राजस्थान प्रशासनिक सेवा (RAS) में मुसलमानों के कम सिलेक्शन का जिम्मेदार कौन?

एम फारूक़ ख़ान

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राजस्थान प्रशासनिक सेवा (आरएएस) संयुक्त प्रतियोगी परीक्षा 2018 का 13 जुलाई की रात को आरपीएससी ने परिणाम घोषित कर दिया। इसमें 1051 अभ्यर्थियों का सिलेक्शन किया गया। यानी राजस्थान प्रशासनिक सेवा में 1051 नए अधिकारियों का चयन किया गया, चार अभ्यर्थियों का परिणाम कोर्ट के आदेश पर रोका गया है। खबर है कि इस सूची में सिर्फ नौ मुस्लिम अभ्यर्थियों का चयन हुआ है। जिस पर मुस्लिम बुद्धिजीवियों और रिटायर्ड व कार्यरत मुस्लिम अधिकारियों ने सोशल मीडिया व आपसी बातचीत में बड़ा अफसोस जताया है कि मुस्लिम समुदाय के अभ्यर्थियों का चयन बहुत कम हुआ है, क्योंकि युवक-युवतियां प्रतियोगी परीक्षा में गंभीरता से तैयारी नहीं करते हैं तथा सोशल मीडिया पर अपना समय और प्रतिभा को बरबाद करते हैं।

इन बुद्धिजीवियों ने आपसी चर्चा में या वाट्सएप ग्रुप में विभिन्न प्रकार से अपनी राय या सलाह दी है कि प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी और अभ्यर्थियों को गाइडलाइन देने के लिए कुछ विशेष कदम उठाए जाएं, जिसमें हॉस्टल फैसिलिटी, कोचिंग फैसिलिटी और प्रॉपर गाइडलाइन के साथ ही केंद्रीय व्यवस्था स्थापित हो, जो विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं की जानकारी और उनसे संबंधित कोचिंग व हॉस्टल की जानकारी युवक-युवतियों तक पहुंचाएं। जिससे मुस्लिम युवक-युवतियों का प्रतियोगी परीक्षाओं में अधिक से अधिक चयन हो तथा वे देश व समाज के विकास में अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकें।

नौजवान पीढ़ी में गाइडलाइन का अभाव

इन बातों को आप प्रवचन देना कह सकते हैं, ज्ञान बघारना कह सकते हैं, लेकिन यह प्रवचन व ज्ञान देना आवश्यक है। क्योंकि जब तक नौजवान पीढ़ी को प्रॉपर गाइडलाइन व जानकारी नहीं मिलेगी, तो वह बड़ी संख्या में प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल नहीं होगी। उक्त परिणाम के बाद यह चर्चा भी सोशल मीडिया पर पढ़ने और सुनने को मिली के फलां समाज और फलां जाति के इतने अभ्यर्थियों का चयन हुआ, फलां समुदाय के अभ्यर्थी टॉप टेन में रहे। लेकिन यह सब इसलिए हुआ कि उन समाजों या समुदायों के पास अच्छे हॉस्टल हैं, अच्छी कोचिंग हैं और बच्चों को गाइड करने वालों की एक पूरी टीम है। जिसमें रिटायर्ड अधिकारी और प्रतियोगी परीक्षाओं के एक्सपर्ट लोग बच्चों का विभिन्न तरीके से सपोर्ट करते हैं। उनको प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने और अव्वल आने के लिए प्रोत्साहित व प्रेरित करते हैं।

