अशोक पांडे
बाहर से देखने पर मार्शल आर्ट्स फिल्मों का यह नायक आपको बिजली की बनी मांसपेशियों वाला एक खामोश चुम्बक नजर आएगा। उसकी अकल्पनीय तेजी, शर्मीली आक्रामकता और तराशी हुई उसकी देह मिलकर एक ऐसा संयोजन बनाते थे कि 1970 के दशक के शुरुआती सालों में हॉलीवुड में बनाई अपनी पांच फिल्मों के बूते वह बीसवीं शताब्दी के सबसे लोकप्रिय और रहस्यमय मिथकों में शुमार हो गया। ब्रूस ली को कौन नहीं जानता! मेरी और मुझसे ठीक पहले की पीढ़ी के अनगिनत लडके-लड़कियों ने उसके पोस्टर अपनी दीवारों पर लगाए। ड्रैगन शब्द से हमारा पहला परिचय भी उसी की फिल्मों के माध्यम से हुआ होगा।
उसकी लिखी चिठ्ठियाँ ‘लेटर्स ऑफ़ द ड्रैगन’ नाम की किताब में छपी हैं। इसे पढ़कर आपके सामने एक दूसरा ब्रूस ली आ खड़ा होता है। अपने व्यक्तिगत जीवन में भी यह आदमी उतना ही गहरा और बड़ा था जैसा उसे फिल्मों में दिखाया गया है। बल्कि असल जीवन में वह खुद द्वारा अभिनीत किसी भी कैरेक्टर से बड़ा नज़र आता है।
प्रेम और उदारता से लबालब ब्रूस ली को जीवन के एक भी सेकेण्ड का बरबाद होना गवारा नहीं था। एकांत के अपने हर पल में उसने जीवन का संधान किया। उसे जब मौक़ा मिला उसने दोस्तों को चिठ्ठियाँ लिखीं जिनमें वह अपने जीवन दर्शन के गूढ़तम रहस्यों से साक्षात्कार किया करता था। जीवन के आख़िरी सालों में उसने खुद को संबोधित करते हुए भी अनेक चिठ्ठियाँ लिखीं। अगर आप समझते हैं कि उसके मूवमेंट्स की आश्चर्यजनक चपलता, जिसके बारे में विख्यात था कि वह अपने से तीन फुट दूर की किसी चीज पर एक सेकेण्ड के 500वें हिस्से में आक्रमण कर सकता था, केवल शारीरिक रियाज से पाई गयी होगी तो खुद को लिखी उसकी चिठ्ठियाँ पढ़िए।
बहुत कम लोग जानते होंगे ब्रूस ली कविताएं भी लिखता था। और शायद यह भी कि अपने जीवन को लेकर उसने जिन लक्ष्यों को तय किया था उन्हें वह बत्तीस साल की आयु तक पा चुका था। तैतीस साल का होने से पहले वह इस दुनिया से जा चुका था। उसके समय की सबसे खूबसूरत स्त्रियाँ उसके मोहपाश में बंधीं। अभिनेत्री शैरन फैरेल ने एक इंटरव्यू में बेझिझक कहा था – “वह एक अकल्पनीय प्रेमी था। स्त्री की देह का उसका ज्ञान बहुत विषद था। अपने बाक़ी प्रेमियों के लिए मेरे पास केवल वासना थी। ब्रूस ली सिर्फ और सिर्फ मोहब्बत था!”
कोई आश्चर्य नहीं ब्रूस ली ने कविताएं भी लिखीं – प्रेम और आत्मा के अँधेरे गलियारे उनकी विषयवस्तु बने। उसे रियाज़ की ताकत का भरोसा था – चाहे कुंग-फू का कोई जटिल दांव हो, चाहे भीतर की तलाश। अपने लेखन में भी उसने भाषा के साथ किसी उस्ताद दार्शनिक-लेखक जैसा बर्ताव किया। इन माय ओन प्रोसेस – शीर्षक से खुद को संबोधित किये गए एक ख़त के ब्रूस ली ने कम से कम नौ ड्राफ्ट लिखे। गाबो मार्केज़ ने लिखा है – “मैंने सीखा है कि हर कोई पहाड़ की चोटी पर रहना चाहता है बिना यह जाने कि सच्ची खुशी इस बात में है कि उस पर चढ़ा कैसे गया है।”