अपने मास्टर का हो चुका है मध्यम वर्ग, इसे पैकेज नहीं, थाली बजाने का टास्क चाहिए

कोविड-19 भारत के मध्यम वर्ग का नया चेहरा पेश किया है। जिस चेहरे को बनाने में छह साल लगे हैं आज वो चेहरा दिख रहा है। आलोचक हैरान हैं कि नौकरी और सैलरी गंवा कर मध्यम वर्ग बोल क्यों नहीं रहा है? मज़दूरों की दुर्दशा पर मध्यम वर्ग चुप कैसे है? मैंने पहले भी लिखा है और फिर लिख रहा हूं कि जब मध्यम वर्ग अपनी दुर्दशा पर चुप है तो मज़दूरों की दशा पर कैसे बोले। मध्यम वर्ग कोई स्थायी जगह नहीं है। इसलिए उसकी परिभाषा भी स्थायी नहीं हो सकती है।

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मैं आज के मध्यम वर्ग को मास्टर का मध्यम वर्ग कहता हूं। वो मध्यम वर्ग नहीं रहा जो मास्टर को डराता था या मास्टर जिससे डरता था। भारत के मध्यम वर्ग की दबी हुई हसरत थी कि कोई ऐसा मास्टर आए जो हंटर हांके। इसलिए उसे समस्याओं का समाधान या तो सेना के अनुशासन में नज़र आता था या फिर हिटलर के अवतार में। भारत का मध्यम वर्ग अब लोकतांत्रिक आकांक्षाओं वाला वर्ग नहीं रहा। इसलिए लोकतांत्रिक संस्थाओं के पतन का वह मुखर विरोधी भी नहीं रहा।

मुमकिन है मध्यम वर्ग सैलरी कटने या नौकरी ही चले जाने से उदास हो लेकिन वह बाहर से उस हवा के साथ दिखना चाहता है जिसे वह बनाते रहा है। उसने इस हवा के ख़िलाफ उठने वाले हर सवाल को कुचलने में साथ दिया है। गोदी मीडिया को दर्शक इसी मध्यम वर्ग ने उपलब्ध कराए। असमहतियों पर गोदी मीडिया के लिए हमला तक किया। अब अगर मध्यम वर्ग के भीतर किसी प्रकार की बेचैनी या नाराज़गी है भी तो वह कौन सा चेहरा लेकर उस मीडिया के पास जाएगा जिसके गोदी मीडिया बनने में उसकी भी भूमिका रही। इसलिए वह अपनी चुप्पियों में कैद है।

यह असाधारण बात है। अगर इस देश में करोड़ों लोग बेरोज़गार हुए हैं तो उसमें मध्यमवर्ग की तमाम श्रेणियों के भी लोग होंगे। लेकिन उन्होंने इक्का-दुक्का प्रसंगों को छोड़ अपनी बेचैनी ज़ाहिर नहीं की। अपने लिए बेरोज़गारी भत्ता नहीं मांगा। मध्यम वर्ग ने छह साल से हर उठने वाली हर आवाज़ को कुचलने का काम किया है। उसे पता है कि आवाज़ का कोई मतलब नहीं है। वह जिस गोदी मीडिया का रक्षक बना रहा है, उससे भी नहीं कह सकता कि हमारी आवाज़ उठाएं।

नरेंद्र मोदी ने एक ऐसे मध्यम वर्ग की रचना की है जो अपने वर्ग-हित का बंधक नहीं है। उसका हित सिर्फ नरेंद्र मोदी हैं। यह स्टेट का वर्ग है। यानि सरकार का वर्ग है। यह वो मध्यम वर्ग है जो सिर्फ सरकार की तारीफ करना चाहता है और तारीफ़ में छपी ख़बरों को पढ़ना चाहता है। इस मध्यम वर्ग ने आईटी सेल को खड़ा किया। उसकी भाषा को सामाजिक आधार दिया। सरकार के पक्ष में खड़े पत्रकारों को हीरो बनाया। यह वर्ग कहीं से कमज़ोर नहीं है। इसलिए मैंने कई आलोचकों को कहा है कि मध्यम वर्ग की चुप्पी को अन्यथा न लें।

