ऐतिहासिक ताज नगरी में दम तोड़ती यमुना नदी

आगराः विश्व पटल पर अपनी अलग पहचान रखने वाले शहर आगरा को सिकंदर लोदी ने 1504 बसाया था। आगरा शहर अपने साथ एक सुनहरा इतिहास संजोए हुआ हैं, जिसमे सिकंदर लोदी से लेकर मुगलों तक का एक लंबा स्वर्णिम इतिहास है। यह शहर अपने साए में तीन यूनेस्को संरक्षित स्मारको के साथ अनेकों विरासतें भी समेटे हुए हैं। जिनमें दुनिया के सातवें अजूबे में शुमार विश्वदाय स्मारक ताजमहल भी हैं।

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ताजमहल के बारे में तो सभी जानते हैं कि इसे मुगल सम्राट शाहजहां ने 1632 में बनाया। ताजमहल के अलावा भी इस शहर में अन्य कई वर्ल्ड हेरिटेज साइट्स जैसे आगरा किला व फतेहपुर सीकरी (फतह नगरी) शुमार हैं। जिन्हे अकबर द्वारा बनवाया गया था। इनके अलावा भी शहरभर में मुगलों द्वारा बनाई गई अन्य धरोहरें भी मौजूद हैं, जिन्हे ASI द्वारा संरक्षित इमारत की श्रेणी में रखा गया हैं।

अपनी अलग पहचान रखने के बावजूद आज इस शहर में यमुना नदी दम तोड़ती जा रही हैं, आगरा की कालिंदी अर्थात यमुना दूषित ही चुकी हैं। इसके अलावा इस शहर में वायु प्रदूषण भी बेतहाशा बढ़ा हैं, पिछले साल नवंबर 2021 में शहर का एयर क्वालिटी इंडेक्स 405 से भी अधिक रहा था। वायु प्रदूषण का खतरनाक स्तर पार करने के कारण शहर को रेड जोन में भी रखा जा चुका हैं। लेकिन शहर प्रशासन द्वारा कोई ठोस व्यवस्था न किए जाने के कारण स्थिति तस की जस हैं।

ताजमहल को प्रदूषण से बचाने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने बनाया था ताज ट्रेपेजियम जोन

वायु प्रदूषण एवं यमुना नदी के दूषित होने की वजह से ताजमहल पर इसका विपरीत प्रभाव पड़ रहा हैं। यमुना के दूषित होने के चलते इससे पनपने वाले कीड़ों से ताजमहल के पत्थरों में काले धब्बे पड़ते जा रहें हैं। ताजमहल की सुंदरता व इसकी हिफाज़त को मद्देनजर रखते हुए सुप्रीम सुप्रीम कोर्ट ने 30 दिसंबर 1996 आगरा समेत 10,400 स्कवायर किमी क्षेत्र को ताज ट्रेपेजियम जोन घोषित कर दिया।

टीटीजैड के चलते शहर में कोयले से संचालित उद्योग, फाउंड्री उद्योग एवं अन्य उद्योग जो प्रदूषण फैलाने की श्रेणी में आते थे या तो बंद हो गए या उन्होंने अपने उद्योगों में प्रदूषण के कारकों को कम कर दिया। सुप्रीम कोर्ट के निर्देश के बाद मथुरा रिफाइनरी की चिमनियों की ऊंचाई बढ़ा दी गई और उनकी दिशा दूसरी और कर दी गई जिससे धुआं शहर में न आ सकें।

प्रशासनिक बेरुखी के चलते दम तोड़ रही हैं यमुना

शहर में गिर रहे नालों के दूषित पानी के सीधे यमुना में जाने की वजह से यमुना नदी सर्वाधिक दूषित होती है। यमुना में तकरीबन 92 नाले सीधे तौर पर गिरते हैं, जिनमे से 62 नाले अनटैप हैं। और तकरीबन 70 नालों पर बायो-रेमेडिएशन तकनीक के जरिए शोधन किया जा रहा हैं।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने पिछले वर्ष अप्रैल में शहर में यमुना नदी में प्रदूषण की स्थिति के बारे में एक विस्तृत रिपोर्ट जारी की है, जिसमें बताया कि कैलाश घाट से प्रवेश करते हुए ताजमहल के आगे तक आगरा शहर में पहुंची यमुना नदी पिछले सालों के मुकाबले तकरीबन तीन गुना प्रदूषित हो चुकी हैं।