इन समाजों में कुछ चीजें ऐसी होती हैं जो मुस्लिम समाज में नहीं हैं या मुस्लिम समाज में यह चीज़ें होते हुए भी विद्यार्थियों को उपलब्ध नहीं हो पाती हैं। जिन समाजों में अधिक बच्चों का चयन हुआ है, उन करीब-करीब सभी समाजों में होनहार गरीब बच्चों को स्कॉलरशिप या फ्री कोचिंग व फ्री हॉस्टल आदि की फैसिलिटी देकर उन्हें प्रोत्साहित किया जाता है, ताकि उनके समाज का कोई भी बच्चा-बच्ची परिवार की आर्थिक हालत कमजोर होने के कारण प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने से वंचित नहीं रहे। ऐसी व्यवस्था जहां तक हमारी जानकारी है मुस्लिम समुदाय में न के बराबर है, अगर कहीं ऐसी व्यवस्था है भी तो उस स्तर की नहीं है, जिसकी आवश्यकता ऐसी प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल होने के लिए चाहिए।

हॉस्टल का अभाव

क्या कोई बता सकता है कि राजस्थान के बड़े शहरों जयपुर, जोधपुर, कोटा, सीकर, उदयपुर, बीकानेर, अजमेर, भीलवाड़ा, पाली, सवाई माधोपुर, अलवर आदि में मुस्लिम समुदाय या मुस्लिम समुदाय की किसी जाति के कितने हॉस्टल हैं ? कितनी कोचिंग हैं ? और जो हैं उनका स्तर कैसा है, वहां फैसिलिटी कैसी दी जा रही है ? क्या वहां प्रतिभावान गरीब बच्चे-बच्चियों को रहने और पढ़ने की निशुल्क सुविधा है ? इन सवालों का जवाब यह है कि नाम के गिनती के कुछ हॉस्टल जरूर हैं, स्तरीय कोचिंग एक भी नहीं है, स्तरीय हॉस्टल न के बराबर हैं तथा प्रतिभावान गरीब बच्चे-बच्चियों के लिए निशुल्क हॉस्टल और कोचिंग व्यवस्था ना के बराबर है। जब यह हाल है तो फिर बड़ी संख्या में मुस्लिम अभ्यर्थियों का चयन कैसे होगा ? क्या कोई बता सकता है कि राजस्थान में मुस्लिम समुदाय के पास किसी भी जिले में कोई गर्ल्स हॉस्टल है ? जवाब है नहीं, तो फिर हमारे यहाँ मुक्ता राव (आरएएस टॉपर महिला) कैसे पैदा होंगी ?

कुछ लोगों को याद होगा और जिन्हें याद नहीं है या जानकारी नहीं है, उन्हें हम यहां यह जानकारी देना चाहते हैं कि राजस्थान लोक सेवा आयोग (आरपीएससी) में रिटायर्ड आईएएस मरहूम जे एम खान साहब चेयरमैन हुआ करते थे और उन्होंने रिटायर होने के बाद कुछ अधिकारियों, समाजसेवियों भामाशाहों और प्रतियोगी परीक्षाओं के एक्सपर्ट्स को साथ लेकर जयपुर की मोती डूंगरी रोड पर स्थित मुस्लिम मुसाफिरखाने की बिल्डिंग नाना जी की हवेली में कोचिंग और हॉस्टल शुरू किया था। इसका नाम “सर्विसेज गाइडेंस ब्यूरो” रखा था। इस कोचिंग में पढ़ने वाले या इस हॉस्टल में रहने वाले काफी लड़कों का विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सिलेक्शन हुआ तथा उनमें से कई आज अधिकारी के तौर पर या विभिन्न कार्यालयों में कर्मचारी के तौर पर अपनी सेवा को अंजाम दे रहे हैं।

इस कोचिंग में पढ़ने वाले और अधिकारी बनने वाले कुछ लोग रिटायर हो चुके हैं और कुछ रिटायर होने के नजदीक पहुंच चुके हैं। करीब दो दशक तक कम सुविधाओं और कम जगह होते हुए भी यह कोचिंग बेहतरीन चली, लेकिन जे एम खान साहब के बूढ़े होने के साथ ही यह कोचिंग एक तरह से कमजोर पड़ गई तथा जे एम खान साहब के इंतकाल के साथ ही इस कोचिंग का और हॉस्टल का भी इंतकाल हो गया। क्या हमारे दूसरे अधिकारी जो रिटायर हो चुके हैं या कार्यरत हैं क्या वे जे एम खान साहब जैसी या उनसे बेहतर कोई कोचिंग नहीं खोल सकते थे ? कोई हॉस्टल नहीं खोल सकते थे ? और प्रतियोगी परीक्षाओं में बच्चों के चयन पर अपनी बाकी की जिंदगी नहीं लगा सकते थे?

