राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) की आरएएस संयुक्त परीक्षा का 13 जुलाई की रात को परिणाम घोषित कर दिया गया। परिणाम घोषित होने के बाद यहां हुए इंटरव्यू पर जबरदस्त सवाल उठे, जो आज भी उठ रहे हैं। इस परीक्षा में शिक्षा मंत्री और पीसीसी अध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा के रिश्तेदारों को अधिक नंबर इंटरव्यू में देकर चयन करने पर भी सवाल उठे। हालांकि डोटासरा ने और स्वयं आरपीएससी चेयरमैन भूपेंद्र सिंह यादव ने इस मामले में सफाई दी और आरएएस इंटरव्यू में हुए घोटाले और हेराफेरी से पूरी तरह इन्कार किया।
देशभर के मीडिया और सोशल मीडिया में इस भर्ती व इन्टरव्यू पर सवाल उठाए गए और यहां हुए इंटरव्यू पर घोटाले और हेराफेरी का आरोप लगा। यह आरोप इस बात से भी मजबूत होते हैं कि आरएएस इंटरव्यू को लेकर एसीबी की छापेमारी हुई और कुछ गिरफ्तारियां भी हुई, लेकिन इतना होने के बावजूद मुख्यमंत्री अशोक गहलोत और पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे ने अपना मुंह इस संदर्भ में नहीं खोला, जबकि उनकी यह जिम्मेदारी बनती थी। सरकार के मुखिया होने के नाते अशोक गहलोत को सबसे पहले बयान जारी करना चाहिए था और पूर्व मुख्यमंत्री एवं विपक्ष की बड़ी नेता के तौर पर वसुंधरा राजे को भी इस हेराफेरी की जांच करवाने की मांग करनी चाहिए थी, लेकिन करीब 4 हफ्ते बाद भी दोनों खामोश हैं और दोनों की खामोशी पर सवाल खड़े हो रहे हैं।
इस मुद्दे पर भारतीय जनता पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनियां ने भी उस बेबाकी से सवाल नहीं उठाया, जिस तरह विपक्ष के नेता के तौर पर उन्हें उठाने चाहिए थे, हालांकि भाजपा के कुछ बड़े नेताओं और अग्रिम संगठनों ने इस मुद्दे पर सरकार और आरपीएससी को पूरी तरह से कटघरे में खड़ा किया। विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष गुलाबचंद कटारिया ने बड़ी बेबाकी से इंटरव्यू पर सवाल उठाया, लेकिन सत्ता और विपक्ष ने कटारिया को गंभीरता से नहीं लिया।
इस इंटरव्यू में घोटाला और हेराफेरी हुई है, इस बात की चर्चाएं इस परीक्षा से जुड़े हुए लोगों और सियासी गलियारों में जमकर हो रही हैं। लोग यहां तक कह रहे हैं कि ऐसी हेराफेरी आरएएस इंटरव्यू में पहले शायद ही कभी हुई हो। आरोप तो यहां तक लगाए जा रहे हैं कि इस घोटाले और हेराफेरी में सत्ता और विपक्ष दोनों ने मिलकर बहती गंगा में हाथ धोए हैं, यानी अपने रसूख और तिकड़म से सत्ता पक्ष ने भी अपने चहेतों को इंटरव्यू में ज्यादा नंबर दिलवाए हैं और विपक्ष के लोगों ने भी अपना उल्लू सीधा किया है। चर्चा तो यहां तक है कि अशोक गहलोत की सरकार को गत वर्ष गिरते-गिरते वसुंधरा राजे ने बचाया था और उसके बाद गहलोत सरकार में वसुंधरा राजे और उनके चहेतों का हर काम प्राथमिकता से किया जाता है। इसलिए वसुंधरा राजे इस इंटरव्यू प्रकरण पर खामोश हैं।
एक आरोप यह भी लगाया जा रहा है के आरएएस इंटरव्यू में आरपीएससी सदस्यों ने अपनी-अपनी टेरिटरी बांट ली थी तथा पूरी पुलिस नौकरी ईमानदारी से करने वाले पूर्व डीजीपी भूपेंद्र सिंह यादव चेयरमैन की कुर्सी पर बैठे-बैठे सब कुछ बेबसी से देखते रहे और चाहकर के भी ना इंटरव्यू रोक पाए और ना ही इंटरव्यू में हो रही गड़बड़ी व परीक्षा परिणाम को रोक पाए। एक आरोप यह भी लग रहा है कि एक जाति विशेष के सबसे ज्यादा सिलेक्शन हुए हैं और यह सिलेक्शन इंटरव्यू में घोटाला और हेराफेरी करके हुए हैं तथा राजनीतिक दबाव और वोटों के समीकरण के चलते विपक्ष का कोई भी बड़ा नेता इस इंटरव्यू को रद्द कर दोबारा करने की मांग नहीं कर रहा है और ना ही सरकार और सत्ता पक्ष इस घोटाले में हेराफेरी की जांच करवाना चाहता है।
इस बीच सबसे बड़ा सवाल चेयरमैन भूपेंद्र सिंह यादव की ईमानदारी पर लग रहा है, जिन्होंने पुलिस की नौकरी बड़ी ईमानदारी से की, किसी के आगे कभी झुके नहीं और ना ही किसी के दबाव में कभी कोई गलत काम किया। लेकिन दूसरा सच यह भी है कि बरसों से वे गहलोत के वफादार रहे हैं। इस वफादारी के लिए गहलोत ने पहले उन्हें डीजीपी जैसे ऊंचे पद पर बैठाया और फिर यहाँ से रिटायर्ड होने के बाद आरपीएससी का चेयरमैन बनाया। लेकिन पुलिस में अपनी ईमानदारी का डंका बजाने वाले भूपेन्द्र सिंह यादव अब आरपीएससी में अपनी ईमानदारी का डंका नहीं बजा पा रहे हैं। आखिर आरपीएससी में उनकी क्या मजबूरी है ? क्या यहाँ हुए इन्टरव्यू घोटाले व हेराफेरी के आगे वे हार मानकर बेबस हो चुके हैं ?
इस पूरे प्रकरण में दूध का दूध और पानी का पानी तब हो, जब इसकी उच्च स्तरीय (सीबीआई जैसी एजेंसी से) जांच हो। लेकिन यह जांच कैसे हो, जब राज्य सरकार के मुखिया (गहलोत) ने ही अपना मुंह बन्द कर रखा है और विपक्ष भी सिर्फ नाम का विरोध करके खामोश हो गया है।