बेरोज़गारी के मुद्दे से मध्यम वर्ग के नए बने राष्ट्रीय चरित्र को तोड़ने वाले धोखा खा चुके हैं। इस मध्यम वर्ग को पता है कि छह साल में उसकी कमाई घटी ही है। उसका बिज़नेस गच्चा ही खाया है। उसके मकानों की कीमत गिर गई है। यह सब वह जानता है। लेकिन ये समस्याएं उसकी प्राथमिकता नहीं हैं। इस वर्ग ने बेरोज़गारी जैसे ज्वलंत मुद्दे को भारत की राजनीति से समाप्त कर दिया। तभी तो हरियाणा सरकार ने जब कहा कि एक साल तक सरकारी नौकरी में भर्ती नहीं होगी तो मध्यम वर्ग ने उसे भी सहर्ष स्वीकार किया। हर राज्य में सरकार नौकरी की प्रक्रिया की दुर्गति है लेकिन यह न तो उन नौजवानों की राजनीतिक प्राथमिकता है और न ही उनके मध्यमवर्गीय माता-पिता की।

मध्यम वर्ग की पहचान बेरोज़गारी की आग और नौकरी के भीतर जीवन की सीमाओं से बनी थी। आज का मध्यम वर्ग इन सीमाओं से आज़ाद है। मध्यम वर्ग मुद्दों का वर्ग नहीं है। विगत छह वर्षों में उसने अनेक मुद्दों को कुचल दिया। राजनीति को आर्थिक कारणों के चश्मे से देखने वाले ऐतिहासिक रूप से भले सही रहे हों, लेकिन भारत के इतिहास के इस कालखंड में वे ग़लत हैं। ध्यान रहे मैंने मध्य वर्ग को स्थायी वर्ग नहीं कहा है। जब बदल जाएगा तब बदल जाएगा मगर आज वह ऐसा ही है।

कोई भी वर्ग एक परिभाषा में नहीं समा सकता है। हर वर्ग के भीतर कई वर्ग होते हैं। मध्यम वर्ग के भीतर भी एक छोटा सा वर्ग है। मगर वो राजनीति या सरकारों पर पड़ने वाले दबाव का प्रतिनिधित्व नहीं करता है। वह अपनी नैतिकताओं के प्रति जवाबदेह है। इसलिए वह अपनी कमाई लुटा कर जनसेवा कर रहा है। लेकिन उसकी यह जनसेवा भी अपने वर्ग को झकझोर नहीं पा रही है कि अब तो बोला जाए। मध्म वर्ग के भीतर का यह दूसरा वर्ग अपने वर्ग हित से विमुख है। हताश है। लेकिन वह स्वीकार नहीं कर पा रहा कि उसके वर्ग का बड़ा हिस्सा बदल गया है। उसका नव-निर्माण हुआ है। अच्छा हो चाहे बुरा हो लेकिन यह वो मध्यम वर्ग नहीं है जिसे आप किसी पुराने पैमानों से समझ सकें।

इस मध्यवर्ग की पहचान वर्ग से नहीं है। धर्म से है। मुमकिन है धर्म की आधी-अधूरी समझ हो। लेकिन उसके इस नव-निर्माण में धर्म की बहुत भूमिका रही है। यह वर्ग आर्थिकी से संचालित या उत्प्रेरित नहीं होता है। इसने कई बार ऐसे आर्थिक संकटों को दरकिनार कर दिया है। इसलिए विश्लेषक उसकी आर्थिक परेशानियों में राजनीतिक संभावना तलाशने की व्यर्थ कोशिश न करें। स्वीकार करें कि प्रधानमंत्री मोदी ने अपने लिए एक वर्ग का निर्माण किया है।

यह वो वर्ग है जिसके खाते में 15 लाख न जाने का आपने कितना मज़ाक उड़ाया लेकिन इस वर्ग ने मज़ाक उड़ाने वालों को धुएं में उड़ा दिया। विरोधियों को उम्मीद थी कि 15 लाख की बात याद दिलाने से मध्यम वर्ग को ठेस पहुंचेगी। मध्यम वर्ग ने याद दिलानों वालों को ही ठेस पहुंचा दी। जब इस मध्यम वर्ग ने 15 लाख की बात को महत्व नहीं दिया तो आपको क्यों लगता है कि वह आर्थिक पैकेज में पांच या पचास हज़ार का इंतज़ार करेगा। नोटबंदी के समय बर्बादी इस वर्ग को भी हुई लेकिन उसने अपनी राष्ट्रीय पहचान के सामने धंधे की बर्बादी के सवाल को नहीं आने दिया। विश्लेषक इस बदलाव का अध्ययन बेशक करें मगर इस संकट में राजनीतिक बदलाव की उम्मीद न करें। उनका विश्लेषण कमज़ोर पड़ जाएगा। मध्यम वर्ग का स्वाभिमान बदल गया है।