उच्चस्तरीय पुस्तकालय का अभाव

सवाल का जवाब है कि लगा सकते थे, लगा सकते हैं। लेकिन अफसोस की बात यह है कि जहां तक मेरी जानकारी है राजस्थान के अंदर किसी भी रिटायर्ड मुस्लिम अधिकारी ने ऐसी कोई कोशिश नहीं की कि उनके जरिए कोई बेहतरीन कोचिंग संस्थान व हॉस्टल डवलप हो, जिसमें उच्च स्तरीय लाइब्रेरी हो, जिसमें बच्चे-बच्चियों को पूरी फैसिलिटी दी जाए। जहां सिर्फ मैरिट के आधार पर प्रतियोगी परीक्षाओं के बच्चे-बच्चियों को रखा जाए तथा उन्हें अच्छे से तैयारी करवाकर अधिकारी बनाया जाए, ऐसी कोशिश हमारी जानकारी के मुताबिक किसी भी रिटायर्ड मुस्लिम अधिकारी व मुस्लिम बिजनेसमैन ने नहीं की है।

ऐसी एक कोशिश जयपुर में अलमास सोसायटी के नाम पर हुई, जिसके लिए सरकार ने ज़मीन भी आवंटित की थी, लेकिन रहनुमाओं की सिरफुटव्वल और पैसा जमा नहीं करवाने की वजह से वो ज़मीन हाथ से निकल गई। प्रोफेसर हसन साहब ने अलमास की यह दर्दनाक पूरी कहानी हमें बताई थी, जिसे यहाँ लिखना मुनासिब नहीं है। कोचिंग शुरू करने की एक कोशिश रिटायर्ड आईएएस और दरगाह ख्वाज़ा साहब के नाजिम अशफाक हुसैन साहब ने भी की थी, लेकिन वे सफल नहीं हो पाए जिसकी वजह कुछ भी हो।

जयपुर में दो बड़ी ज़मीन या हॉस्टल मुस्लिम समुदाय के पास हैं। जो गांवों से आए हुए लोगों ने स्थापित किए हैं। एक झोटवाड़ा में ख्वाज़ा ग़रीब नवाज़ (केजीएन) और दूसरा कायम फ़ाउन्डेशन खोह नागौरियान। केजीएन जरूर हॉस्टल है, लेकिन जिस स्तर का हॉस्टल चाहिए वैसा वो तीन दशक बाद भी नहीं बन सका। वहां काफी ज़मीन और भवन है, जिसमें अच्छी कोचिंग भी संचालित की जा सकती है, लेकिन वहां कोचिंग नहीं है। इस हॉस्टल के कर्ताधर्ता अप्रत्यक्ष तौर पर पूर्व मन्त्री यूनुस साहब हैं। वर्तमान में इसके अध्यक्ष वरिष्ठ आरएएस अधिकारी जमील कुरैशी साहब हैं।