इस जगह यमुना का पानी कृषि हेतु सिंचाई के लायक भी नहीं रहा है, जबकि यमुना नदी में सीवर रोकने के लिए, सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट (STP) के संचालन और सीवर ट्रीटमेंट लाइन चालू करने के नाम पर पिछले साल वी.ए.टेक वबाग को आगरा नगर निगम द्वारा एक साल में 48 करोड़ रुपये का भुगतान किया गया है।

यमुना में गिर रहे नालों के दूषित पानी को सीधे यमुना में जाने से रोकने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा कैनाल बनाई गई हैं। इसके ज़रिए नालों के दूषित पानी को तालाब में ले जाकर फाइटो-रेमेडिएशन टेक्नीक से शोधित किया जा रहा हैं। इसके बाद भी अभी तक यमुना में नालों का गिरना रुक नही पाया हैं जिसके चलते नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने कई बार इसको लेकर जुर्माना भी लगाया हैं।

एनजीटी द्वारा लगाया गया जुर्माना

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने अगस्त 2015 में यमुना नदी में कूड़ा-कचरा डालने पर आगरा नगर निगम पर एक लाख रुपए का जुर्माना लगाया, साथ ही नदी में गिरने वाले एक नाले और नदी में गंदा पानी एवं सीवेज छोड़ने वाली एक पाइपलाइन को बंद करने का आदेश भी दिया था।

वहीं एक अन्य मामले में शमसाबाद रोड स्थित हाउसिंग कालोनी नालंदा टावर का सीवेज खुली जमीन पर बहाए जाने पर एनजीटी ने एक दिसंबर, 2021 को एडीए, डीएम और उप्र प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की कमेटी बनाते हुए विस्तृत रिपोर्ट मांगी थी। और साथ ही ये निर्देश भी दिए थे कि यदि बजट उपलब्ध नहीं है तो कालोनी में रहने वाले लोगों से पर्यावरण संरक्षण व आमजन के स्वास्थ्य को मद्देनजर रखते हुए धनराशि एकत्र की जाए।

सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद भी नही शिफ्ट हुआ शहर से डेयरी उद्योग

सुप्रीम कोर्ट ने दो दशक पहले शहर में संचालित डेयरी उद्योग को शहर से बाहर शिफ्ट करने का आदेश दिया था। जिसके तहत 2005 में आगरा के जिलाधिकारी ने डेयरियों को शिफ्ट करने की कार्ययोजना बनाने के लिए आगरा डेवेलपमेंट अथॉरिटी को निर्देश दिए।

एडीए ने वर्ष 2007 में करभना में 130.16 एकड़ भूमि अधिग्रहीत करने का प्रस्ताव दिया, लेकिन तत्कालीन मंडलायुक्त की आपत्ति के बाद ये प्रस्ताव ठंडे बस्ते में चला गया। काफी विचार विमर्श करने के बाद अंतिम रूप से वर्ष 2010 में फैसला हुआ कि शहर का डेयरी उद्योगलौहकरेरा, भागूपुर और उजरई में शिफ्ट होगा। इन गांवों में जमीन अधिग्रहण करने से पहले एडीए ने करीब दो साल पहले एक प्राइवेट कंपनी को डीटेल प्रोजेक्ट रिपोर्ट करनी की जिम्मेदारी सौंपी थी। लंबा वक्त गुजर जाने के बावजूद अब तक कंपनी डीपीआर को अंतिम रूप नहीं दे सकी है।

शहर में स्थापित इन तबेलो का गोबर नालों के जरिए सीधे यमुना में जा रहा हैं, और चौंकाने वाली बात ये हैं कि सरकारी अधिकारियों की लापरवाही के चलते इन तबेलों में पाली जा रही गाय-भैसों को इनके मालिक यमुना में नहाने के लिए छोड़ जाते हैं जिससे यमुना और भी ज्यादा दूषित हो रही हैं। अतः यह कहना उचित होगा की लापरवाही के चलते यमुना का स्वरूप अब एक नाले में बदल चुका हैं।