सोमेश झा की इस विस्तृत रिपोर्ट को सबसे पहले भाजपा के कार्यकर्ताओं और नेताओं को पढ़ना चाहिए। इसके बाद दूसरे राजनीतिक दलों के नेताओं और कार्यकर्ताओं को पढ़ना चाहिए, फिर पत्रकारिता से जुड़े लोगों को। पाठकों के ऊपर कोई दबाव नहीं है कि वे एक वित्त मंत्री को जानने के लिए 26 पेज का लेख पढ़ें हीं।सोमेश झा ने बताया है कि निर्मला सीतरमण किस तरह से राजनीति में अपने लिए अवसरों की खोज करती हैं और उन अवसरो के अनुसार ख़ुद को ढालती हैं, एक लंबा अर्सा इस साधना और सफ़र में व्यतीत करने के बाद एक ऐसे मंच से जुड़ती हैं, जहां से संघ और बीजेपी की नेताओं की नज़र पड़ने लग जाती है और निर्मला अपनी नज़र से उनके ज़रिए आने वाले अवसरों को साध लेती हैं।
इसके बाद सोमेश दिखा रहे हैं कि किस तरह से निर्मला बीजेपी की राजनीति में एक-एक सीढ़ी चढ़ती हैं। इस क्रम में पुराने नेतृत्व के टूटते तिलिस्म और नए नेतृत्व के बनते तिलिस्म को साध लेती हैं। यही ख़ूबी उन्हें पार्टी से लेकर सरकार में जगह दिला देती है। इन सबके बीच आप उन्हें प्रवक्ता, रक्षा मंत्री और वित्त मंत्री के रूप में देखते हैं, जहां वे तमाम मुद्दों को अपनी कलाबाज़ी से ग़ायब कर देती हैं। मोदी का बचाव खुलकर करती हैं। किसी सवाल का सीधा जवाब नहीं देती हैं। मोदी सरकार की अर्थव्यवस्था की तमाम नाकामियों पर पर्दा डाल कर बात को कहीं और ले जाती हैं और एक ऐसा जवाब गढ़ देती हैं जो नारा तो बन जाता है मगर उसमें जवाब नहीं होता है।
वित्त मंत्री के रूप में निर्मला का दौर वित्त मंत्रालय पर पकड़ बनाने के संघर्ष का भी दिखाई देता है लेकिन इस कारण देश की अर्थव्यवस्था उनके हाथ से फिसलती हुई दिख रही है।यह भी दिखता है कि वित्त मंत्रालय के बड़े फ़ैसले कहां से हो रहे हैं और किस तरह से हो रहे हैं। सोमेश याद दिलाते हैं कि फरवरी 2020 की तिमाही में भारत की जीडीपी 3.7 प्रतिशत थी। 11 वर्षों में इतनी ख़राब गिरावट भारतीय अर्थव्यवस्था ने देखी थी। उसके बाद महामारी का दौर आता है। 20 लाख करोड़ के पैकेज की सजावट के बाद भी सच्चाई यह थी कि महामारी के दौरान भारत उन कई देशों के बीच नज़र आता है जिन्होंने जीडीपी का बहुत कम हिस्सा राहत पैकेज पर ख़र्च किया था। जहां जीडीपी का ग्लोबल औसत 1.2 प्रतिशत था, भारत अपनी जीडीपी का 0.35 प्रतिशत ख़र्च कर रहा था। सोमेश झा की इस रिपोर्ट को कारवां ने कवर स्टोरी बनाई है और निर्मला के बारे में लिखा है कि वे मोदी की टूटी-बिखरी अर्थव्यवस्था की स्पिन डॉक्टर हैं। मतलब सवालों और बातों को घुमा-फिरा कर कहीं और पहुंचा देने की कला में माहिर नेता।
सोमेश झा ने इसके लिए निर्मला के निजी जीवन से लेकर मंत्री के तौर पर उनके तमाम बयानों को पलट कर देखा है। जिन बातों को नेता अपने जीवन में छोड़ता हुआ आगे बढ़ जाता है, सोमेश लौट कर उन्हें फिर से उठाते हैं और अपने लेख में इस तरह से रखते हैं कि वित्त मंत्री को देखने का नज़रिए बदल जाता है या फिर आप जिस वित्त मंत्री को रोज़ देखते-देखते मान लेते हैं कि उनके बारे में सब कुछ जानने लगे हैं, इस लेख के बाद पता चलता है कि आप कितना कम जानते थे और कितना कुछ जानने लगे हैं।
सोमेश झा के इस लेख पर चर्चा नहीं हुई, क्योंकि इसके लिए मेहनत करनी पड़ेगी। विपक्ष के नेता भी डंडी मारने लगे हैं। मीडिया तो इसमें माहिर हो ही गया है। टेक्नालजी ने आप पाठकों का धैर्य बदल दिया है। लेकिन एक बार इस लेख को पढ़ कर देखिए, ख़ुद को समृद्ध महसूस करेंगे।