कायम फ़ाउन्डेशन की ज़मीन दो दशक बाद भी आबाद नहीं हुई है। यहाँ चार-पांच कमरे बने हुए हैं, कुछ बरसों पहले यहाँ स्टूडेंट्स ने रहना शुरू किया था, लेकिन सुविधाओं के अभाव से दुखी होकर वे यहाँ से चले गए थे। इसके अध्यक्ष शुरूआत में पूर्व मन्त्री मरहूम रमजान ख़ान साहब थे, फिर वाहिद चौहान साहब सीकर को बनाया गया, फिर आईजी लियाकत साहब और आलम ख़ान साहब नागौर को बनाया गया। आलम साहब के इन्तकाल के बाद यह पद खाली पड़ा है। इसके सेक्रेटरी राजस्थान कायमखानी महासभा के पूर्व अध्यक्ष उम्मेद ख़ान साहब डीडवाना हैं।

पूर्व प्रशासनिक अधिकारी का प्रयास

यहाँ यह उल्लेख करना भी आवश्यक है कि रिटायर्ड एडिशनल एसपी मुमताज़ ख़ान जोधपुर ने अपने साथियों के साथ रिटायर्ड होने के बाद एक सराहनीय कोशिश शुरू की है। वे डीडवाना के कायमखानी हॉस्टल में पढ़े हुए हैं और राजस्थान में सबसे ज्यादा मुस्लिम अधिकारी व कर्मचारी देने वाला यही हॉस्टल है, जिसे पूरा राजस्थान शायद ही जानता हो। उन्होंने इस हॉस्टल की कायापलट करने के लिए पूरी ताकत व गम्भीरता से प्रयास शुरू किए हैं। यहाँ उच्च स्तरीय फाइव स्टार सुविधा देकर बच्चों को कोचिंग देने की योजना उनकी टीम ने बनाई है तथा इसके लिए कंस्ट्रक्शन का काम चल रहा है, हालांकि यहाँ काफी कमरे और एक बड़ा हाॅल पहले से बना हुआ है। यह हाॅल पूर्व मन्त्री यूनुस साहब ने बनवाया था। यहाँ बड़ा सोलर सिस्टम लगाया गया है, जिससे पैदा होने वाली बिजली हॉस्टल में खर्च करने के बाद सरप्लस रहती है, जिसे सरकार को बेचा जाता है। याद रखने वाली बात यह भी है कि झोटवाड़ा के केजीएन हॉस्टल को बनाने में भी मुमताज़ साहब और उनके साथियों की मुख्य भूमिका रही है।

यहाँ यह बताना भी जरूरी है कि अभी राजस्थान में मुस्लिम समुदाय के पास कोई ढंग का हॉस्टल है, तो वो जोधपुर में “महाराजा उम्मेद सिंह कायमखानी हॉस्टल” है। यह हॉस्टल आजादी से पहले बना था और जहाँ तक हमारी जानकारी है मुस्लिम क़ौम के पास इससे पहले राजस्थान में कोई हॉस्टल नहीं था। इस हॉस्टल से पढ़कर भी काफी छात्र अधिकारी व कर्मचारी बने हैं। जिनमें मरहूम आईजी लियाकत साहब और प्रोफेसर मुहम्मद हसन साहब जैसे कई नाम प्रमुख हैं। सीआई रमजान ख़ान साहब वर्तमान में इसके इन्चार्ज हैं और कई बरसों से वे अपनी सेवाएं यहाँ दे रहे हैं। उनकी सरपरस्ती में यह हॉस्टल अच्छा चल रहा है। राजस्थान में इस स्तर का एक भी मुस्लिम हॉस्टल नहीं है। यहाँ से हर प्रतियोगी परीक्षा में दो-चार बच्चों का सिलेक्शन होता है। लेकिन यहाँ भी काफी सुधार की आवश्यकता है। बड़ी संख्या में बच्चे यहाँ रह कर अध्ययन करते हैं, लेकिन कई कमरे होते हुए भी कम पड़ रहे हैं। काफी ज़मीन यहाँ खाली भी पड़ी है, जिसमें नया भवन बनाकर गर्ल्स हॉस्टल, कोचिंग संस्थान आदि शुरू किया जा सकता है। साथ ही कमरों की संख्या बढ़ाकर अधिक बच्चे भी रखे जा सकते हैं। अगर इस हॉस्टल के पूर्व छात्र ही कुछ करने की ठान लें तो यहाँ बहुत कुछ हो सकता है।

