फ्रांस की आख़िरी महारानी मैरी एंटोनेट (Marie Antoinette) जब अपनी फिजूलखर्ची और सरकारी खजाने के पैसों से हासिल की गयी अमीरी से उकता गयी तो उसने अपने सलाहकारों से कहा कि उसके लिए एक नकली गाँव बनाया जाय जहाँ वह एक ग्रामीण स्त्री की तरह रह सके। देश की आर्थिक स्थिति उन दिनों बहुत खराब थी और जनता में असंतोष लगातार बढ़ रहा था। ऐसे में मैरी एंटोनेट (Marie Antoinette) के इस ड्रीम प्रोजेक्ट के लिए फ्रांस का खजाना खाली किया गया।
1788 में बनकर तैयार हुए इस गाँव में नकली चरागाह, झरने, झीलें और धाराएं बनाई गयी थीं। एक छोटी सी द्वीपनुमा संरचना में खुशबूदार फूलों वाले बगीचे के बीच प्रेम का मंदिर भी था। ग्रामीण वास्तुशैली में अनेक तरह की कॉटेजें और इमारतें थीं। इसके अलावा एक फार्महाउस, खलिहान, और डेयरी भी स्थापित की गयी थी।
मैरी एंटोनेट (Marie Antoinette) और उसकी सहेलियां चरवाहिनों और दूध बेचने वालियों की पोशाकें पहन ग्रामीण औरतों की तरह रहने का नाटक करतीं जबकि उनके चारों तरफ राजसी सुविधाओं का ढेर लगा रहता। फ़ार्म में रहने वाले पशुओं की देखरेख और खेतीबाड़ी के लिए कुछ असली किसान नौकरी पर रखे गए जो शाक-सब्जियां उगाते और गोबर उठाते। कभी कभार रानी को गाय-बकरियां दुहने का शगल उठता तो नौकर-चाकर उन्हें नहला-धुला कर रिबनों से सजा दिया करते।
इस नकली गाँव के चारों तरफ ऊंची बाड़ें थीं जिसके भीतर कोई परिंदा भी नहीं फटक सकता था। अफवाह तो यह भी उड़ी कि मैरी एंटोनेट (Marie Antoinette) ने अपने गुप्त प्रेमियों से मिलने के लिए अड्डा बनवाया है।
कभी कभार वहां राजसी दावतें होतीं तो रानी खुद अपने हाथों से मेहमानों की कॉफ़ी में दूध मिलाती हुई शेखियां बघारती कि उसने बड़ी मेहनत से अपनी सबसे पसंदीदा गाय का दूध निकाला है जिसे खिलाने के लिए घास काटने जाते समय उसके पाँव में मोच आ आ गई थी। राजा और उसके चापलूस अश-अश करते और वह चाल में नकली लचक लाकर रसोई की तरफ जाती जहाँ उसकी नौकरानियां खाना बना रही होती थीं।
ऐसा करते हुए दरअसल मैरी एंटोनेट (Marie Antoinette) ग्रामीण जीवन की सादगी का मजाक उड़ा रही थी। इस नकली गाँव के बारे में पता चलने पर ग्रामीणों के बीच उसकी पहले से खराब छवि और अधिक खराब होती चली गयी। इन्हीं असल ग्रामीणों की अगुवाई में पांच साल बाद फ्रांसीसी क्रान्ति हुई और 16 अक्टूबर को मैरी एंटोनेट (Marie Antoinette) को गिलोटीन पर चढ़ाया गया।
(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं, ये उनके निजी विचार हैं)