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अब्दुल मजीद और प्यारेलाल के इस पांच दशक के सौहार्द पर वह गिद्धनजर किसकी है?

कृष्णकांत

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1984 में कोई और था। 1992 में कोई और था। 2002 और 2020 में कोई और है। लेकिन सीलमपुर के अब्दुल मजीद और प्यारेलाल- ये दो बुजुर्ग वही हैं। वे मिलकर 1984 में भी निपटे थे, 2002 में निपट रहे थे, आज भी निपट रहे हैं। उनके पास बताने के लिए यही है कि हम 50 साल से यहां रह रहे हैं। हमने कभी आपस मे झगड़ा नहीं किया। जब भी कोई हमें लड़ाने आया हमने मिलकर उसे भगा दिया।

अब्दुल मजीद कह रहे हैं कि 50 साल में हमने बहुत दंगे देखे, लेकिन हमारे ब्लॉक में कभी हमने दंगा फसाद नहीं होने दिया। उस दिन लफंगे हल्ला मचाते हुए आये। गलत बातें फैला रहे थे। एक को पकड़ा और पुलिस को दे दिया। हमने कहा है कि बाहरी कोई आये, उसे भगा देना है।

प्यारेलाल की जुबानी सुनें तो वे यहां तब आये थे तब यहां मर्द बराबर गड्ढे थे, यहां मरघट था। श्मशान को उन्होंने बस्ती बनते देखा है और सियासत को बस्तियों को मरघट में तब्दील करते देखा है। वे हर बार अपने लोगों को बचा लेते हैं।

दिल्ली की करोड़ों की जनता के बीच दंगाई मुट्ठी भर हैं, मजीद और प्यारेलाल जैसे अनगिनत लोग हैं। जैसे उस बुजुर्ग को देखिए जिसका नाम नहीं पता है। भजनपुरा से करावल नगर जाने वाली सड़क पर श्मशान सा सन्नाटा है। इस सन्नाटे में दहशत है, खौफ है, अविश्वास है और इसी सन्नाटे में लोगों की उम्मीदें भी हैं। सड़क के किनारे एक मंदिर है। मंदिर की चौखट पर टोपी-कुर्ता पहने एक मुस्लिम बुजुर्ग बैठा मंदिर की रखवाली कर रहा है। पास में एक हिंदू की दुकान है। एक और जनाब अब्दुल करीम बता रहे हैं कि हिंदू भाई की दुकान हम लोगों ने बचा ली है।

खजूरी खास के बैंककर्मी संदीप दो दिन से दफ्तर नहीं जा सके हैं, लेकिन दंगे में फंसे दो छोटे बच्चों को उनके अम्मी-अब्बू के साथ सुरक्षित घर छोड़ आये हैं। उस मकान मालिक की तरफ देखिए जो अपना घर बेच चुका था, लेकिन खरीददार परिवार फंस गया तो वह उन्हें बचाने लौट आया।

चैनल की आंख से दुनिया मत देखिए। असल दुनिया मे अब भी वही मनुष्यता है। हजारों लोगों ने कुछ सौ जानवरों से लोहा लिया है। अब भी मुसलमान मंदिर की रखवाली कर रहे हैं, हिंदू मस्जिद की रखवाली कर रहे हैं ताकि जिंदा बचे लोगों में उम्मीद जीवित रहे।

हर मोहल्ले से एक ही आवाज सुनाई दे रही है कि हमें अमन चाहिए। हमें मजहब में मत बांटो। ये वे लोग हैं जिन्होंने एक दूसरे की जान बचाई है। वे आगे भी एक दूसरे को बचाना चाहते हैं। लेकिन मीडिया और नेता यह सुनने को तैयार नहीं हैं। वे हमें बारूद के ढेर पर धकेल रहे हैं।

चैनलिया दुनिया असली दुनिया नहीं है। वह पैसे और ताकत से रची गई फर्जी दुनिया है। यह मीडिया की आंख से दिखने वाली दुनिया है जहां आपको प्रतीकों में जीना सिखाया जा रहा है। कोई कह रहा है कि मिश्रा और वर्मा पर फोकस करो, कोई कह रहा है पठान और हुसैन पर फोकस करो। जनता आपस में एक-दूसरे के गले लगकर रो रही है। कोई सभ्यता का शैतान ऐसा भी है जिसे मनुष्य का आपसी स्नेह और सौहार्द बुरा लगता है।

मजीद और प्यारेलाल के इस 5 दशक के सौहार्द पर वह गिद्धनजर किसकी है? ऐसे लाखों लोगों ने गिद्धों से गवर्न होने से इनकार कर दिया है।

भारत की जनता को बता दीजिए कि वह इस देश की मालिक है। उसे अपनी गरिमा दो कौड़ी के निकृष्ट और फिरकापरस्त नेता के हाथों नीलाम नहीं करनी चाहिए। मजीद और प्यारेलाल इसकी नजीर हैं।