लोकसभा स्पीकर ओम बिरला की बेटी अंजली बिरला इन दिनों चर्चा का केंद्र बनी हुई हैं। अंजली उन 89 उम्मीदवारों में शामिल है जिन्होंने छः जनवरी को आए संघ लोकसेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा में सफला पाई है। अंजली ने यह परीक्षा पहले ही प्रयास में उत्तीर्ण की है। बीते वर्ष चार अगस्त को आए यूपीएससी 2019 के परिणाम में 829 उम्मीदवारों का चयन हुआ था, इनमें 45 उम्मीदवार मुस्लिम समुदाय से थे। यूपीएससी ने 89 पदों का परिणाम रोक लिया था जिसे छः जनवरी को जारी किया गया है। इन परिणामों में लोकसभा स्पीकर ओम बिरला की बेटी अंजली बिरला ने भी सफलता हासिल की है। साहित्यकार सुभाष चंद्र कुश्वाहा इन परिणामों पर सवाल उठा रहे हैं। उनका कहना है कि चार अगस्त को जब रिजल्ट निकला था तब 89 पद क्यों रोक लिए गए थे? अब जब देश में सीधे बिना परीक्षा या योग्यता के कुछ लोग आईएएस बन रहे हों तब 89 पदों के चयन को क्या माने? यह वेटिंग लिस्ट है क्या? अगर है तो 89 में से 73 केवल सामान्य श्रेणी में जाने के कारण और केवल एक पद एस.सी को देने पर सवाल यही उठता है कि यह चयन मात्र इंटरव्यू के आधार पर है। सभी चयनित लोगों का चयन तभी क्यों नहीं हुआ?
दरअस्ल अंजली बिरला के चयन पर जब सुभाष चंद्र कुश्वाहा ने सवाल उठाए तो कुछ लोगों ने अंजली मार्कशीट सोशल मीडिया पर लगाई। इस पर सुभाष चंद्र कुश्वाहा का कहना है कि जो लोग लिखित परीक्षा की मार्कशीट लगा रहे हैं या बिड़ला को अति मेधावी बता रहे हैं, उनसे इतना ही कहना है कि अति मेधावी का चार अगस्त की सूची में स्थान क्यों नहीं था? यह बात पुनः लोकसेवा आयोग की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाती है। तमाम ओबीसी के छात्र सामान्य से ज्यादा नम्बर लेकर सामान्य में नहीं जा पा रहे या चयनित नहीं हो रहे तब तो मार्कशीट नहीं डालते आप? अचेतन नहीं, सचेतन जातिवादी मानसिकता कार्य कर रही है आपकी। क्या अब लोक सेवा आयोग दो बार, तीन बार रोक-रोक कर आईएएस बनाएगा? जब राजनैतिक लोगों के सम्बन्धी सीधे प्रशासनिक पद पर आ रहे हों तो 89 लोगों का चयन सीधे इंटरव्यू के द्वारा न माना जायेगा तो क्या मेरिट के आधार पर माना जायेगा?
सुभाष चंद्र कुश्वाहा ने इतना कहकर अपनी बात पूरी कर दी, लेकिन बात तो और आगे जानी चाहिए, चार अगस्त 2020 को यूपीएससी ने 829 उम्मीदवारो के नतीजे घोषित किये इसमें मुस्लिम उम्मीदवारों को संख्या 45 थी। अब छः जनवरी को जो 89 उम्मीदवारो के नतीजे घोषित किए हैं उनमें सिर्फ तीन ही मुस्लिम हैं। जिसमें एस मोहम्मद याक़ूब ने तीसरी, मोहम्मद शाहरुख हुसैन ने 23 वीं और मोहम्मद मंज़र हुसैन अंजुम ने 76 वीं रैंक हासिल की है। मुस्लिम उम्मीदवारों का चयन का यह प्रतिशत तो बहुत निराशजनक है, 89 में सिर्फ तीन मुस्लिम ही ऐसे थे जो इस परीक्षा को उत्तीर्ण कर पाए, जबकि बीते वर्ष अगस्त में आए नतीजों में तो यह प्रदर्शन ठीक ठाक ही रहा था।
इसमे कोई दो राय नहीं कि एनडीए सरकार में एक कर तमाम संस्थाओं की निष्पक्षता पर सवाल उठे हैं। क्या यूपीएससी की भी उसी श्रेणी में आता जा रहा है? यहां बताना भी जरूरी है कि यूपीएससी में मुस्लिम उम्मीदवारों के चयन पर आरएसएस के एक चैनल ने इसे ‘यूपीएससी जिहाद’ बताकर प्रचारित, प्रसारित किया था। अब 89 उम्मीदवारों में मात्र तीन मुस्लिम उम्मीदवार देखकर शायद उसे लगे कि ‘यूपीएससी जिहाद’ का ‘ख़तरा’ टल गया है, लेकिन असल ख़तरा तो मुंह बाए खड़ा है, देश में सबसे अधिक आबादी ओबीसी कैटागिरी के लोगों की है। अगर उसे यूपीएससी से निराशा हाथ लगी तो यूपीएससी के बेदाग़ चरित्र पर ‘दाग़’ भी लग सकता है।