उच्चस्तरीय कॉलेज का अभाव

हमारे बुद्धिजीवी, समाजसेवी और भामाशाह जो बड़ी-बड़ी बातें करते हैं, क्या वे बता सकते हैं कि राजस्थान में मुस्लिम समुदाय के पास ऐसी कौन सी स्कूल और कॉलेज है, जो उच्च स्तरीय है और वहां एडमिशन की मारामारी रहती है ? जवाब होगा एक भी नहीं। राजधानी जयपुर जहाँ एक से बढ़कर एक मालदार मुस्लिम रहते हैं, यहाँ बड़े-बड़े मुस्लिम बिजनेसमैन भी हैं, लेकिन आजादी के बाद इन्होंने एक भी मुस्लिम हॉस्टल जयपुर में स्थापित नहीं किया है, अगर प्राइवेट प्रॉपर्टी के तौर पर भी यह कोई मुस्लिम हॉस्टल स्थापित करते तो आज तस्वीर कुछ और ही होती। राजधानी में मुस्लिम स्टूडेंट्स किस परेशानी से पढाई करते हैं और कैसे एक कमरा किराये पर लेने के लिए दर-दर भटकते हैं ? उनका दर्द सुनकर रूह कांप जाती है। यह सब दर्दनाक दास्ताँ उस जयपुर शहर की है, जो राजस्थान में सबसे ज्यादा मुस्लिम आबादी व मुस्लिम बिजनेसमैन का शहर है।

राजधानी जयपुर में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने जो बच्चे-बच्चियां आते हैं, उनकी हॉस्टल और कोचिंग की फीस या कमरा लेकर रहते हैं तो उसका खाना खर्चा कुल मिलाकर एक स्टूडेंट 15 से 20 हज़ार रुपए कंजूसी से खर्च करे, तब उसका महीना पूरा होता है। अब यह फैसिलिटी कितने मुस्लिम परिवार अपने बच्चों को उपलब्ध करवा सकते हैं ? जवाब है सिवाय गिनती के परिवार। यह बात यहाँ इसलिए कही जा रही है कि प्रतिभावान गरीब बच्चे-बच्चियां बड़ी उम्मीद रखते हैं कि हम प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करें, हम अधिकारी बने, हम अधिकारी बनकर देश व समाज की सेवा करें। लेकिन घरवालों की आर्थिक स्थिति ऐसी नहीं है कि उनको 15 से 20 हज़ार रूपये महीना देकर जयपुर में पढ़ाया जाए तथा अफसोसनाक बात यह भी है कि बड़े-बड़े भामाशाह और बिजनेसमैन होते हुए भी इन बच्चों के हाथ पर हर महीने 5 हज़ार रूपये रखने वाला भी जयपुर में कोई नहीं है।

हम आपको नाम नहीं बताएंगे लेकिन जैसलमेर जिले का एक बच्चा जो आज अधिकारी है, बहुत ही गरीब घर का था और उसका जुनून अधिकारी बनने का था, लेकिन कोई उसको प्रॉपर गाइड करने वाला नहीं था और ना ही उसकी कोई आर्थिक मदद करने वाला था। परन्तु आज खुशी की बात है कि उसने अपनी जद्दोजहद और जुनून से कुछ साल पहले राजस्थान प्रशासनिक सेवा की परीक्षा पास की और आज राजस्थान सरकार में वो अधिकारी है।

