परवेज त्यागी
लखनऊ: समाजवादी पार्टी ने गठबंधन प्रत्याशी के रुप में रालोद प्रमुख जयंत चौधरी को राज्यसभा का टिकट देकर एक तीर से कई निशाने साधने का प्रयास किया है। एक ओर सपा मुखिया अखिलेश यादव के इस निर्णय से जहां पश्चिमी यूपी के मतदाताओं खासकर जाट वोटरों के बीच गठबंधन की पैठ मजबूत होगी। वहीं, दूसरी ओर जयंत चौधरी की पार्टी रालोद के प्रति उनके सजातीय मतदाताओं के बीच विश्वास में बढोत्तरी होना भी स्वाभाविक है।
क्योंकि, अभी तक संभावना जताई जा रही थी कि सपा अगर जयंत चौधरी के उच्च सदन जाने की राह नहीं बनाती है, तो दोनों दलों के गठबंधन की आगे की राह मुशिकल हो सकती है। मगर, सपा ने वेस्ट यूपी को जंयत चौधरी के रुप में नुमाइंदगी देकर कहीं न कहीं उनके समर्थकों के विश्वास को और मजबूती प्रदान कर दी है। गठबंधन के इस कदम ने भविष्य के गठबंधन को बरकरार रहने की संभावनाओं को और मजबूत बल दे दिया है। संसद के उच्च सदन में प्रतिनिधित्व मिलने के बाद रालोद के बेस वोटर का मनोबल भी बढ़ना तय है। लंबे समय बाद उनके लिए वह घड़ी आयी है, जिसका सपना काफी समय से देख रहे थे, लेकिन पूरा नहीं हो पा रहा था। फिलहाल गठबंधन ने यह निर्णय कर दोनों दलों ने अपने समर्थकों के बीच बने तालमेल को और बेहतर करने की कवायद की है।
आठ साल बाद संसद में होगा जयंत का प्रवेश
राष्ट्रीय लोकदल के मुखिया जयंत चौधरी का राज्यसभा सदस्य चुने जाने के बाद संसद में आठ साल के बाद प्रवेश होगा। वह 2009 में मथुरा लोकसभा सीट से चुनाव जीते थे। उसके बाद 2014 का चुनाव इसी सीट पर भाजपा की हेमा मालिनी से हार गए थे। 2019 में जयंत ने मथुरा के बजाए अपने परिवार की परमपरागत सीट बागपत से लड़ा था, लेकिन इस सीट पर उनको जीत नहीं मिली पायी और भाजपा के सत्यपाल सिंह ने उन्हें नजदीकी मुकाबले में पराजित कर दिया था। अब राज्यसभा के लिए निर्वाचित होने पर आठ साल बाद उनका संसद जाने का रास्ता साफ होगा। राज्यसभा में जयंत चौधरी रालोद के दूसरे सदस्य होंगे। इससे पूर्व सपा गठबंधन में ही रालोद से पहले राज्यसभा की सीढियां मुस्लिम धर्म गुरु मौलाना महमूद मदनी ने चढ़ी थी।