दलितों के लिए कब आएंगे अच्छे दिन?

पलश सुरजन

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उत्तरप्रदेश में इस वक्त चुनाव की गहमागहमी है और एक बार फिर से जाति आधारित मतदाताओं को अपने पाले में करने के लिए राजनैतिक दल रणनीतियां बनाने में लग गए हैं। सत्तारूढ़ भाजपा इस संबंध में सर्वाधिक सक्रिय नज़र आ रही है। जुलाई में जब मोदी मंत्रिमंडल का विस्तार हुआ था, तो उसमें उत्तरप्रदेश से तीन पिछड़े, तीन दलित और एक ब्राह्मण बिरादरी के सांसद को मंत्री बनाया गया था। इसके बाद विधानसभा चुनावों के पहले एनडीए का कुनबा बढ़ाने में भी भाजपा ने इस सोशल इंजीनियरिंग पर ध्यान दिया। सवर्णों के साथ ही गैर-यादव ओबीसी और गैर-जाटव दलितों को साथ लेने की कोशिश की। उन क्षेत्रीय दलों से गठबंधन किया, जिनका प्रभाव पिछड़े वर्ग के लोगों पर है। इस बीच संकेत मिलने लगे कि ब्राह्मण मतदाता भाजपा से नाराज हैं, तो अब ब्राह्मणों पर भाजपा ध्यान देने में लग गई है। चुनावों में ब्राह्मणों को पार्टी के साथ बनाए रखने के लिए एक उच्च स्तरीय समिति का गठन किया गया है जिसमें प्रदेश से जुड़े ब्राह्मण नेताओं को सदस्य बनाया गया है और समिति की अध्यक्षता गोरखपुर से राज्यसभा सांसद शिवप्रताप शुक्ल करेंगे। यह समिति राज्य की सभी विधानसभा सीटों पर ब्राह्मणों से संपर्क कर उन्हें भाजपा के साथ जोड़ने का काम करेगी। उत्तरप्रदेश की राजनीति में राज्य की आबादी के 12 प्रतिशत ब्राह्मणों का आशीर्वाद सत्ता के लिए जरूरी समझा जाता है। एक वक़्त था जब मायावती को यह आशीर्वाद मिला था, अब भाजपा इसी कोशिश में लगी हुई है।

हो सकता है भाजपा की जाति आधारित रणनीति कामयाब हो, लेकिन इससे समाज में जातिवाद का जो कलंक है, वो क्या और गहरा होगा। क्या सबका साथ, सबका विकास केवल नारा बन कर रह जाएगा, यह सवाल फिर उठने लगा है। क्योंकि उत्तरप्रदेश से दलित अत्याचार की फिर एक भयावह तस्वीर सामने आई है। वायरल वीडियो एक दलित बच्ची की पिटाई का है। वीडियो में एक युवक बिस्तर पर बैठा है और उसका साथी डंडा लेकर खड़ा है और किसी बात से नाराज़ होकर बिस्तर पर बैठा युवक बच्ची को फर्श पर पेट के बल लेटने को कह रहा। दूसरा युवक उसकी पीठ पर पैर रखकर चढ़ गया है। पास में खड़ी कुछ महिलाएं भी उन दरिंदे युवकों की मदद करती दिख रही हैं। वीडियो में देखा जा सकता है¸ कि बच्ची को पीठ के बल लिटाकर उसके दोनों पैर के तलवों पर जमकर लाठियां बरसाई जा रही। यह रोंगटे खड़ी करने वाली घटना अमेठी कोतवाली क्षेत्र के रायपुर फुलवारी गांव की है। बताया जा रहा है कि गांव के सूरज सोनी नाम के शख़्स के घर से दो मोबाइल फोन चोरी हो गए थे। चोरी का इल्ज़ाम उस बच्ची पर लगा और आरोपियों ने इस तरह की दिल दहलाने वाली सजा देकर बच्ची से सच उगलवाना चाहा।

इस घटना का पूरा सच निष्पक्ष जांच के बाद सामने आएगा। लेकिन वीडियो में तो यही दिख रहा है कि एक मासूम को कुछ लोग बुरी तरह शारीरिक और मानसिक तौर पर प्रताड़ित कर रहे हैं। अब पुलिस ने यौन अपराधों से बच्चों का संरक्षण (पॉक्सो) कानून, अनुसूचित जाति- जनजाति अधिनियम (एससी-एसटी) कानून और भारतीय दंड संहिता की अन्य गंभीर धाराओं के तहत आरोपियों पर मामला दर्ज किया है। लेकिन महज इतने से दलितों के ख़िलाफ़ अपराध रुक नहीं सकते। केन्द्रीय गृहमंत्रालय ने संसद में बताया है कि 2018 से 2020 के बीच दलित प्रताड़ना के 1,38,045 मामले दर्ज हुए हैं। मंत्रालय के आंकड़ों के मुताबिक, इनमें से 50,291 मामले तो अकेले पिछले साल सामने आए। इन तीन सालों के दौरान, सबसे ज्यादा 36,467 मामले उत्तर प्रदेश में दर्ज हुए। इसके बाद बिहार में 20,973, राजस्थान में 18,418 और मध्य प्रदेश में 16,952 मामले दर्ज हुए हैं।

इन आंकड़ों को देखकर सबका साथ, सबका विकास का झूठ अपने आप सामने आ जाता है। हरेक बात के लिए पिछले 70 सालों की कमियां गिनाने वाले और पिछली सरकारों को कोसने वाले प्रधानमंत्री मोदी को ये बताना चाहिए कि उन्होंने पिछले सात सालों में ऐसा कोई काम क्यों नहीं किया, जिससे दलितों पर होने वाले अत्याचार कम होते। भारत में बदलाव लाने की बात करने वाले मोदीजी ने जाति, धर्म के नजरिए से चलने वाली राजनीति में कोई बदलाव क्यों नहीं किया। सोशल मीडिया नहीं होता तो ऐसे कितने मामले प्रकाश में ही नहीं आते। याद कीजिए हाथरस कांड की दलित पीड़िता के साथ उसके ज़िंदा रहते और उसकी मौत के बाद किस तरह का सलूक उप्र प्रशासन ने किया था। बाद में इस मुद्दे पर भाजपा ने किस तरह राजनीति की थी।

दलितों के घर पर, पांच सितारा होटल से मंगाया गया भोजन करना और फिर उसकी फ़ोटो खिंचवा कर वाहवाही लूटना, इस तरह की राजनीति से जनता जब तक बहलती रहेगी, तब तक समाज से जातिवाद का दंश दूर नहीं होगा। बिहार में पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री जीतनराम मांझी ने ब्राह्मणों के लिए विवादित टिप्पणी की और उस पर बवाल हुआ तो क्षतिपूर्ति के तौर पर जीतनराम मांझी ने ब्राह्मण भोज करा दिया। लेकिन क्या दलितों पर हुए अत्याचारों के लिए ऐसी कोई क्षतिपूर्ति की पहल मौजूदा भाजपा सरकार में होगी, क्या दलितों के लिए कभी अच्छे दिन आएंगे, ये देखना होगा।

(लेखकक देशबन्धु अख़बार के संपादक हैं)