विश्वदीपक
साल 2006 का बसंत पार हो चुका था। जंतर-मतर के पीछे, पार्क होटल की ओर जाने वाली सड़क का कोलतार पिघलने लगा था। नर्मदा बचाओ आंदोलन अपने शबाब पर था। मेधा पाटकर के साथ मैं भी काम कर रहा था। मोना दास, अवधेश वगैरह सक्रिय थे। वैसे तो कई काम थे लेकिन दो प्रमुख थे। मेधा, विट्ठल भाई हाउस में सुबह चार-पांच बजे नहाने के लिए जाती थीं। मेरी ड्यूटी थी उनका खादी का झोला लादकरपहुंचाना। अमेरिका से आई दीप्ति उनकी मुख्य सहयोगी थी। वह भी सुबह-सुबह उठ जाती थी। हम तीनों साथ जाया करते थे।
रास्ते में, मैं मेधा के साथ बातचीत रिकॉर्ड करता था। दिनभर वक्त नहीं मिलता था। बाद में रात को बैठकर ट्रांसक्राइब करता था। अब रिकॉर्डर गायब हो गया लेकिन नोट्स आज भी हैं। ऐसे ही गिरफ्तारी की सुबह लिया गया मेधा का इंटरव्यू ओम थानवीजी ने “जनसत्ता” के पहले पेज पर छापा था। दूसरा काम काम था प्रेस रिलीज तैयार करना/करवाना, फोटे कॉपी कराना और फिर आईएनए बिल्डिंग में मौजूद सभी राष्ट्रीय और क्षेत्रीय अखबरों के दफ्तरों में चार बजे तक रिलीज पहुंचाना। कनाट प्लेस वाले गुरुद्वारे में लंगर खाता था। वहीं जंतर-मंतर पर सोया करता था।
एक दिन अचानक हड़बड़ी मच गई। सुना आमिर खान आ रहा है मेधा पाटकर से मिलने। वह नर्मदा बचाओ आंदोलन से बहुत प्रभावित था, इस देश के विस्थापित आदिवासियों और किसानों के दर्द-संघर्ष से उसका दिल डूब रहा था। इसलिए वह आंदोलनकारों से मिलकर अपना समर्थन देना चाहता है, उनका हौसला बढ़ाना चाहता है आदि। आमिर खान मेधा से मिला या नहीं, याद नहीं आ रहा लेकिन मीडिया, जनता और विस्थापन के पीड़ितों का पूरा फोकस सरदार सरोवर और विस्थापन की त्रासदी से हटकर आमिर खान कि ओर मुड गया। बाद में पता चला कि वह पूर तमाशा आमिर खान की किसी आने वाली फिल्म की पब्लिसिटी स्टंट का हिस्सा था।
उस घटना के बाद से लेकर आज तक आमिर खान विस्थापन, नर्मदा बचाओ आंदोलन या फिर मेधा के बारे में कुछ बोला हो या किया हो याद नहीं। (कुछ साल बाद) आजतक में था। अजय देवगन किसी फिल्म के प्रमोशन के सिलसिले में आए थे। तब आजतक का दफ्तर झंडेवालन में हुआ करता था। अजय देवगन अपने स्टाफ से ज्यादातर अंग्रेजी या हिंग्लिश में बात कर रहे थे। पिछले कुछ दिन से देख रहा हूं कि वह अचानक से हिंदी का झंडाबरदार बन गए हैं। चूंकि बॉलीवुड फॉलो नहीं करता इसलिए जानकारी नहीं थी। आज पता चला कि अजय देवगन की फिल्म “रनवे 34” आ रही है या शायद आ चुकी है।
यहां से देखिए। स्पष्ट हो जाएगा कि अजय देवगन का हिंदी प्रेम विशुद्ध पब्लिसिटी स्टंट था और कुछ नहीं। एक बड़ा कारण और है। इधर बीच पुष्पा, केजीएफ जैसी फिल्मों ने कमाई के सारे रिकॉर्ड तोड़ दिए हैं। हिंदी बेल्ट में दक्षिण की फिल्मों का क्रेज़ बढ़ रहा है। अब दक्षिण की फिल्में आसानी से हिंदी में डब हो रही हैं। पाकिस्तान को विलेन बनाकर पीटने का फॉर्मूला फ्लॉप हो चुका है।
ऐसे में अजय देवगन जैसा मीडियॉकर एक्टर क्या करेगा? वह कभी हिंदी का तो कभी हिंदुस्तान का तो कभी राष्ट्रवाद की डफली पीटेगा लेकिन असली वजह है उसका बाज़ार खोने का डर। अगर आपको अभी भी लगता है कि बॉलीवुड का कोई हीरो, हीरोइन खासतौर से अजय देवगन के लेवक का कोई काम अपनी प्रतिबद्धता के चलते करता हैतो फिर आपको अपने बारे में दोबारा सोचना चाहिए। बताता चलूं कि फिल्मवालों की पीआर टीम होती है जिसको विवाद पैदा करने के लिए ही लाखों-करोंड़ों दिए जाते हैं।
(लेखक पत्रकार हैं, यह लेख उनके फेसबुक पेज से लिया गया है)