योगी राजः पहले 1621 शिक्षकों को चुनाव में ड्यूटी करवा कर ‘मारा’ गया और अब उनकी आत्माएं छलनी की जा रही हैं।

कृष्णकांत

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कल्याणी जौनपुर में सहायक अध्यापक थीं। वे 8 महीने के गर्भ से थीं। वे ड्यूटी नहीं करना चाहती थीं। वे 30 किलोमीटर दूर ड्यूटी निरस्त करवाने का आवेदन लेकर गईं लेकिन ड्यूटी निरस्त नहीं की गई। कहा गया कि अगर वे ड्यूटी पर नहीं पहुंची, तो उनके खिलाफ एफआईआर दर्ज की जाएगी और वेतन भी नहीं मिलेगा। कल्याणी की नौकरी का पहला महीना था। उन्हें अभी तनख्वाह भी नहीं मिली थी। उनसे 15 अप्रैल को चुनाव ड्यूटी करवाई गई। वे 32 किलोमीटर का सफर करके ड्यूटी करने गईं। उन्हें कोरोना संक्रमण हो गया। 15 दिन बाद जौनपुर के अस्पताल में कल्याणी की मौत हो गई।

कल्याणी की तरह सुल्तानपुर में 28 साल रमेश यादव की भी नई नौकरी थी। पहली सैलरी की खुशी घर आनी थी। लेकिन चुनाव ड्यूटी के बाद उनकी मौत हो गई। इसी तरह पूरे प्रदेश में 1621 घरों के दिए चुनावी सनक में बुझा दिए गए, लेकिन इसे कोई मानने को तैयार नहीं है। हाईकोर्ट यूं नहीं नहीं कह रहा है कि यह जनसंहार है। यूपी का शिक्षक संघ चिल्ला रहा है कि चुनाव ड्यूटी के बाद कोरोना संक्रमण से 1621 शिक्षकों की जान गई है। लेकिन यूपी सरकार कह रही है कि सिर्फ 3 की मौत हुई है।

अगर आप आंख मूंद लें और जानबूझ कर अंधे हो जाएं तो यूपी सरकार की तरह आप भी कह सकते हैं कि देश में कोरोना से एक भी मौत नहीं हुई है। यूपी सरकार भी जान बूझकर आंधर हो गई है। यूपी के पंचायत चुनाव में जो हुआ और जो हो रहा है, वह क्रूरता का क्रूरतम उदाहरण है।

चुनाव के बीच में पहले 135 शिक्षकों की मौत की खबर आई थी और चुनाव टालने की मांग उठी थी। सरकार की नरसंहारक हुज्जत के चलते चुनाव नहीं टाला गया। तीसरे चरण के चुनाव तक 706 शिक्षकों की मौत हो चुकी थी। चुनाव संपन्न होने और मतगणना के बाद भी संक्रमित शिक्षकों की मौतें जारी रहीं। शिक्षक संघ का ताजा आंकड़ा है कि 1621 शिक्षक मारे गए हैं, लेकिन सरकार सिर्फ 3 मौतें बता रही है। शिक्षक संघ ने बाकायदा सभी दिवंगत अध्यापकों के डिटेल के साथ सूची जारी की है और सरकार को भी भेजी है।

आजमगढ़ जिले में सबसे ज्यादा 68 शिक्षकों-कर्मचारियों की मौत हुई है। यूपी सीएम के गृहजनपद गोरखपुर में ही 50 शिक्षक मारे गए। लखीमपुर में 55, रायबरेली में 53, जौनपुर में 43, इलाहाबाद में 46, लखनऊ में 35 शिक्षकों की मौत हुई है। ये जो लोग मरे हैं, इनके परिवार, इनके दोस्त, इनका स्टाफ, इनका विभाग इनकी हकीकत जानता है। फिर भी झूठ बोला जा रहा है।

हर तरफ झूठ है। कोरोना से बेतहाशा मौतें हो रही हैं। पूरे प्रदेश में हमीरपुर, उन्नाव, कानपुर, इलाहाबाद सब जगह गंगा के ​तट लाशों से पट गए हैं लेकिन आंकड़ों में सब कुछ चंगा है। सब चंगा है तो फर्जी आंकड़े रोज क्यों जारी कर रहे हो? जो 2 लाख 83 हजार मौतों का आंकड़ा अब तक दिया गया है, उसे भी झूठा बता दो और घोषणा कर दो कि पूरे देश में सब चंगा है। जो मर रहे हैं वे अपनी मर्जी से मर रहे हैं।

जिन लोगों को जबरन मौत के मुंह में झोंका गया और अब उनकी मौत को मानने से भी इनकार किया जा रहा है, उनकी आत्माएं तड़प रही होंगी। हमारी सरकारें इतनी घिनौनी और घृणास्पद हैं कि जिन्हें जान बूझकर मार दिया गया, उनके प्रति संवेदना जताना तो दूर, उनकी मौत को स्वीकार तक नहीं कर रही हैं। लाखों लोगों की मौत भी सत्तालोभी हैवानों को मनुष्य नहीं बना सकती। हमारे देश में अब सरकार नहीं चलती, क्रूरतापूर्ण झूठ का राष्ट्रीय रैकेट चलता है।

(लेखक पत्रकार एंव कथाकार हैं ये उनके निजी विचार हैं)