जैसे ही हिमाचल के सेब खरीदी में अडानी की भूमिका सामने आयी अचानक किसान आंदोलन को लेकर सरकारी दमनचक्र की गति तेज हो गयी, करनाल में परसो शांतिपूर्ण प्रदर्शन कर रहे किसानों के सर फोड़कर जलियांवाला बाग वाली क्रूरता का प्रदर्शन किया गया, सरकार समझ गयी कि इसे कुचलने में अधिक देर की तो अडानी अम्बानी की कृषि क्षेत्र में बढ़ती हुई हिस्सेदारी की सच्चाई को दबाया नही जा सकेगा, आपको याद होगा कि किसानों आंदोलन अपने पूरे जोर पर था ओर अडानी और अंबानी ग्रुप के उत्पादों का बहिष्कार करने का ऐलान हुआ था, तब अडानी ने बयान जारी किया था कि वह देश में किसानों से सीधे फसल नहीं खरीदता , हिमाचल में उसका यह झूठ पकड़ा गया।
हम सब जानते है कि मुकेश अंबानी और गौतम अडानी, दोनों की नजरें भारत के कृषि क्षेत्र पर हैं। 2006 में शुरु हुए रिलायंस फ्रेश के आज 620 से ज्यादा स्टोर्स हैं, जिनमें 200 मेट्रिक टन फलों और 300 मेट्रिक टन सब्जियों की रोजाना बिक्री होती है। कंपनी का खुद भी कहना है कि वह अपने 77% फल सीधे किसानों से खरीदती है। जियो प्लेटफॉर्म पर तो जियो कृषि जैसा एक ऐप तक मौजूद हैं।
अडानी पूरे देश मे खाद्यान्न भंडारण के लिए नयी तकनीक के गोदामों (सायलो) की पूरी श्रृंखला का निर्माण कर रहा है, हिमाचल की सेब खरीद की प्रक्रिया में तो उसकी कंपनी अडानी एग्री फ्रेश सीधे शामिल हैं, जहाँ उसने सेब खरीद के 10 साल पुराने रेट घोषित किये हैं। वहां के किसानों का कहना है कि अदानी के कम रेट घोषित करने से मार्केट के सेंटिमेंट्स पर असर पड़ा है और सेब के दाम तेजी से गिरे हैं।
शिमला पुहंचे किसान नेता राकेश टिकैत प्रेस कॉन्फ्रेंस में सवाल उठा रहे हैं कि अदानी ने हिमाचल प्रदेश में सेब के रेट 16 रुपये प्रति किलो कम कर दिए। वर्ष 2011 में जो सेब का रेट था, आज भी वही है। क्या देश में महंगाई नहीं बढ़ी ? क्या पेट्रोल-डीजल, उर्वरकों और कीटनाशकों की कीमतें नहीं बढ़ीं? वह आगे कहते हैं कि जब सरकार पूछती है कि नुकसान क्या है तो किसान बिल में जो कांट्रैक्ट फार्मिंग है, वह यही तो है। किसान को कमजोर किया जा रहा है, ताकि वह अपनी जमीन बेचने को मजबूर हो जाए।’
यह हम सभी जानते है किसान से औसतन 50 रुपए में खरीदा गए सेब अदानी 3-4 महीने बाद 150 से 200 रुपए में बेचेगा अगर प्रति किलो पर कोल्ड स्टोरेज का 20-25 रुपए किलो का खर्च भी मान ले तो कंपनी को दोगुना-तिगुना मुनाफा होगा, वह यदि 10- 12 रुपये दाम बढ़ा भी दे तो उसे नुकसान नही है।
गाँव कनेक्शन में सेब के दामो से कृषि कानूनों का लिंक बताते हुए प्रोग्रेसिव ग्रोवर एसोसिशएन (PGA) इंडिया के प्रेसिडेंट लोकेंद्र सिंह बिष्ट कहते हैं, “सीधे तौर पर हमारे ऊपर कोई असर नहीं है। लेकिन आप चौतरफा देंखेंगे तो असर समझ आएगा। अडानी ने 72 रुपए का रेट खोला है अगर वो 62 रुपए रखता तो हम क्या कर लेते। जब सिर्फ कॉरपोरेट होंगे तो मिनियम प्राइज नहीं होगा। संरक्षण की लागत नहीं हो होती तो वो मनमानी करेंगे ही।”
जाने माने कृषि विशेषज्ञ देविंदर शर्मा सेब के रेट घटाए जाने पर लिखते हैं, “26 अगस्त से शुरू हुए सेब विपणन सीजन के लिए अदानी एग्री फ्रेश कंपनी ने सेब के खरीद मूल्य में औसतन 16 रुपये प्रति किलो की कटौती की है। यही कारण है कि किसान केंद्रीय कानूनों का विरोध कर रहे हैं। यही कारण है कि वे एमएसपी को कानूनी अधिकार बनाने की मांग करते हैं।” साफ है कि जैसे जैसे समय बीतता जाएगा आम जनता को यह समझ में आने लगेगा कि कृषि कानूनों का विरोध करना क्यो जरूरी है।