक बदल गया। येस बैंक के शेयर जिन 3 निजी बैंकों को 10 रुपए की दर से देकर निवेश कराया था वो अपना पैसा निकाल कर निकल लिए। एफडीआई के रास्ते और ज़्यादा काला धन सफेद होकर लौटा।

अब गंवाने वालों की बात। किसी को सरकारी मदद या पीएम केयर फंड से किसी तरह की सहायता मिली? क्या अस्पताल में वेंटिलेटर, दवा या डॉक्टर बढ़े? क्या सरकार से राशन, वित्तीय सहायता या घर वापसी में कोई सहयोग मिला? नौकरी वापसी या आर्थिक गारंटी जैसी कोई बात सरकार ने आपके लिए की? क्या एक बार भी किसी ने कालाबाजारी या जमाखोरी रोकने की कोशिश की? नहीं। इस दौरान आपने नौकरी गंवाई, नौकरी के अवसर गंवाए, पैसा गंवाया, जान गंवाई, अपने परिजन गंवाए, आज़ादी गंवाई, जीने का अधिकार खोया, बचत खोई, सपने खो दिए। उनके प्रचारक आपको पढ़ाते रहे कि ये सब आपकी जान बचाने के लिए हो रहा है और आप अनपर विश्वास करते रहे। चौक नुक्कड़ , दुकानों पर उनके झूठे आपको बताते रहे कि बहुत शानदार काम हो रहा है, आप ख़ुशी में थाली, प्लेटें बजाते रहे।

आपने उनके कहने से ताली बजाय, मोमबत्ती जलाई और बस आपका काम ख़त्म। आख़िर आप नाटक देख रहे थे। नाटक देखने के लिए टिकट के पैसे चुकाना और नाटक के सफल मंचन पर ताली बजाना आपका फ़र्ज़ है। अब आपकी हालात लेट नाइट शो देख कर निकले उस शोहदे की सी है जिसे घर लौटने के लिए रिक्शा नहीं मिला है, उल्टा रास्ते में उचक्कों ने घड़ी और पर्स छीनने के साथ कपड़े भी उतरवा लिए हैं। घर का रास्ता लंबा है, इस हुलिए में कोई लिफ्ट दूर पानी को न पूछेगा और इस हाल में घर जाएंगे तो कुटने की संभावना बराबर है। ये सब पढ़ने के बाद आपको मानना पड़ेगा कि हमारी सरकार ने चमत्कार तो किया है। आख़िर विपदा की मार्केटिंग और उस से मुनाफा कमा ले जाना कलाकारी तो है। 135 करोड़ में अगर दो चार लाख इस बीच मर भी जाएं तो कौन सा फर्क़ पड़ने वाला है।

(ज़ैग़म मुर्तज़ा लंबे समय से पत्रकारिता से जुड़े रहे हैं, ये उनके निजी विचार हैं)