मध्यम वर्ग को अपने अनुभवों से पता है कि मेक इन इंडिया फेल कर गया। स्मार्ट सिटी प्रोजेक्ट के नाम पर वह हंसता है। वह आत्म निर्भर भारत के जुमलेबाज़ी को भी जानता है। वह हर तरह के झूठ को जानता है। उसने झूठ को सच की घोषणा सोच समझ कर की है। उसने गोदी मीडिया को अपना मीडिया यूं ही नहीं बनाया है। उसके भीतर की राजनीति खत्म हो चुकी है। इसलिए वह राजनीतिक दबाव नहीं बनाएगा। अपनी बात धीरे से कहेगा। किसी से कहेगा। मुझसे भी कहेगा तो पूरा ध्यान रखेगा कि इससे उसके भीतर कोई नई राजनीतिक प्रक्रिया शुरू न हो जाए। मतलब वह मोदी जी की आलोचना बिल्कुल नहीं करेगा। वह थाली बजाना छोड़ कर मशान उठाने वाला नहीं है। वह बैनर लेकर जुलूस में जाने वाला नहीं है। इसलिए जब भी वह समस्या बताए तो आप चुपचाप उसे लिख दें। आवाज़ उठा दें। आपका काम समाप्त होता है।

कोविड-19 के संकट काल में भारत के मध्यम वर्ग ने अपने लिए किसी भी मांग को लेकर मुखरता नहीं दिखाई। बेशक चलते फिरते कहा कि सैलरी क्यों कटी, नौकरी क्यों गई, ईएमआई क्यों नहीं कम हुई लेकिन कहने के बाद वही भूल गया कि उसने क्या कहा। अब सरकार पर निर्भर करता है कि उसने छह साल में जिस मध्यम वर्ग का नव-निर्माण किया है उसे क्या देती है। नहीं भी देगी तो भी सरकार निश्तित हो सकती है कि उसकी बनाई इमारत इतनी जल्दी नहीं गिरने वाली है। यह मध्यमवर्ग उसका साथी वर्ग है।

एक पत्रकार की नज़र से मुझे यह बात हैरान ज़रूर करती है कि मोदी सरकार ने मिडिल क्लास के बारे में क्यों नहीं सोचा? और नहीं सोचा तो मध्यम वर्ग ने आवाज़ क्यों नहीं उठाई? दो चार लोग बेशक बोलते सुनाई दिए लेकिन एक वर्ग की आवाज़ नहीं सुनाई दी।

भारत का मध्यम वर्ग अब लंबे लेख भी नहीं पढ़ना चाहता है। चाहे उसमें उसके भले की बात क्यों न लिखी हो। उसे सब कुछ व्हाट्स एप मीम की शक्ल में चाहिए। ईएमआई पर जीने वाला यह वर्ग ज्ञान भी किश्तों पर चाहता है। मीम उसके ज्ञान की ईएमआई है। उसका सपना बदल गया है। वह टिक टाक पर अपने आप को निरर्थक साबित करने में जुटा है। आप टिक-टाक में मध्यम वर्ग के जीवन और आकांक्षाओं में झांक कर देख सकते हैं। होशियार नेता अगर आर्थिक पैकेज की जगह अच्छा सीरीयल दे दे तो मध्यम वर्ग की शामें बदल जाएंगी। वह उस सीरीयल में पहने गए कपड़ों और बोले गए संवाद को जीने लगेगा। राष्ट्रीय संकट के इस दौर में मध्यम वर्ग के राष्ट्रीय चरित्र का दर्शन ही न कर पाए तो किस बात के समाजशास्त्री हुए आप।

(लेखक जाने माने पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)