राना अय्यूब के समर्थन में अमेरिकी अख़बार ने क्यों प्रकाशित किया पूरा एक पन्ना

संयज कुमार सिंह

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वाशिंगटन पोस्ट ने राणा अयूब के समर्थन में एक पूरे पन्ने का बयान प्रकाशित किया है। राणा अयूब का मामला साधारण नहीं है। भारतीय मीडिया में उसकी चर्चा वैसे नहीं हुई जैसी होनी चाहिए थी। इसीलिए वाशिंगटन पोस्ट ने एक पूरे पन्ने पर राणा अयूब के समर्थन में बयान प्रकाशित किया। सरकार ने देश में लोकोपकार का जो हाल बना दिया है और सरकारी पैसे से मुफ्त राशन बांटने को लोग सत्तारूढ़ पार्टी के प्रधान प्रचारक, “मोदी जी का नमक” समझ रहे हैं तथा  प्रधानमंत्री स्वयं सगर्व उसका प्रचार कर रहे हैं तो यह मामला उतना ही नहीं है जितना दिख रहा है।

पीएम केयर्स अपनी जगह है जो कॉरपोरेट के सीएसआर के काफी पैसे ‘हजम’ कर चुका है। उसके पैसे से खरीदे गए वेंटीलेटर खराब निकले और फिर क्या हुआ कोई नहीं जानता। बाकी पैसे क्यों बचे हुए हैं उसपर कोई सवाल नहीं है। लेकिन राणा अयूब से है। ऐसे में लोकोपकार होगा कैसे? और फिर भी किया जाए तो सरकार और सरकारी कानून उसे परेशान करे क्योंकि लोकोपकार करने वाला सरकार विरोधी है तो सरकार का विरोध भी कैसे होगा। और ऐसी सरकार क्यों नहीं तानाशाही की ओर बढ़ेगी। इसलिए, मामला हिन्दुत्व का कम, तानाशाही का ज्यादा है पर बात समझ में आए तब ना। और गोदी मीडिया जब इसकी जरूरत ही नहीं समझे तो यह काम भारी मुश्किल है।

इस खबर को द टेलीग्राफ ने जितनी प्रमुखता दी है उतनी दूसरे अखबारों को क्यों नहीं देना चाहिए? इसमें सरकार का पक्ष भी है। दूसरे अखबार ऐसा क्यों नहीं करते? इस संबंध में जो हो रहा है उसकी जानकारी नहीं देने वाले अपने अखबार से आप सरकारी प्रचार और विज्ञापन के अलावा कैसी खबरों की उम्मीद करते हैं?

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)