जज रहते हुए जस्टिस अरुण मिश्रा ने पढ़े थे मोदी की शान में क़सीदे, अब बने NHRC के अध्यक्ष

गिरीश मालवीय

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पीएम मोदी की अध्यक्षता वाली कमिटी में जस्टिस अरुण मिश्रा को राष्ट्रीय मानवाधिकार परिषद का अध्यक्ष चुन लिया गया। मोदी के अलावा इस कमेटी में गृह मंत्री अमित शाह, राज्यसभा के उप सभापति हरिवंश, लोकसभा स्पीकर ओम बिरला और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे थे वैसे मल्लिकार्जुन खड़गे ने इस फैसले से असहमति जताई लेकिन उन्हें नजरअंदाज किया गया।

अरुण मिश्रा को यह पद देना शायद चापलूसी का इनाम कहा जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट में पद पर रहते हुए इंटरनेशनल ज्यूडिशियल कॉन्फ्रेंस 2020 में 20 देशो के जजों के सामने जस्टिस अरुण मिश्रा जी ने भाषण देते हुए कहा कि वो प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को बहुमुखी प्रतिभा का व्यक्ति मानते हैं जो वैश्विक सोच रखते हैं और स्थानीय स्तर पर भी काम करते हैं,  ये बात साधारण नहीं लगती’ ऐसा शायद पहली बार ही हुआ था कि किसी राजनीतिक नेता की ऐसी तारीफ सुप्रीम कोर्ट के सिटिंग जज ने सार्वजनिक रूप से की इसके अलावा पद पर रहते हुए उनकी ट्यूनिंग मोदी के खासमखास अडानी से भी बहुत अच्छी जम चुकी थी.

2019 के बाद से न्यायमूर्ति मिश्रा की अगुवाई वाली बेंच में अडानी समूह की कंपनियों से जुड़े एक बाद एक लगातार छह मामले आए और हर बार फ़ैसले इस ग्रुप के पक्ष में गये हैं।  कमाल की बात तो यह है कि मिश्रा जी के रिटायर होने के ठीक दो दिन पहले पहले सातवें मामले में भी फैसला अडानी समूह के पक्ष में सुनाया गया  अडानी राजस्थान पावर लिमिटेड को सुप्रीम कोर्ट ने बड़ी राहत देते हुए राजस्थान की बिजली वितरण कंपनियों के समूह की उस याचिका को खारिज किया कर दिया जिसमें एआरपीएल को कंपनसेटरी टेरिफ देने की बात कही गई थी।

जस्टिस अरुण मिश्रा, जस्टिस विनीत शरण और जस्टिस एम आर शाह की पीठ ने राजस्थान विद्युत नियामक आयोग और विद्युत अपीलीय पंचायट के उस फैसले को सही ठहराया है जिसमे इसके खिलाफ अपील की गई थी। इस फैसले से राजस्थान में सार्वजनिक बिजली वितरण संस्थाओं और उपभोक्ताओं को लगभग 5,000 करोड़ रुपये का नुकसान होने का अंदेशा जताया गया था।

ऐसा भी नहीं है कि सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस ओर किसी ने दिलाने की कोशिश नही की  अगस्त 2019 में वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने अडानी समूह की कंपनियों से जुड़े कुछ मामलों में प्रक्रियागत अनियमितता का आरोप लगाते हुए भारत के तत्कालीन मुख्य न्यायाधीश, रंजन गोगोई को पत्र लिख कर पुछा था कि अडाणी समूह से जुड़े मामले जस्टिस अरुण मिश्रा की अदालत में क्यों लिस्ट किए जा रहे हैं ?  उनका आरोप था कि उस वर्ष उन मामलों को गर्मी की छुट्टी के दौरान सुप्रीम कोर्ट रजिस्ट्री द्वारा “अनुचित रूप से” सूचीबद्ध किया गया था। लिस्टिंग को लेकर दुष्यंत दवे आरोप लगाया था कि वह “स्थापित कार्यप्रणाली और प्रक्रिया (सुप्रीम कोर्ट) के मुताबिक़ बेहद अनुचित है,” उसके नतीजे के रूप में अडानी समूह की कंपनियों को “हज़ारों करोड़” रुपये का फ़ायदा पहुंचा है। लेकिन इन सब आपत्तियों के बावजूद उन्हें मुकदमे सौपे जाते रहे यानी कितनी भी बदनामी हो मिश्रा जी ने कभी उफ़्फ़ तक नही की!

अब यदि ऐसी हर प्रकार की अरुण मिश्रा ने निष्ठापूर्वक  सेवा की थी तो इसका इनाम तो उन्हें मिलना ही था। इसलिए उन्हें आज राष्ट्रीय मानवाधिकार परिषद का अध्यक्ष बना दिया गया है ताकि आप आगे से भारत मे मानवधिकारों की दुहाई देना ही बन्द कर दे!

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)