विनय कुमार नायक (चिल्लूपार, गोरखपुर)
लालकिला जो भारत के ऐतिहासिक धरोहरो में से एक है। यह शाहजहाँ द्वारा सन 1638 ई०-1648 ई० में यमुना नदी के किनारे वास्तुविद उस्ताद अहमद लाहौरी द्वारा नक्काशित कर बनवाया गया था। लाल किला संयुक्त राष्ट्र शैक्षणिक,वैज्ञानिक एवं सांस्कृतिक संगठन (UNESCO) द्वारा 2007 में विश्व ऐतिहासिक धरोहर की सूची में शामिल किया गया है। 1658 ई० में मुगल राजधानी जब आगरा से दिल्ली बनायी गयी उसके बाद लाल किला भारत की सत्ता का प्रतीक केंद्र बन गया। भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान मुख्य तीन ऐतिहासिक घटनाएं लाल किले से सम्बंधित हुई थी।
प्रथम घटना 1857 ई० में भारत का प्रथम स्वन्त्रता संग्राम जब प्रारंभ हुआ था तब मेरठ के विद्रोही सैनिकों ने सत्ता के केंद्र इसी लाल किले पर 21 तोपो की सलामी देकर ब्रिटिश सत्ता से भारत को आज़ाद घोषित कर पुनः बहादुर शाह जफर को भारत का शासक घोषित किया गया था,लेकिन यह आज़ादी कुछ ही देर तक रह पायी थी।
द्वितीय घटना गांधी जी ने भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया उसके तुरन्त बाद नेताजी ने रंगून से आजाद हिंद फौज को “दिल्ली चलो” का नारा दिया था एवं बलिदानी बहादुर शाह जफर की कब्र की मिट्टी को हाथ मे लेकर लाल किले पर तिरंगा फहराने एवं उस मिट्टी को लाल किले पर अर्पित करने का प्रण किया था। उसके उपरांत आगे बढ़कर 30 दिसम्बर 1943 को नेताजी ने अंडमान द्वीप का नाम शहीद द्वीप एवं निकोबार का नाम स्वराज द्वीप रखकर सर्वप्रथम पोर्टब्लेयर में तिरंगा फहराकर भारत की आजादी का एलान किया था।
तृतीय घटना 1945 ई० में जब द्वितीय विश्व युद्ध समाप्त हुआ औऱ मित्र राष्ट्रों के सामने जापान ने आत्म समर्पण कर दिया उसके बाद आज़ाद हिंद फौज के गुल बक्श सिह ढिल्लो,प० प्रेम कुमार सहगल एवं शाहनवाज खान नेताजी के इन तीनो कमांडरों सहित हजारों सैनिकों को पकड़ लिया गया और उनका ज्यूडिशियल ट्रायल इसी ऐतिहासिक लाल किले पर किया गया था जिसमे आज़ाद हिंद फौज के सिपाहियों के पक्ष में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस द्वारा कांग्रेस डिफेंस टीम बनाई गई जिसने आजाद हिंद फौज का पक्ष रखा। इस डिफेंस टीम में भूलाभाई देसाई के नेतृत्व मे प० जवाहर लाल नेहरू एवं तेज बहादुर सप्रू जी आदि शामिल थे।
भारत 15 अगस्त 1947 को आज़ाद हो गया था 15 अगस्त को अन्य प्रशासन के कार्य करने में फंसे होने के कारण पण्डित जवाहर लाल नेहरु ने झंडा रोहण कार्य स्थगित कर दूसरे दिन किया था। 16 अगस्त 1947 को अपने इस एकलौते वैचारिक समानता के साथी नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के वादे को निभाया एवं उनका लाल किले पर झण्डा फहराने का प्रण नेताजी के प्रिय कमांडर मेजर जनरल शाहनवाज खान के द्वारा पूर्ण करवाया था। मेजर शाहनवाज खान ने ही लाल किले से यूनियन जैक उतारकर भारत का तिरंगा लाल किले आजाद हिंद फौज के हजारों सैनिकों की उपस्थिति में लगाया था, उसके बाद आधिकारिक रूप से तिरंगा झंडा लाल किले पर आधिकारिक रूप से सुभाष चंद बोस एवं आजाद हिंद फौज की याद में भारत के प्रथम प्रधानमंत्री प० जवाहरलाल नेहरू ने फहराया और अपना भाषण उनके इसी सपने को पूरा करने पर गर्व अनुभूति को उल्लेख करते हुए किया था।
उसके बाद प्रत्येक वर्ष लाल किले पर झंडा फहराने की प्रथा बन गयी। प्रथम तीन प्रधानमंत्री यानी प० नेहरू, इंदिरा गांधी एवं लाल बहादुर शास्त्री जी ने अपने हर वर्ष के उद्बोधन में नेताजी एवं आजाद हिंद फौज के इस लाल किले से उनके सम्बंध को हमेशा याद किया है। लेकिन उसके उपरांत दुर्भाग्य है किसी प्रधानमंत्री ने इस पम्परा की उत्पत्ति पर एक शब्द नही बोला है। यहां तक कि एक फर्जी डिग्री इतिहास फेल प्रधानमंत्री ने आज यहां तक कह डाला लाल किले से ही कि नेताजी एवं आजाद हिंद फौज को भुला दिया गया,लगता है उन्हें शायद गोड्से गिरोह के साथी शोधार्थियों ने यह नही बताया कि जिस लाल किले से यह अनर्गल वक्तव्य दे रहे है वह वक्तव्य देने और झंडा फ़हराने की प्रथा ही नेताजी और आजाद हिंद फौज के कारण है। यह आज अपने आप को नेताजी के सबसे बड़ा भक्त दिखाने की कोशिस करते है लेकिन नेताजी कभी अंग्रेजो के दुहराहो व मुखविरो के वैचारिक पूर्वज नही हो सकते है, वह केवल कांग्रेसियो, समाजवादियों एवं स्वतंत्र भारतीय नागरिकों के वैचारिक पूर्वज एवं राष्ट्र धरोहर है।