पहले हुए हैं प्रयास

यहाँ हम एक और बात भी आपको बताना चाह रहे हैं। जब मरहूम जे एम खान जिंदा थे तो उन्होंने विभिन्न प्रतियोगी परीक्षाओं में सफल हुए बच्चों का जयपुर के सूचना केंद्र में सम्मान किया। यह बात करीब 15 साल पहले की है। उस सम्मान समारोह में भीलवाड़ा जिले के एक मुस्लिम स्टूडेंट को भी सम्मानित किया गया, जिसका एमबीबीएस के लिए सिलेक्शन हुआ था। उस बच्चे को जब बोलने के लिए मौका दिया गया, तो उसने मंच से कहा कि “आज मेरा जो सम्मान किया जा रहा है वो बड़ी खुशी की बात है, लेकिन मेरा यह सम्मान चयन होने के बाद किया जा रहा है और मुझ जैसे काफी बच्चे-बच्चियां ऐसे हैं, जिनका प्रतियोगी परीक्षाओं में सिलेक्शन हो सकता है। लेकिन गरीबी के कारण वे न ढंग से पढ़ पाते हैं और ना ही प्रतियोगी परीक्षा पास कर पाते हैं तथा बहुत से प्रतिभावान बच्चे-बच्चियां तो ग़रीबी के कारण स्कूल भी छोड़ देते हैं। इसलिए सिलेक्शन होने के बाद सम्मान करने की बजाय आठवीं क्लास में जो बच्चे टॉपर आएं, उन बच्चों को सम्मानित करें। उनमें से राजस्थान लेवल पर बच्चों का सिलेक्शन करें और फिर उनकी सब्जेक्ट लेने में और किस प्रतियोगी परीक्षा में वे बैठना चाहते हैं, उसके लिए उनको गाइड करें तथा जिनकी आर्थिक स्थिति कमजोर हो उनकी मदद करें, अगर आप ऐसा करेंगे तो बड़ी संख्या में सिलेक्शन होगा।”

करीब 20 साल के उस बच्चे ने जब यह बात कही थी तो लोगों ने बड़ी प्रशंसा की और यह भी कहा कि ऐसा होना चाहिए और ऐसा हम करेंगे, लेकिन पिछले 15 साल में ऐसा कुछ नहीं हुआ, जबकि उस प्रोग्राम में जयपुर के तमाम मुस्लिम बुद्धिजीवी, भामाशाह, बिजनेसमैन, अधिकारी आदि विराजमान थे। आज इस लेख में उस बच्चे की बात हमने इसलिए लिखी है कि हर प्रतियोगी परीक्षा में जब सिलेक्शन लिस्ट आती है, तो बधाइयों का सिलसिला शुरू होता है जो अच्छी बात है। लेकिन अगर हम बच्चों पर आठवीं-दसवीं क्लास से ही विशेष ध्यान दें, उनमें से प्रतिभावान बच्चों का चयन करें और उन्हें प्रतियोगी परीक्षा में सफल होने वाली तमाम फैसिलिटी उपलब्ध करवाएं, तो सिलेक्शन लिस्ट में काफी संख्या में मुस्लिम अभ्यर्थी सिलेक्ट हो सकते हैं तथा फिर बधाई देते हुए हमें कई गुणा ज्यादा खुशी होगी, क्योंकि तब हम फख्र से कहेंगे कि इस लिस्ट में जो बच्चे सेलेक्ट हुए हैं, उनमें से फलां-फलां बच्चा हमारे हॉस्टल का, हमारी कोचिंग का बच्चा है। फलां-फलां बच्चा-बच्ची ऐसा है जिसको हमारी सोसाइटी ने, हमारे ट्रस्ट ने या हमारे मोहल्ले और गांव के फलां बिजनेसमैन ने गोद लिया था और उसकी आर्थिक मदद की थी। तब हम सबकी खुशी कई गुणा ज्यादा होगी और परिणाम भी अन्य समाजों की तरह बेहतर होंगे तथा हर सिलेक्शन लिस्ट में काफी मुस्लिम अभ्यर्थियों का सिलेक्शन होगा, जो देश व समाज की सेवा कर हम सबका नाम रोशन करेंगे।

(इक़रा पत्रिका के सौजन्य से)